________________
538
बैद था। भाई धनपतलाल जी वैद एवं वीरेंद्र कुमार जी वैद हैं। आप श्रीमान् रेखचंद जी पारख की धर्मपत्नी हैं। आपकी तीन पुत्रियाँ शारदा कुंवर, शांता कुंवर, सुशीला कुंवर एवं एक पुत्र दीपक कुमार, पुत्रवधू, ज्योति कुंवर, पौत्र द्विपेंद्र कुमार, दो पौत्री, अभीप्सा एवं भाविता हैं। आपने ढाई तीन वर्ष की उम्र में विधिसहित सामायिक के पाठ कंठस्थ कर लिए थे तथा नियमपूर्वक माला, प्रार्थना, सामायिक आदि करती थी। आपने उम्र के दसवें वर्ष से ही लेख एवं कविताओं की रचना प्रारंभ कर दी थी । ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान भी आपने प्राप्त किया । महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर चरखा, टकली की कक्षायें भी चलायी जिसमें २५-३० बच्चों को शिक्षित किया। सन् ४० से ५० तक यानी १० वर्षों तक चंद्रपुर में धार्मिक पाठशाला चलाई, जिसमें ६० बालक-बालिकाओं को अहमदनगर पाथर्डी बोर्ड की धार्मिक परीक्षा दिलवाई। इसमें जैनेतर समाज के बच्चे भी शामिल थे। बच्चों में धार्मिक संस्कारों के उन्नयन के लिए सात नाटकों की रचना की तथा बच्चों से यथासमय प्रस्तुत करवाए। श्रीमती यशोधराजी बजाज की भावना में सहयोगी बनकर 'राजस्थान महिला मंडल' की स्थापना की जिसमें ब्राह्मण व अग्रवाल समाज की राजस्थानी महिलाएँ थीं। इस संस्था की अध्यक्षा पद पर रहते हुए मेहतर समाज के बच्चों के लिए बाल मंदिर खोला जिसमें सरकार ने कई नये कार्य सौंपे और मदद दी। कालांतर में सर्वोदय महिला मंडल के रूप में उसका रूपांतरण हुआ। इसके अंतर्गत बालक मंदिर, सिलाई क्लासेस, पॉलीटेकनिक कॉलेज एवं स्कूल आदि विविध गतिविधियां चलती रही। ससुरजी के स्वर्गगमन पर पति पत्नी ने विचार बनाकर 'बाल सेवा मंदिर' के नाम से अनाथालय खोला, जिसमें दो दिन, चार दिन, दस दिन के बच्चे सरकार द्वारा प्राप्त होते थे । सन् ७३ तक संस्था चली, इसमें ३०० बच्चों का पालन पोषण हुआ। परिजनों का बहुत सहयोग मिला । सन् ६० में आचार्य रजनीश से परिचय हुआ। उन्होंनें इन्हें पूर्व जन्म की माँ घोषित किया । सन् ७३ तक पत्रव्यवहार होता रहा। हर तीन माह में ३-४ दिन के लिए वे चंद्रपुर आते और उनके कई कार्यक्रमों में मदन कुंवर बाई सहयोगी बनती थी। सन् ७३ से सन् ८३ तक उनके विदेशी शिष्य हर तीन माह में आते तथा इनसे भारतीय खान पान, रसोई बनाना आदि सीखते थे। तत्पश्चात् उनका पूना में आश्रम निर्माण हुआ । आज भी श्रीमती मदन कुंवर सर्वोदय महिला मंडल की अध्यक्षा पद पर रहते हुए जन सेवा के कार्य कर रही है। ७.२२ श्रीमती लीलावती जैन :
आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान
आपका जन्म स्यालकोट में हुआ। आप श्रीमान् हरबंसलालजी जैन (कोटा, राज० निवासी) की धर्मपत्नी हैं। श्रीमान सुभाष जैन (प्रधान जैन दिवाकर शिक्षा समिति, कोटा) एवं श्रीमान सुधीर जैन ये आपके दो पुत्र व सुदर्शना जैन नाम की एक पुत्री हैं। आपने बाल्यावस्था में ही सामायिक प्रतिक्रमण २५ बोल का थोकड़ा सीखा। नवतत्व, गतागत, लघुदण्डक, २६ द्वार, २४ तीर्थंकरों का लेखा, देवलोक की अंगनाई, छः आरों का थोकड़ा, पाताल कलशों का थोकड़ा, २८ नक्षत्रों का थोकड़ा दान का थोकड़ा आदि कंठस्थ किये थे। बाल्यावस्था से वद्धावस्था तक सीखे हुए शास्त्रों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं। सुखविपाक सूत्र, उववाई सूत्र, सूत्रकतांग सूत्र, वीरस्तुति, नंदीसूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, श्री तत्वार्थ सूत्र, आचारांग सूत्र, साधु गुणमाला, देवाधिदेव रचना, देव रचना (८६५ सवैया कठस्थ) बाल बत्तीसी, ३३ सवैये, साधु वंदना स्तोत्र, थोकड़े शांतिनाथ चक्रवर्ती, सुदर्शन सेठ की ढाल, १२ मासा नेमि - राजुल का, बारह मासा गजसुकुमाल का, मेतार्य मुनि, निर्मोही राजा, अर्जुनमाली मगापुत्र, अंजना सती, एवंता मुनि, दशार्णभद्र राजा, मेघकुमार व कपिलमुनि की सज्झाय, अनेक चौबीसीयाँ भजन आदि आपको कंठस्थ हैं।
बचपन में ही पू. लालचंद जी म.सा. के सत्संग के कारण रात्रि भोजन, जमीकंद, होटल के भोजन, रेशमी वस्त्रों के उपयोग आदि का त्याग किया था। प्रासुक पानी का उपयोग पूर्वक सेवन करती थी । आपने अपना सांसरिक जीवन अत्यंत साद्गी एवं गरिमापूर्ण ढंग से व्यतीत किया। वर्षों से किये गये व्रतों का वे आज भी कठोरता से पालन कर रही हैं।
1
७.२३ श्रीमती टीबुबाई :
आप रतलाम निवासी श्रीमान् राजमलजी चोरडिया की धर्मपत्नी हैं। आपके सुपुत्र श्रीमान् चंदनमल जी चोरड़िया हैं। आप रतलाम के महिला कला केन्द्र, महिला स्थानक, आयंबिल खाता तथा अन्य धार्मिक संस्थाओं से सक्रिय रूप में जुड़ी हुई हैं। आप निर्भीक, सरल, शान्तस्वभावी, महिला हैं। संतों की सेवा करने में आप आगे रहती हैं। तंत्र-मंत्र एवं देवी-देवता कुछ करेंगे आप इसमें विश्वास नहीं करती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org