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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास ७.६४ सेठानी हरकौर जी: आपका समय वि.सं. १६०१ से १६२० तक का है। आप मुंबई के सेठ मोतीचंद नाहटा की सुपुत्री, श्रीमान् केसरी सिंह जी की पुत्रवधु एवं अहमदाबाद निवासी सेठ हठी सिंह जी की तीसरी पत्नी थी। आपने धार्मिक ज्ञान में पंच प्रतिक्रमण, जीवाजीव विचार, नवतत्व आदि का ज्ञान प्राप्त किया था। आपने पति के साथ रेशम और कीरमच के व्यापार में सफल सहायिका का काम किया था। सेठानी हरकौर ने अहमदाबाद में दिल्ली दरवाजे पर बावन जिनालयों का विशाल जैन मंदिर बनवाया तथा दूर देशों से कारीगर बुलवाकर संवत् १६०३ में सेठानी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया था। समारोह पूर्वक आचार्य शांतिसागर सूरि के हाथों प्रतिमाएं स्थापित करवाई। मूर्ति प्रतिष्ठा के समय सेठानी ने एक लाख जैन धर्म के नुमाइंदों को परदेशों से आमंत्रित किया था। शत्रुजय तीर्थ की मिशाल पर बने मंदिर पर उसने आठ लाख रूपए खर्च किये थे। सम्मेदशिखर एवं अन्य तीर्थों की यात्रा के लिए उसने अनेक संघ निकाले । सरकार ने उन्हें नेक नामदार सरवावत बहादुर का खिताब बख्शा। उस युग में वो हरकौर सरकार के नाम से प्रसिद्ध हुई। संवत् १६२० तक के शिलालेख एवं प्रशस्तियों में सेठानी हरकौर का नाम उपलब्ध होता है। इस प्रकार इतने बड़े व्यापार की अनेक शाखाओं का कुशलतापूर्वक संचालन करनेवाली एवं धार्मिक संघों का नेतत्व करनेवाली यह एक मात्र नारी रत्न है, जिसमें स्त्री शक्ति के चमत्कारों के दर्शन हुए।५८ ७.६५ सती पाटणदे आप मंत्री श्री दयालदास की धर्मपत्नी थी। बादशाह औरंगजेब की फौज ने जब चित्तौड़ पर हमला किया, तब इस वीरांगना ने स्वयं अपने पति के साथ मिलकर युद्ध में लड़ाई लड़ी। एक बार जब शत्रु सेना ने उन्हें घेर लिया तब पाटणदे ने अपने पति से कहा कि वे तलवार चलाकर उसे मार दें ताकि शत्रु उसे पकड़कर उसकी देह को अपवित्र न कर सके। इस सती के हाथों से झील की नींव रखी गई थी। ओसवाल जाति के इतिहास में वीरांगना सती पाटणदे का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।५६ ७.६६ कंकुबाई जैनः आप सेठ हीराचंद मेमचंद जैन की सुपुत्री था। आप अल्प आयु में ही वैधव्य को प्राप्तहो गई थी।किंतु आपने अपने जीवन को धर्म एवं साहित्य सेवा में समर्पित कर दिया। जैन महिला समाज में ज्ञान का प्रचार एवं प्रसार किया। चरित्रशुद्धिव्रतकथा, जैन ह (१६२१) देवसेनाचार्य कत तत्वसार तथा अमतचंद्राचार्य कत समयसार टीका के श्लोक का अनुवाद (१६२३) एवं । पद्मनंदि आचार्य कत अनित्यपंचाशत् का अनुवाद (१६२५) आदि आपकी प्रकाशित रचनाएँ हैं। महावीर ब्रह्मचर्याश्रम कारंजा में आपकी स्मति में कंकुबाई धार्मिक पाठ्य पुस्तकमाला स्थापित की गई है जिसमें दस पुस्तकों का संस्करण प्रकाशित है। ६० ७.६७ मनमोहिनीदेवीः - (वि० सिं० २०३२) अजमेर निवासिनी श्रीमती मनमोहिनी देवी ने "ओसवाल; दर्शन दिग्दर्शन" नामक एक बध्दाकार ग्रंथ का प्रकाशन कराया है। लेखिका ने बड़ी विद्वत्ता के साथ इस ग्रंथ में ओसवाल जाति के उत्पत्ति संबंधी मत मतांतरों की समीक्षा प्रस्तुत की है,तथा जाति का गौरव बढ़ानेवाले इंतिहास पुरुषों तथा विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख भी किया है। ओसवालों के पंद्रह सौ गोत्रों की क्रमवार सूची है,। ढाई सौ बहद् पष्ठों में हजारों ओसवालों के परिचय युक्त चित्र प्रकाशित करने से यह ग्रंथ बहदाकार बना तथा नाम की उपादेयता भी सिद्ध हुई।६१ ७.६८ श्रीमती पुष्पादेवी कोटेचाः ओसवाल श्रेष्ठि रतनलालजी कोटेचा की वह धर्मपत्निी थी। सन् १६.२ (वि. सं. १६६८) में सूरत के जन सत्याग्रह में भाग लेने के फलस्वरूप आप गिरफ्तार कर ली गई एवं दंडित हुई ! आपने दण्ड स्वरूप हुआ जुर्माना न देकर जेल जाना पसन्द किया।६२ ७.६६ श्रीमती सरस्वती देवी रांकाः ___ आप कलकत्ता में राष्ट्रीय आन्दोलन में अग्रणी श्री सरदारसिंह जी महनोत की भतीजी एवं नागपुर के प्रसिद्ध कांग्रेसी कार्यकर्ता श्रीपूरणचन्द जी रांका के अनुज की धर्मपत्नी थी। अतः राष्ट्रीय आन्दोलन से आप सहज ही जुड़ गई। गांधी जी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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