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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
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७.११२ डॉ. सरयू डोसी :
भारत की सांस्कृतिक विरासत को अपनी अथक शोध एवं समीक्षाओं से उजागर करने वाली, अपरिमित सौन्दर्य की धनी एक और महिला रत्न हैं जिन्हें पाकर ओसवाल समाज गौरवान्वित हुआ है। वे हैं भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति श्रेष्ठी बालचन्द हीराचन्द डोसी के खानदान की पुत्रवधू श्रीमती सरयू डोसी। प्रसिद्ध समीक्षक श्री खुशवंतसिंह ने विवेक, सौन्दर्य एवं सम्पत्ति के इस ऐश्वर्यशाली संगम को एक अनुपम संयोग माना है। संवत् २०१० में बम्बई युनिवर्सिटी से कला-स्नातक होकर सरयूजी ने बम्बई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में चित्रकला एवं रेखांकन में विशेष योग्यता हासिल की। 'फिएट' मोटर कार के प्रसिद्ध निर्माता बालचन्द हीराचन्द खानदान के कुल दीपक श्री विनोद डोसी से आपका परिणय हुआ। संवत् २०१५ में सरयूजी ने अमरीका की मिचिगन युनिवर्सिटी से आर्ट हिस्ट्री में स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की एवं तत्काल अपनी अभिनव रुचि के अनुरूप शोध कार्य में संलग्न हो गई। संवत् २०२८ में बम्बई युनिवर्सिटी ने "प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति" पर आपका शोध प्रबन्ध स्वीकार करते हुए आपको पीएच.डी. की उपाधि से सम्मानित किया। शिकागो युनिवर्सिटी में मुगल कालीन चित्रकला का विशेष अध्ययन कर आपने भारत की सूक्ष्म ;उपजनपद चित्रकला के विविध आयामों एवं इतिहास पर विशेषज्ञता हासिल की। आपकी अनवरत शोध के फलस्वरुप पुरातन जैन मन्दिरों एवं ग्रंथ भंडारों से अनेक विश्व-विश्रुत कलाकृतियों का उद्धार हो सका। इसी साधना की फलश्रुति हैं "मास्टर पीसेज ऑफ जैन पेंटिंग्स" (१६८५) एवं 'ए कलेक्टर्स ड्रीम' (१९८७) जैसे ग्रंथ जो कला जगत की अमूल्य धरोहर हैं।
श्रीमती डोसी विश्व की अनेक युनिवर्सिटियों द्वारा विजिटिंग प्रोफेसर' के गरिमा पूर्ण पद पर आमंत्रित होकर प्राचीन भारतीय संस्कृति की यश गाथा विश्व के कोने-कोने में फैला चुकी हैं। संवत् २०३३ में अमरीका की मिचिगन यूनिवर्सिटी एवं संवत् २०६३ में केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने आपको सम्मानित किया। युरोप के अनेक शिक्षण एवं सांस्कृतिक संस्थानों ने वार्ताएँ आयोजि भारतीय आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के अतिरिक्त बी. बी. सी. लन्दन द्वारा भी ये वार्ताएँ प्रसारित की गई।
भारतीय सिनेमा के सन्दर्भ में शोध कार्य आपकी अभिनव रुचि का द्वितीय सोपान है। संवत् २०३० में आपने न्यूयार्क युनिवर्सिटी से फिल्म तकनीक एवं निर्माण में विशेषज्ञता हासिल की। भारतीय सिनेमा के सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवदान को रेखांकित करने वाले आपके निबंध विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। छायांकन (फोटोग्राफी) भी आपका प्रिय विषय रहा है। संवत् २०३८ से २०५३ तक आपने कला जगत की अभिनव पत्रिका 'मार्ग' का सफल सम्पादन किया। जब संवत् २०४३ में भारत सरकार द्वारा विश्व को भारत की सांस्कृतिक विरासत से परिचय कराने हेतु ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया' का विदेशों में आयोजन किया गया तो आप उसकी मानद सदस्य मनोनीत हुई। इस सन्दर्भ में प्रकाशित "दी इंडियन वूमन" (भारतीय नारी) ग्रंथ के लेखन एवं चित्रण का श्रेय आप ही को है।०५ ७.११३ श्रीमती ममता डाकलिया :
बचपन से ही अपने विद्यालय के उत्सवों में अपने स्वरमाधुर्य और भावपूर्ण गायिकी के लिए लोकप्रियता प्राप्त करनेवाली ममताजी जोधपुर के श्री रतनचंदजी कर्णावट व श्रीमती श्यामलताजी की सुपुत्री हैं। ममताजी को संगीत में अभिरुचि अपनी पारिवारिक परम्परा से विरासत में मिली। आपके पितामह स्व. हंसराज जी कर्णावट समाज सुधार के गीतों के रचयिता व लोकप्रिय गायक थे। आपका जन्म जोधपुर में सन् १६५६ में हुआ। वहीं आपने संगीत का विषय लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि ग्रहण की। विवाहोपरांत आप अपने पति श्री पारसमलजी डाकलिया, सी.ए. के साथ कुछ वर्ष
। पारसमलजी डाकलिया. सी.ए. के साथ कछ वर्ष दिल्ली में रहीं और सन १६-३ में उनके बंबई आ जानेपर बंबई रहने लगी। विवाह के बाद भी आपकी संगीत-साधना चलती रही और आपने शास्त्रीय संगीत में गांधर्व महाविद्यालय बंबई से विशारद व अलंकार की उपाधि प्राप्त की। ममताजी ने ८ वर्ष की आयु में कलकत्ता दूरदर्शन पर एक राष्ट्रीय गीत पेश किया था। जिसे सभी ने बहुत पसन्द किया। १४ वर्ष की आयु से ही आप आकाशवाणी पर लोकगीत प्रस्तुत करती रही हैं। अध्ययनकाल में आपने मंडल स्तर की अनेक संगीत प्रतियोगिताएँ जीती और कॉलेज में पढ़ते समय संगीत नत्य व नाट्य प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही हैं। आपने सुगम संगीत और राजस्थानी लोकगीत प्रस्तुत करने में विशेष दक्षता प्राप्त की है और सुगम संगीत में जोधपुर विश्वविद्यालय से भी प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं।१०६
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