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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
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७.४ साहित्यिक क्षेत्र में जैन श्राविकाओं का अवदान :
साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्य को हम दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं:-श्रेयस्कारा आर प्रेयसकारी। श्रेयस्कारी साहित्य जीवन का कल्याण करने वाला, उसे ऊँचा उठानेवाला होता है। प्रेयसकारी साहित्य मनुष्य का मनोरंजन करनेवाला होता है। किंतु इच्छाओं, आकांक्षाओं और वासनाओं को जन्म देकर हमारे मानस को उद्वेलित कर देता है। असि और मसि (स्याही और कलम) जन-जागति के सशक्त शस्त्र हैं। श्रेयसकारी साहित्य द्वारा जीवन निर्माण की शिक्षायें मिलती हैं। यह हमारी संस्कति एवं सभ्यता के विकास का ज्ञान कराने के साथ ही वर्तमान एवं भविष्य के लिए उज्जवल मार्ग प्रशस्त करता है। प्राचीन काल से ही ज्ञान और विज्ञान कोष में नारियाँ अभिवद्धि करती आ रही हैं। वर्तमान काल में भी विद्वद जगत में स्वाध्याय में उपयोगी लोक मंगलकारी ग्रंथों के प्रणयन द्वारा श्राविकाएँ साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर रही हैं।
नई दिल्ली की डॉ सुनिता जैन लेखन प्रिय व्यक्तित्व की धनी हैं। अब तक उनकी साठ कतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आप भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड से विभूषित एवं भारत के अन्य साहित्यिक सम्मान से सम्मानित की गई हैं। अन्तर्राष्टीय स्तर पर अमेरिका से भी सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में भी आप भाग ले चुकी हैं। राजस्थान फलौदी की डॉ. मिस कांति जैन को भारत एवं कनाड़ा में अनुसंधान कार्य करते समय अनेक प्रकार की शिक्षा-वत्तियाँ प्राप्त हुई हैं। आप जनकल्याणकारी सेवाओं में आज भी संलग्न हैं। श्रीमती रमारानी जैन ने जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों का सैकड़ों की संख्या में संपादन किया है। आपने ज्ञानपीठ की स्थापना की है। मैसूर विश्व-विद्यालय की जैन विद्या और प्राकत अध्ययन, अनुसंधान पीठ की भी स्थापना आपके द्वारा हुई है। ज्ञानोदय मासिक पत्र का प्रकाशन भी कर रही है। शिकोहाबाद निवासी चिरोंजाबाई ने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा एवं ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित किया था। आप अनेकों कॉलेज, विश्वविद्यालयों, गुरूकुलों, एवं पाठशालाओं की संस्थापक रही हैं। मुर्शिदाबाद निवासी रत्नकुंवर बीबी का नाम भी उल्लेखनीय है। आप संस्कत की पंडित, फारसी जुबान की ज्ञाता, युनानी तथा भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की ज्ञाता थी। आपका भक्ति काव्य संग्रह 'प्रेमरत्न' नामक ग्रंथ प्रसिद्धि प्राप्त ग्रंथ है। प्रो. डॉ विद्यावती जैन विदुषी परंपरा में पाण्डुलिपियों का प्रामाणिक संपादन एवं अनुवाद करनेवाली संभवतः सर्वाधिक अनुभवी एवं सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। आपने महाकवि सिंह की अपभ्रंश भाषा में रचित प्रद्युम्नचरित्र एवं महाकवि बूचराज के प्रसिद्ध मदनयुद्ध काव्य नामक कति का सफल संपादन किया है। श्रीमती मनमोहिनी देवी ने 'ओसवाल-दर्शन-दिगदर्शन 'नामक बहदाकार ग्रंथ की रचना की जिसमें ओसवालों के पंद्रह सौ गौत्रों की क्रमबद्ध सूची है। डॉ. सरयू डोशी ने प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कति पर शोध कार्य किया। फलस्वरूप कला जगत् की अमूल्य धरोहर रूप कलाकतियाँ दष्टिगत हुई। 'दी इंडियन वीमेन' ग्रंथ के लेखन एवं चित्रण का प्रथम श्रेय आप ही को जाता है। भारतीय सिनेमा के संदर्भ में भी आपने शोध कार्य कर भारत की सांस्कतिक विरासत से हमें परिचित कराया है। डॉ. हीराबाई बोरदिया ने १६७६ में जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाओं पर शोध कार्य किया। भारत की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में आपके विशिष्ट लेख प्रकाशित होते रहते हैं। डॉ. वीणा जैन ने अनुसूचित जाति की महिलाओं, बच्चों एवं भाई-बहनों को कम शुल्क पर कम्प्यूटर प्रशिक्षण, शॉर्ट-हैण्ड राइटिगं, टाइप राइटिगं, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स आदि विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण हेतु मादीपुर दिल्ली में प्रशिक्षण केन्द्र खोला है। सोनिका जैन (पदमपुर, राज०) ने तीन दिन में संस्कत का भक्तामर स्तोत्र एवं एक दिन की अल्प अवधि में आवश्यक सूत्र कंठस्थ किया। प्रतिभा जैन (रायकोट, पंजाब) ने भी तीन दिन में संस्कत का भक्तामर स्तोत्र एवं एक दिन की अल्प अवधि में आवश्यक सूत्र कंठस्थ किया। इसी प्रकार अन्य सैंकड़ों श्राविकाओं के नाम आते हैं जिन्होनें इस वर्तमान युग में विभिन्न आगमों पर, ग्रंथों एवं ज्वलंत समस्याओं पर शोध कार्य किया, साहित्य सर्जन कर साहित्यिक भंडार में श्री वद्धि की है। ७.५ समाज, संस्कति, शिक्षा, कला, ध्यान आदि विभिन्न क्षेत्रों में श्राविकाओं-अवदान :
स्त्री व पुरूष समाज के दो अविभाज्य अंग है। गाड़ी के दो पहिये हैं। वर्तमान युग में नारी का हर दष्टि से विकास हुआ है। शिक्षित महिलाओं ने संगठन बनाकर सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध आवाज़ उठाई। फलस्वरूप बाल विवाह, मत्यु भोज, बेमेल विवाह, वद्ध विवाह, दहेज प्रथा आदि सामाजिक बुराइयाँ दूर हुईं हैं। सती प्रथा, जाति प्रथा, छूआछूत आदि कुरीतियाँ भी दूर हुई हैं। इसमें समाज सुधारक आंदोलनों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। किसी भी देश के निर्माण में नारी की विशेष भूमिका रही
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