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लिखा । अनेक प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में उनके विशिष्ट लेख प्रकाशित होते रहे हैं। डॉ. सरयू डोशी ने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति पर शोध कार्य किया एवं कला जगत् की अमूल्य धरोहर स्वरूप कलाकतियाँ प्रकट हुई। डॉ वीणा जैन ने अनुसूचित जाति की महिलाओं के संबंध में शोध कार्य ही नहीं किया अपितु उस जाति की महिलाओं, बच्चों एवं भाई-बहनों को कम शुल्क पर कम्प्यूटर प्रशिक्षण, शॉर्ट-हैण्डटाइप आदि विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण हेतु मादीपुर दिल्ली में प्रशिक्षण केंद्र भी खोला है। जैन श्राविका के रूप में जीवन जीने वाली विदेशी महिलाओं में जर्मन जैन श्राविका डॉ. चारलेट क्रॉस (Dr. Charlotte Krause) का नाम विशेष उल्लेखनीय है, जो भारत में जैनाचार्य के सम्पर्क से इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपने जीवन में श्राविका के व्रतों को अंगीकार किया तथा अपना नाम भी सुभद्रादेवी रख दिया था। उन्होंने जैन विद्या से संबंधित अनेक विषयों पर शोधपूर्ण निबंध लिखे थे। इसी प्रकार फ्रांसीसी मूल की मेडम केइया जैन धर्म के प्रति इतनी आस्थावान् थी कि उसने अपना संपूर्ण जीवन जैन विद्या के अध्ययन और शोध में व्यतीत कर दिया। इसी प्रकार अंग्रेज युग की डॉ स्टीवेंसन ने 'दी आर्ट ऑफ जैनिज़म' ग्रंथ लिखकर विश्व को जैन धर्म से परिचित कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। शिक्षा के प्रचार प्रसार में आरा (बिहार) की ब्रह्मचारिणी चंदाबाई का नाम विशेष उल्लेखनीय है । इसी प्रकार सोलापुर की सुमतिबाई शाह का नाम भी अग्रगण्य है। इन्होंने जैन आश्रमों और विद्यालयों की स्थापनाकी एवं नारी जाति को शिक्षित कराने में विशेष रूचि रखी। इंदौर की कमला जीजी जैन एवं लुधियाना की देवकी देवी जैन ने जैन स्कूल में एक प्राचार्या के रूप में कार्य किया और जैन विद्यालयों के क्षेत्र में अपने विद्यालय का नाम सर्वोपरि रखा। समाज सेवा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की श्रीमती मदनकँवर पारख का नाम उल्लेखनीय है। गौशाला, गुरूकुल तथा धार्मिक पाठशाला आदि के संचालन में इनकी सेवाएँ अपरिमित है, सादगी और सेवा ही इनका सूत्र है। आचार्य रजनीश इन्हें अपनी धर्ममाता के रूप में सम्मानित करते थे । लुधियाना की श्रीमती जिनेंद्र जैन ने अनेक शिक्षण एवं सामाजिक संस्थाओं को दान द्वारा पोषित किया तथा उन संस्थाओं की संचालिका भी रही हैं। श्रीमती सुधारानी जैन, दिव्या जैन आदि के नाम विशेष रूप से दष्टव्य है। स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भारतीय नारियाँ जहाँ कूद पड़ी, वहीं जैन श्राविकाओं ने भी शूरवीरता के साथ इसमें अपना सहयोग दिया। उनमें अंगूरी देवी, रमा जैन, चंदाबाई, मदुला बाई, नन्हीं बाई आदि के नाम उल्लेखनीय है। इन्होनें सत्याग्रह आंदोलन व नमक आंदोलन में भाग लिया तथा स्वदेशी प्रचार हेतु कई महिलाओं ने अपने बहुमूल्य विदेशी वस्त्रों को जला कर खद्दर एवं सूती वस्त्रों को जीवन में अपनाया । इसी प्रकार साहित्य लेखन, कला, धर्म, तप तथा विविध क्षेत्रों में श्राविकाओं के कतिपय अवदानों को निम्न रूप में रेखांकित करने का प्रयत्न किया है।
उपसंहार
नई दिल्ली की डॉ. सुनिता जैन लेखन प्रिय व्यक्तित्व की धनी है। अब तक उनकी साठ (६०) कतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आप भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड से विभूषित तथा भारत रत्न एवं अन्य साहित्यिक सम्मान से सम्मानित की गई, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका से भी सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में आप भाग ले चुकी है। राजस्थान फलौदी की डॉ. मिस कांति जैन को भारत एवं कनाड़ा में अनुसंधान कार्य करते समय अनेक प्रकार की शिक्षा-वत्तियाँ प्राप्त हुई। आप जनकल्याणकारी सेवाओं में आज भी संलग्न हैं। श्रीमती रमारानी जैन ने जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों का सैंकड़ों की संख्या में संपादन किया। आपने ज्ञानपीठ की स्थापना की। मैसूर विश्व - विद्यालय की "जैन विद्या और प्राकृत अध्ययन", अनुसंधान पीठ की स्थापना आपके द्वारा हुई । ज्ञानोदय मासिक पत्र का प्रकाशन भी करवाया। शिकोहाबाद निवासी चिरोंजाबाई ने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा एवं ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित किया था । आप अनेक कॉलेज, महाविद्यालय, गुरूकुल, पाठशालाएँ आदि शिक्षण संस्थाओं की संस्थापक रही है। मुर्शीदाबाद निवासी विदुषी रत्नकुँवर बीबी का नाम भी उल्लेखनीय है । आप संस्कृत की पंडित, फारसी जबान की ज्ञाता, युनानी तथा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की ज्ञाता थी। आपका भक्ति काव्य संग्रह "प्रेमरत्न" नामक ग्रंथ प्रसिद्धि प्राप्त ग्रंथ है। प्रो. डॉ. विद्यावती जैन विदुषी परंपरा में पाण्डुलिपियों का प्रामाणिक संपादन एवं अनुवाद करने वाली संभवतः सर्वाधिक अनुभवी एवं सुपरिचित हस्ताक्षर है। आपने महाकवि सिंह की अपभ्रंश भाषा में रचित प्रद्युम्नचरित्र का एवं महाकवि बूचराज के प्रसिद्ध मदनयुद्ध काव्य नामक कृति का सफल संपादन किया है।
महामहीम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम द्वारा पुरस्कृत डॉ. सुधा कांकरिया ने साहित्य, आरोग्य, ग्राम विकास, शैक्षणिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया है। उनकी इस बहुमुखी प्रतिभा संपन्नता हेतु उन्हें निर्मल ग्राम योजना के अंतर्गत
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