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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। आप अच्छी वक्ता रहीं और अपने विद्यार्थी जीवन में वाद-विवाद के अनेक पुरस्कार जीतें। आपने सन् ७५ में अंतर-महाविद्यालय लोकनत्य में भी भाग लिया और पुरस्कृत हुई।
विवाहोपरांत आप अपने पति श्री नरेश मेहता के साथ दिल्ली आकर रहने लगी और यहाँ अंग्रेजी के प्रसिद्ध राष्ट्रीय दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' में संवाददाता का कार्य करने लगी। इसके साथ-साथ आप राष्ट्र व समाज की ज्वलंत समस्याओं पर निरंतर लिखती रहती हैं। आकाशवाणी के स्पॉट लाइट कार्यक्रम में आप अनेक बार आधुनिक जीवन की विभिन्न समस्याओं जैसेमहिलाओं पर अत्याचार, परिवार नियोजन, व्यापारी मेले और मिलावटी माल इत्यादि पर प्रकाश डाल चुकी हैं।१०६ ७.११७ सुश्री प्रभा शाह :
श्रवणशक्ति से सर्वथा विहीन होनेपर भी भारत में ही नहीं, विदेशों में भी अपनी चित्रकला की छाप छोड़नेवाली सुश्री प्रभा शाह का जन्म सन् १६४७ में जोधपुर में हुआ। आपका मूल निवास स्थान सिरोही है जहाँ से आपके पितामह जोधपुर आकर बसे। आपके पिता श्री लखपतराज शाह भी कुछ वर्षों तक जोधपुर के एस.एम. के. कॉलेज में व्याख्याता व उदयपुर विश्वविद्यालय के कुल सचिव रहे । आजकल आप दिल्ली में केंद्रीय सरकार में प्रौढ़ शिक्षा के उच्चाधिकारी हैं। प्रभाजी ने अपनी शिक्षा नई दिल्ली के लेडी नॉइस मूक, बधिर ओर अंध विद्यालय में ग्रहण की और चित्रकला का प्रशिक्षण कानोड़िया महाविद्यालय जयपुर और उदयपुर में लिया। तदनन्तर, त्रिवेणी कला संगम दिल्ली में कार्य करते हुए आपकी कला में निखार आया। आप भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग की सदस्य (फैलो) और राजस्थान ललितकला अकादमी की कार्यकारिणी समिति की सदस्या हैं। अभी आप दिल्ली में प्रभा इंस्टीट्यूट के नाम से विकलांगों के लिए कला, कौशल और सांस्कृतिक प्रशिक्षण का केन्द्र चला रही हैं। प्रभाजी के चित्रों की एकल प्रदर्शनियाँ दिल्ली में ५ बार ओर जयपुर, बंबई, मद्रास, चंडीगढ़ और टोरंटो (कनाड़ा) में एक-एक बार लग चुकी हैं और इन्हीं शहरों में आयोजित अन्य कला-प्रदर्शनों में भी अनेक बार भाग ले चुकी हैं। एक बार लंदन में आयोजित विकलांगों की अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में भी आप भाग ले चुकी हैं। आप नई दिल्ली, बंबई, मद्रास, और जयपुर के प्रतिष्ठित कला-संस्थानों द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भी सक्रिय सहयोग देती रही हैं। आप अपनी कलाकृतियों के लिए अनेक संस्थानों द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित की जा चुकी हैं जिनमें मुख्य हैं :
१. बधिरों की कॉमन हैल्थ सोसाइटी, लंदन। २. तूलिका कलाकार परिषद्, उदयपुर। ३. अखिल भारतीय ललित कला प्रतियोगिता एक ध्वनि, नई दिल्ली। ४. राजस्थान ललित कला अकादमी पुरस्कार १६७५
अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष पुरस्कार, बंबई १६७५ ६. महाकौशल कला परिषद, रायपुर | ७. राजस्थान सरकार द्वारा १६८१ में स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार। ८. फैडरेशन ऑफ यूनेस्को ऐसोसियेशन, नई दिल्ली १६८१, राजस्थान संस्था संघ नई दिल्ली १६८१ राजस्थान संस्था
नई दिल्ली द्वारा सम्मान १६५१ इत्यादि। इसके अतिरिक्त भारत के अनेक संस्थानों में आपके चित्र संग्रहित हैं।११० ७.११८ डॉ. मिस कांति जैन :
सुश्री कांति जैन का जन्म फलौदी में दिनांक १० जून १६३६ को हुआ था। आपके पिता श्री चम्पालालजी व माता श्रीमती केसरबाई जैन हैं। आपने सन् १६५६ में राजस्थान विश्वविद्यालय से वनस्पति शास्त्र में एम.एस.सी. की उपाधि प्राप्त की और फिर ६ वर्ष तक महारानी सुदर्शना कॉलेज बीकानेर तथा महाराजा व महारानी कॉलेज जयुर में व्याख्याता का कार्य किया। तत्पश्चात १४ वर्ष तक कनाडा में रहकर शोध कार्य करती रही तथा सन १६७३ में टोरंटो विश्वविद्यालय से पीएच.डी की उपाधि ग्रहण की। इस अवधि में आप उसी विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य भी करती रहीं। आपके शोध का विषय था मलानुरागी ककुरमुत्ते का जीवरसायनिक व शरीरवैज्ञानिक अध्ययन (बायोकेमिकल एंड फीजियोलॉजिकल स्टडीज ऑफ कोप्रोफिलस फंगी)। सन् १६७३ से
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