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________________ 658 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.११४ श्रीमती प्रीति लोढ़ा, एम. ए. : जोधपुर में अत्यंत सम्पन्न और प्रतिष्ठित मेहता परिवार में जन्म लेकर भी अपनी पारिवारिक परम्पराओं और सीमाओं के बीच संगीत साधना करके अपनी स्वरलहरी को अखिल भारतीय स्तर के सम्मेलनों तक गुंजानेवाली प्रीतिजी का विवाह जोधपुर में दिनांक ६ मई १६५६ को विज्ञान वेत्ता व साहित्य-संगीत प्रेमी डॉ. गोपालसिंहजी लोढ़ा से हुआ। उससे आपकी संगीत साधना में कोई बाधा नहीं आई। आपने अपने संगीत-गुरु पंडित बी.एन. क्षीरसागर ग्वालियर वालोंसे संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त किया और एक बार श्री रंगम मंदिर त्रिचुरापल्ली में आयोजित अखिल भारतीय रसिकवर संगीत सम्मेलन में भी भाग लिया। आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से संगीत में प्रथम श्रेणी में एम.ए. की उपाधि ग्रहण की। साथ ही गांधर्व महाविद्यालय मंडल, बंबई की विशारद परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपने राजस्थान के जोधपुर, उदयपुर एवं अजमेर के अनेक संगीत प्रतिष्ठानों द्वारा आयोजित समारोहों में अपना कार्यक्रम दिया और एक बार श्री रंगम मंदिर त्रिचुरापल्ली में आयोजित अखिल भारतीय रसिकवर संगीत सम्मेलन में भी भाग लिया। आपने विशेष रूप से ख्याल, ध्रुपद, धमार, तराना एवं भजनों की गायकी में दक्षता प्राप्त की है। ७.११५ श्रीमती प्रसन्न कुँवर भंडारी : यश लिप्सा से कोसों दूर, समाज कल्याण एवं सेवा को अपने जीवन का ध्येय बना लेने वाली मौन साधिका श्रीमती प्रसन्न कुँवर से जैन जाति गौरवान्वित हुई है। राजस्थान के यशस्वी स्वतंत्रता सेनानी श्री केसरीसिंह बारहठ के कोटा स्थित जर्जर आवास को जोधपुर की इस प्रवासी महिला ने पुण्य स्थली बना दिया है। सन् १६५८ में समाज सेवा की उत्कट भावना से प्रेरित श्रीमती प्रसन्न कुँवर ने यहाँ अनाथ बच्चों की एक पाठशाला खोलकर अपनी रचनात्मक प्रवत्तियों का श्री गणेश किया। जल्द ही इस हेतु उन्होंने नगर विकास समिति का गठन कर उसे पंजीकृत करा लिया। इस कार्य में सेवाभावी नागरिकों एवं समाज कल्याण विभाग ने भी सहयोग किया। परिणामतः आज यह संस्थान वट वक्ष की तरह फैलकर सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का कार्य कर रहीं हैं। पिछड़े इलाके में चल रही बालवाड़ी से ८० एवं प्राथमिक शाला में १२५ बालक-बालिकाएँ लाभान्वित हो रहे हैं। सन् १६७८ से संचालित निराश्रित बाल गह में ३१ बालक रह रहे हैं जो विभिन्न राजकीय विद्यालयों में अध्ययन रत हैं। इन्हें यहाँ वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है एवं हीन भावना से मुक्त, स्वस्थ मन वाले, चरित्रवान नागरिक बनाने का प्रयत्न किया जाता है। संस्थान द्वारा संचालित संक्षिप्त पाठ्यक्रम में १८ एवं अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र में २७ बालिकाएँ शिक्षा लाभ ले रही हैं। परित्यक्त शिशुओं का प्रतिपालन केन्द्र संस्थान का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। अनाथ बच्चों की इस सराहनीय सेवा के लिए जिला प्रशासन ने आपको सम्मानित भी किया है। पिछड़े क्षेत्र की महिलाओं को विभिन्न प्रकार के क्राफ्ट सिखाए जाते हैं एवं उन्हें सामाजिक बुराईयों के प्रति सचेत किया जाता है। संस्थान गर्भवती महिलाओं को आश्रय देने का शुभारम्भ भी कर चुका है। कामकाजी महिलाओं के शिशुओं की दिन भर देखभाल के लिए खोले गए पालना गह में २५ शिशुओं की देख रेख के लिए मुफ्त व्यवस्था है। संस्था द्वारा संचालित औषधालय में १३०० मरीज लाभान्वित हो चुके हैं। अपंग विधवा एवं परित्यक्त महिलाओं के लिए समाज कल्याण बोर्ड की सहायता से एक धागा रीलिंग उद्योग खोला गया हैं जिसमें २५ महिलाएँ लाभान्वित हो रही है। इन सभी कार्यक्रमों को श्रीमती भंडारी जिस समर्पित भाव से संचालित कर रही हैं वह सभी के लिए अनुकरणीय है। उनके इस अभियान में उनके पति श्री महावीरचन्द जी . भंडारी एवं अन्य परिवारीजनों का भी सराहनीय सहयोग है। ७.११६ श्रीमती शशि मेहता : अर्थशास्त्र और सांख्यिकी जैसे रूखे विषय में सन् १६७६ में बंबई विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त कर स्नातक उपाधि धारण करनेवाली श्रीमती शशि मेहता बंबई के सहायक आयकर आयुक्त श्री गोवर्धन मलजी सिंघवी की सुपुत्री हैं। आपका जन्म जोधपुर में दिनांक ८ जुलाई १९५५ को हुआ। आप अपने स्कूली जीवन से ही प्रतिभाशाली छात्रा रहीं और जितने वर्ष कॉलेज में अध्ययन किया, आपको एकाधिक प्रतिभा सम्पन्नता की छात्रवत्तियाँ मिलती रही जैसे रमाबाई रानाडे स्कॉलरशिप, गवर्नमेंट मेरिट स्कॉलरशिप व एल्फिस्टन कॉलेज ओपन मैरिट स्कॉलरशिप। बी.ए में प्रथम आनेपर आपको राष्ट्रीय छात्रवत्ति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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