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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास ७. १७ मनोहरी देवी आंचलिया : आपका जन्म वि.सं १९७७ में हुआ था। आपके पिता डूंगरगढ़ निवासी श्रीमान सुगनचंद जी भादाणी तथा पति गंगाशहर निवासी सुगनचंद जी आंचलिया हैं। आप गांधीवादी विचारवाली महिला है एवं सादा जीवन व्यतीत करती थी। आप धन संपन्नता आसक्त नहीं थी । आपकी ३ पुत्रियां, १ पुत्र थे। चारों दिवंगत हो चुके हैं। आपने १५ वर्ष की अल्पायु में मासखमण तप किया था। आपने अपने जीवन काल में ३ मासखमण किये थे। दस पच्छक्खाण तीन बार किये । २५० पच्छक्खाण एक बार किया था। आपने कुरीत्तियों का विद्रोह किया। आपने बहनों में उत्साह जगाया, ५०० बहनों ने आपके पीछे घूंघट का त्याग किया | वि०सं० २००८ में मातभूमि श्री डूंगरगढ़ में ७० सदस्यों का महिला संगठन तैयार किया । वि०सं० २०१४ में घर घर जाकर १३०० अणुव्रती बनाये, विद्यालयों में संस्कारनिर्माण हेतु साधु साध्वियों के प्रवचनों का आयोजन किया। आपका स्वर्गवास वि०सं० २०५० में हुआ था ।" ७. १८ केसरी देवी छाजेड़ : आपका जन्म सरदार शहर में वि०सं० १६६८ में हुआ था । आपके पिता का नाम श्रीमान सागरमलजी दुग्गड़ एवं माता का श्रीमती भूरीदेवी दुग्गड़ था। सरदार शहर निवासी श्रीमान् बुधमलजी छाजेड़ की आप धर्मपत्नी थी । आपने ३० थोकड़े कंठस्थ किये थे। पड़ोसियों के साथ आपका आत्मीय संबंध था। आप अनुशासन प्रिय थी। कम से कम १५ दिन तथा अधिक से अधिक चार माह तक की उपासना करती थी। बीमार होने पर भी रास्ते की सेवा का पूरा दायित्व संभालती थी । पुत्र, पुत्रियों, बहुओं को अनावश्यक हिंसा से बचने की शिक्षा देती थी । वर्षा व ओस होने पर साधु साध्वियों के आहार का पूरा ध्यान रखती थी। परिवार को भी दान के लिए प्रेरित करती थी। आपका स्वर्गवस वि.सं. २०२७ में हुआ था । २ ७. १६ श्रीमती मैना बहन : 637 आपका जन्म १८६६ में हुआ था। आप श्रीमान् हेमचंद भाई की पुत्री, अमरचंद भाई कापड़िया की पौत्री थी । आपने श्री महावीर जैन विद्यालय नामक शिक्षण संस्था की स्थापना की। पच्चीस हज़ार रूपये संस्था को जैन बाल मंदिर हेतु प्रदान किये। आप मुंबई जैन युवक संघ की आजीवन मार्गदर्शिका एवं सहयोगिनी रही। देव दर्शन, सामायिक प्रतिक्रमण, रात्रि भोजन का त्याग और अभक्ष्य चीजों का त्याग आदि नियमों का पालन करती थी । धर्मरूची, समाज सेवा और राष्ट्र प्रेम के संगम से मैना बहन का जीवन त्रिवेणी सा पावन था। गांधी जी के जीवन और कार्य का बहुत बड़ा प्रभाव इन पर था धर्मपरायणता, सात्विकता परोपकारिता तथा मधुर व्यवहार उनके जीवन मे समा गई थी। कम बोलना और पल-पल का सदुपयोग करना उनकी आदत थी। दीन दुखी बहनों के लिए आप संकट मोचक थी । १३ 1 ७.२० श्रीमती कलावती जैन (जम्मू) : आपकी उम्र ८० वर्ष की है। ई. सन् १६२८ के लगभग आपका जन्म हुआ। आप जम्मू निवासी श्रीमान् बलदेव जी जैन की धर्मपत्नी हैं। आपके पिता श्रीमान् लाला नौरातारामजी जैन एवं माता श्रीमती चम्बीदेवी जैन थे। आपके एक पुत्र प्रमोदजी जैन पुत्रवधु सुजाता जैन हैं। दो पुत्रियां श्रीमती सुधा राजेन्द्र जैन - गुडगांवा (दिल्ली) एवं श्रीमती शशी सुभाष जैन लंडन हैं। आपने जैन सिद्धांत प्रभाकर, हिंदी प्रभाकर, साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न आदि परिक्षाएँ उत्तीर्ण की हैं। आप विशेष रूप से श्रमण-श्रमणियों की शिक्षा, दीक्षा, विहार चर्या की सेवा आदि में तत्पर रहती हैं। सामाजिक रूढ़ियों तथा देवी देवताओं की पूजा अर्चा में आपका विश्वास नहीं है। निःस्वार्थ भावना से संघ एवं समाज के कार्यों के प्रति आप पूर्णतया समर्पित हैं। आप तत्त्वार्थ सूत्र की अच्छी शिक्षिका है। हंसमुख स्वभाव की एवं स्वतंत्र विचारों की धनी महिला रत्न हैं। आप पर उपाध्याय कवि अमरमुनि जी म.सा. के विचारों का प्रभाव है। जहां भी जाती है आप अपनी अमिट छाप छोड़ आती हैं। आप निरन्तर ५० वर्षो से जम्मू महिला संघ की महामंत्री हैं। आचार्य सम्राट् डॉ. शिव मुनि जी म.सा. के चातुर्मास में मंत्रीपद की स्वर्ण जयंति पर समारोह पूर्वक आप सम्मानित की ७.२१ मदन कुंवर पारख (मध्य प्रदेश) 198 आपका जन्म ५.११.१६१६ को हुआ था। आपकी माता जी का नाम बिरजीबाई वैद एवं पिता जी का नाम श्रीमान् चम्पालालजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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