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________________ 708 उपसंहार करने वाली यह श्राविका सेवा, सहिष्णुता, धैर्यता, गंभीरता, सौम्यता आदि सद्गुणों से युक्त है। यदि प्रत्येक नारी श्राविका के पवित्र गुणों से अपने आप को सुसज्जित करें तो वह अवश्य ही स्व-पर कल्याण कर सकती है। __ श्रावक और श्राविका का समान स्थान है। तथापि श्राविका जीवन की इस पवित्र भूमिका का निर्वाह करने हेतु श्रावक वर्ग के यथेष्ट सहयोग की पूर्ण अपेक्षा रहती है। क्योंकि इस पुरूष ज्येष्ठ समाज में प्रत्येक क्षेत्र में पुरूष के नाम से पहचान बनाई जाती है। श्राविकाओं के प्रत्येक क्षेत्र में अद्भुत सजनात्मक शक्ति एवं विविध अवदानों के होते हुए भी पुरूष वर्ग उसे अबला एवं हीन समझता है। किन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों में भी किसी प्रकार की सलाह की गुंजाइश नहीं रखता है। उसे समाज में निम्न स्थान ही दिया जाता है। श्रावक के समान श्राविका की पहचान भी स्वतंत्र इकाई के रूप में प्रतिष्ठित होनी चाहिए। सामाजिक, पारिवारिक, धार्मिक एवं राजनीतिक पदों की प्रतिष्ठापना के अवसरों पर उससे भी सलाह ली जानी चाहिए। उसे भी सुयोग्य पदों पर प्रतिष्ठित करते हुए कार्यक्षेत्र हेतु स्वतंत्रता एवं कार्य करने के सर्वाधिकार दिये जाने चाहिए। पुरूष की पहचान से उसकी पहचान नही अपितु उसकी अपनी स्वतंत्र पहचान बनी रहनी चाहिए। इस हेतु पुरूष वर्ग में उदारता की मात्रा बढ़नी चाहिए, पुरूष वर्ग को उनके चहुमुखी विकास में सहयोग करना चाहिए। इस दिशा में समाज में विंतन बढ़े और सच्चा पथ सबको प्राप्त हो। ऐसी मेरी भावना है। . अर्हतोपासिका साध्वी डॉ. प्रतिभा श्री "प्राची" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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