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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हो चुका है। इसी प्रकार जोधपुर की सुश्री रीता नाहटा प्रथम महिला टैक्सी चालक बनी थी। वह कर्मठ एवं संघर्षशील व्यक्तित्व की धनी थी। सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में तथा कला के क्षेत्र में अनाथ बहनों को प्रशिक्षण देनेवाला यह विरल व्यक्तित्व है। जोधपुर की ही श्रीमती शशी मेहता प्रतिभाशाली छात्रा रह चुकी है। जितने वर्ष तक आपने विश्वविद्यालय की पढ़ाई की उतने वर्ष तक छात्रवत्ति पाती रही हैं। वाद-विवाद, लोकनत्य आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कार पाती रही है। आप इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली में संवाद दाता का कार्य करते हुए राष्ट्र एवं समाज की ज्वलंत समस्याओं पर निरन्तर लिखती रही है। चेन्नई की सोनिया रानी ने २२ वर्ष की छोटी उम्र में कप्तान बनकर इंडियन एअरलाइंस की उड़ान भरकर रिकार्ड स्थापित किया है।
सोनिया जैन (पदमपुर, राज.) ने तीन दिन में संस्कृत का भक्तामर स्तोत्र एवं एक दिन की अल्प अवधि में (प्रतिक्रमण) आवश्यक सूत्र कंठस्थ किया। प्रतिभा जैन (रायकोट, पंजाब) ने भी तीन दिन में संस्कृत का भक्तामर स्तोत्र कंठस्थ किया था। अन्य भी सैंकड़ों श्राविकाओं के नाम आते हैं जिन्होंने इस वर्तमान युग में विभिन्न आगमों पर, ग्रंथों एवं ज्वलंत समस्याओं पर शोध कार्य किया एवं साहित्य सर्जन कर साहित्यिक भंडार में श्री वद्धि की है।
मनोहरीदेवी बोथरा ने अड़तीस दिन का, भंवरीदेवी ने ३६ दिन का ऋषिबाई सेठिया ने इक्यासी दिन का, कोयला देवी बोथरा ने ५० दिनों का, सुंदरी देवी बोकाडिया ने २८ दिनों का संथारा ग्रहण किया। श्रीमती कलादेवी आंचलिया ने तो १२१ दिन की तपस्या संपन्न की जो अपने आप में एक रिकार्ड है, श्रीमती मनोहरी देवी ने अपने जीवन में तीस (३०) बार मासखमण तप अंगीकार किया। दिल्ली वीरनगर निवासी श्रीमती कांता जी, चाँदनी चौक की रम्मोदेवी, मिश्रीबाई आदि सन्नारियों ने देह की आसक्ति का त्याग किया संथारा सहित समाधिमरण किया। महाराष्ट्र अहमदनगर की अनेक बहनें हैं जो इस कड़ी में लम्बा संथारा धारण कर चुकी है।
संथारे के महामार्ग पर बढ़ने वाली श्राविकाएँ वास्तव में श्राविका संघ एवं चतुर्विध संघ में रीड़ की हड्डी सदश्य है। उनका अवदान शब्दों की परिधि से ऊपर उठा हुआ है। उसका प्रकाशपुंज व्यक्तित्व विश्व-संस्कृति के हर काल को प्रत्येक क्षेत्र में जीवन जीने का कलापूर्ण नया आयाम प्रस्तुत करता आ रहा है। उसके जीवन में विचारों का ओज है तो आचार का दिव्य तेज भी है। उसके आचार की भास्वर किरणें जीवन पथ पर आलोक बिखेरती हुई तिमिराछन्न जीवन को भी प्रकाशमान करती रही है। मुक्ति प्राप्ति की उत्क्रांति का पुरूषार्थ ही उसका जीवन ध्येय होता है। नारी की आत्मा नारी देह के झरोखे में दिखती हुई भी स्वतंत्रता गुणवत्ता तथा मोक्ष पुरूषार्थ हेतु सर्वथा स्वाधीन है। अतः नारी श्राविका जीवन का निर्वाह भली भांति करती हुई अपनी संतान को सुसंस्कारों से सिंचित करते हुए उसे संयम के दर्गम मार्ग पर बढ़ने के लिए समर्पित करती रही है। स्वयं भी बारह अणव्रतधारिणी श्राविका अथवा पंचमहाव्रतधारिणी साध्वी बनकर सम्यक आचार द्वारा स्व आत्मा की उन्नति करती है। मत्य को सा जीवन के अंतिम समय में संलेखना व्रत अंगीकार कर स्वेच्छा से समाधिमरण का वरण करती है। श्रवणबेलगोला की कई श्राविकाएँ इस मार्ग पर बढ़ी थी। धर्म कत्य में कुछ श्राविकाएँ जैनाचार्यों की प्रेरणा से स्वद्रव्य द्वारा जिन मंदिरों के निर्माण में व मूर्ति की प्रतिष्ठा में अपना सहयोग देती रही है। ई. सन् की ८वीं से १५वीं शती तक की श्राविकाओं द्वारा इस दिशा में बढ़ते हुए कदम इस बात को प्रकट करते है। मध्यकाल में श्राविकाएँ सम्यक ज्ञान के पथ पर अपने मुस्तैदी कदम बढ़ाती हुई शास्त्र-ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ लिखने एवं लिखवाने में तथा शास्त्र अध्ययन में तीव्र रूचि लेती हुई नजर आती है। आधुनिक युग में तो श्राविकाओं का इंद्रधनुषी व्यक्तित्व विविध क्षेत्रों में बढ़ता हुआ ज्ञान-विज्ञान के विविध सोपानों पर चढ़ता हुआ नजर आता है। उसमें नारी शक्ति का प्रदीप्त पुरूषार्थ विकसित होता दष्टिगत होता है। गहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों के अतिरिक्त भी प्रत्येक क्षेत्र में उसके उठते हुए कदम स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। यदि श्राविकाओं के विविध क्षेत्रों में किये गये योगदानों पर खोजबीन की जाएँ तो प्रत्येक क्षेत्र में उसके द्वारा दिये गए अवदानों पर विभिन्न शोध प्रबंध स्वतंत्र रूप से तैयार किये जा सकते हैं। पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक जप-तप, धर्म-श्रवण, साधुओं को शुद्ध आहार से लाभान्वित करने में तथा जन्म, विवाह, मत्यु एवं दीक्षा आदि का कोई भी प्रसंग उसके स्पर्श के बिना अधूरा है। इन सभी प्रकार के कर्तव्यों में कदम दर कदम उसका सतत् योगदान है। परिवार को सुसंस्कारों से सिंचित करने वाली, स्वयं कष्टों को सहकर भी अपने स्नेह के तले समस्त रिश्तों में वात्सल्य तथा स्नेह रस से पुष्ट
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