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________________ 644 आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.५१ श्रीमती चिरोंजाबाई जैन : __ आप शिकोहाबाद निवासी मौजीलाल जैन की सुपुत्री तथा टीकमगढ़ (म. प्र.) निवासी श्रीमान् भैयालालजी सिंधई की धर्मपत्नी थी। आपने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा एवं ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित किया। आपने निम्नलिखित संस्थाओं की स्थापना की। यथा : काशी में संस्कत महाविद्यालय, जवलपुर तथा खुरई में वर्णी गुरूकुल महाविद्यालय, ललितपुर में वर्णी इंटर कॉलेज एवं वर्णी महिला कॉलेज की स्थापना, खतौली (उ.प्र.) में सन् १६३५ में कुंद-कुंद विद्यालय की स्थापना, शाहपुर में विद्यालय, बीना में श्री दिंगबर जैन संस्कृत महाविद्यालय, द्रोणगिरी पर गुरूकुल जैन पाठशाला, कटनी में पाठशाला, बुंदेलखंड के सागर नगर में सतर्क सुधा तरंगिणी जैन पाठशाला, इसी प्रकार पपौरा साढ़मल, मालथौन, मडावरा आदि स्थानों में विद्यालयों की स्थापना कराई। ये सारी शिक्षण संस्थायें सांप्रदायिक संकीर्णता की भावना से बहुत ऊपर उठकर स्थापित हुई। इन संस्थाओं ने धर्म, जाति, गरीब, अमीर के भेद से रहित होकर सभी वर्गों को समान रूप से सहयोग दिया है। चिरोंजाबाई का देहावसान ७५ वर्ष की आयु में हुआ था। ७.५२ विदुषी रत्नकुँवर बीबी : आप मुर्शिदाबाद निवासी जगतसेठ गेलहड़ा गोत्रीय शाह हीरानंद की पुत्री, बनारस निवासी राजा डालचंद की पुत्रवधू एवं श्री उत्तमचंद जी जैन की धर्मपत्नी थी। आप संस्कत की पंडित थी। छहों शास्त्रों की तथा फारसी जबान की ज्ञाता थी। आपको युनानी और भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का ज्ञान था। आपने 'प्रेमरत्न' नामक ग्रंथ संवत् १८४४ में प्रकाशित करवाया था। दी हेरीटेज ऑफ इंडिया सीरीज़ में भी आपके इस भक्ति काव्य संग्रह 'प्रेमरत्न' का वर्णन है। मुंशी देवीप्रसाद से संवत् १८६२ में प्रकाशित महिला मुदुल वाणी' में आपकी गणना महिला-रत्नों में की है। भारतीय भाषाविद् सर जी.ए. ग्रीयर्सन मार्डन वरनाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान में बड़े सम्मान से आपका उल्लेख किया है। आप प्रतिदिन योगाभ्यास एवं नियमों का पालन करती थी। आपके पौत्र शिवप्रसाद सितारे हिंद, भारत सरकार में विद्यालय विभाग के तत्कालीन निदेशक रह चुके हैं। बीवी जी का स्वर्गवास १८६६ में हुआ था। उस समय आपकी उम्र लगभग ६५ वर्ष की थी।४६ ७.५३ प्रोफेसर डॉ. सुनिता जैन : आप बंसतकुंज नई दिल्ली की रहने वाली हैं। आपने अंग्रेजी में एम.ए. न्यूयॉर्क की स्टेट यूनिवर्सिटी से किया था तथा डॉक्टरेट की उपाधि अमेरिका की लेब्रास्का विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। आप प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली महिला है। अब तक साठ (६०) कतियाँ आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। भारत सरकार द्वारा आपको पद्मश्री अवार्ड से विभूषित किया गया है। प्रसिद्ध सामाजिक संस्था अहिंसा इंटरनेशनल द्वारा भी आपको सम्मानित किया जा चुका है। आप अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखिका है। डॉ. सुनिताजी अमेरिका से 'वीलैंड' सम्मान तथा मेरीसेंडोजप्रेरी स्कूनर' सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। इसके अतिरिक्त आप 'निराला साहित्यकार सम्मान एवं 'महादेवी वर्मा सम्मान' भी प्राप्त कर चुकी हैं। आप २००२.व२००४ के लिए इंदिरा गाँधी फेलो भी चुनी जा चुकी है। आपने अमेरिका, लंदन, नेपाल, बेंकॉक, मारीशस में प्रायोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी भाग लिया है। ७.५४ श्रीमती लाड़देवी बोथरा : आप जयपुर निवासी श्रीमान् उग्रसिंह जी बोथरा की धर्मपत्नी थी। आपका जन्म संवत् १६८२ में हुआ था |तथा स्वर्गवास २३ फरवरी १६८३ को हुआ था। आपने १७ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया था तथा ३० वर्ष तक तपस्या में लीन रही। ४२ व्रत, दो मासखमण, निरन्तर १०१ आयंबिल, वर्षों तक एकांतर तप, चप्पल जूते का त्याग, २० वर्षों तक हरी सब्जी का पूर्ण त्याग, चार द्रव्यों की मर्यादा प्रतिदिन दो विगय से ज्यादा सेवन न करने का नियम ग्रहण किया था। आप गुप्त दानी थी। आप सम्यगज्ञान प्रचारक मंडल की सहमंत्री थी। आपने जैन संप्रदाय के सभी साधु-सतियों की समान भाव से सेवा की थी। आपका अंधिकाश समय जप-तप, मौन, ध्यान, स्वाध्याय में व्यतीत होता था। ७.५५ डॉ. हीराबाई बोरडिया आपका जन्म सम्वत १६८१ में उज्जैन (म.प्र.) में हुआ था। आपका विवाह सन् १६३२ में मुंबई के निवासी डॉ. नंदलाल जी बोरदिया के साथ संपन्न हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में आपने बी.ए., एम.ए. तथा डावरेट की है १६७६ में शोध प्रबंध जैन धर्म की प्रमुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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