SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 678
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 656 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान इस आंदोलनी माहौल के बीच भी आपने वर्षों पूर्व छोड़ा हुआ अध्ययन पुनः आरम्भ किया और १९७३ में अपनी पुत्री के साथ आपने भी जोधपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए.की उपाधि प्राप्त की। हालही में आपने अपने निवासस्थान पर ही मीरा संस्थान के अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रशिक्षण केन्द्र कायम किया है जिसमें विभिन्न गांवो से आई ५२ महिलाएँ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं। आपका घर ही उनका छात्रावास है ओर आप ही उनकी माँ हैं जिन्हें वे क्षणभर भी अपने से अलग नहीं करना चाहतीं। आप उनमें चेतना जगाने का एवं मनौवैज्ञानिक तरीके से अंध विश्वासों और रूढ़ियों से मुक्त करके सुसंस्कृत बनाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं । १०२ ७.११० श्रीमती विमला मेहता : श्रीमती विमला मेहता का जन्म जोधपुर के श्री हरखराजजी लोढ़ा के घर हुआ। जोधपुर के तत्कालीन राजमहल कॉलेज से बी.ए. की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् विवाह हो जाने से आप पति श्री वीरेन्द्रराज जी मेहता के साथ दिल्ली में रहने लगी। इसी बीच आपने साहित्य भूषण की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और अपने पति एवम् उनके साहित्यसेवी मित्रों की प्रेरणा से लेखनकार्य आरम्भ किया। वैसे विमलाजी की लेखन में रूचि विद्यार्थी जीवन से ही थी और आप अपनी कॉलेज की पत्रिका 'शंखनाद' की सहसम्पादिका थी। हिंदुस्तान साप्ताहिक में 'पुरुषों के क्षेत्र में महिलाएँ' शीर्षक से आपकी एक लेखमाला प्रकाशित हुई जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया। उसी से प्रेरित होकर आपने अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के अवसर की ३२ महिलाओं का जीवन परिचय प्रस्तुत करनेवाले "आज की महिलाएं" ग्रंथ का प्रणयन किया। इससे पूर्व आपकी एक कृति 'भारत की प्रसिद्ध महिलाएं' प्रकाशित हो चुकी थी। दिल्ली में रहते हुए नारी जीवन व पारिवारिक समस्याओं पर आपके लेख, सभी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। बाल साहित्य के क्षेत्र में भी आपने सुंदर कहानियाँ लिखी हैं जो 'रोचक कहानियाँ' शीर्षक के अन्तर्गत पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं। साहित्य सजन के अतिरिक्त विमलाजी की रुचि के विषय हैं :- बागवानी व गहसज्जा। आपके पति श्री वी. आर. मेहता केन्द्रीय सचिवालय में जहाजरानी विभाग में उच्चाधिकारी बन गये और तद्उपरान्त वे एशियन डेवेलपमेंट बैन्क के उच्च अधिकारी बने तो आप उनके साथ मनीला चली गई।०३ ७.१११ श्रीमती सुशीला बोहरा : सुशीलाजी हमारे समाज की उन गिनी चुनी सुशिक्षित महिलाओं में से हैं जो अर्थोपार्जन द्वारा स्वयं को आत्म-निर्भर बनाने के साथ-साथ अपना अतिरिक्त समय पीड़ित मानवता की सेवा में समर्पित कर रही हैं। आपका जन्म जोधपुर में श्री मूलकराजजी धारीवाल के यहाँ १० अप्रेल ११४० को हुआ था। आपका विवाह देवरिया (जैतारण) निवासी स्व. श्री पारसमलजी बोहरा से हुआ परन्तु युवावस्था में ही एक पुत्री के पिता बनकर वे भगवान को प्यारे हो गये। तब सुशीलाजी ने आत्मनिर्भर बनकर स्वयं को अध्यात्म साधना के साथ-साथ लोक-सेवा में लगाने का निश्चय किया। आपने जोधपुर विश्वविद्यालय से एम.ए.(राजनीतिशास्त्र) किया और फिर बी.एड. करके १६६७ में महेश शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय जोधपुर में व्याख्याता बन गई और आज भी वहीं कार्यरत हैं। यहाँ आप अपने संस्थान से निकलनेवाली शैक्षिक पत्रिका 'एज्यूकेशनल हैराल्ड' की सह-सम्पादिका भी हैं। आप अपने जीवन का दूसरा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनेक आध्यात्मिक तथा मानव-कल्याणकारी सेवा संस्थानों से जुड़ी हैं। आप नेत्रहीन विकास संस्थान, जोधपुर की अध्यक्षा हैं। साथ ही आप जोधपुर के गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा और महावीर इंटरनेशनल जोधपुर की संयुक्त सचिव भी हैं। आप जोधपुर विश्वविद्यालय की सीनेटर हैं और अखिल भारतीय महावीर जैन श्राविका संघ, मद्रास की अध्यक्षा भी। आप भोपालगढ़ के मरुधर खादी ग्रामोद्योग संस्थान की संयुक्त सचिव हैं। इनके अतिरिक्त आप अनेक संस्थाओं की कार्यसमिति की सदस्या हैं जिनमें मुख्य है- जोधपुर नागरिक एसोसियेशन, जैन विद्वत् परिषद जयपुर, महावीर विकलांग परिषद्, सम्यक् ज्ञान प्रचारक मंडल जयपुर इत्यादि।०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy