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________________ आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान - -- -.mram होता रहा और यहां की महिलाओं को अनेक . .. ... ....... प्रदान की गई। इस महान समाजिक आंदोलन में कई भारतीय सुधारकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस मिले-जुले प्रयत्न से नारियों को अपनी प्रतिष्ठा, बल और संगठन शक्ति का सही एहसास हुआ। यही कारण है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नारियों ने अभूतपूर्व साहस, संयम और उत्सर्ग का परिचय दिया। दी के प्रारंभ में भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरूद्ध एक नया अभियान प्रारंभ किया गया, जिसमें भारतीय नारियों ने भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी भारतवासियों का नेतत्व करने के कारण इन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन की यातनाएं सहीं अपितु कारावास की सजा भी भुगती,। समय-समय पर भारतीय राजनीतिक चिंतन को महत्वपूर्ण मोड देने में भी महिलाओं ने अपना सहयोग, समर्थन और दिशा निर्देश दिया। इसी परंपरा में जैन श्राविकाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने कर्त्तव्य को पहचानकर आज़ादी के यज्ञ में अपनी आहुती दी। ७.३ स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्राविकाएँ : आदि काल से ही सैंकड़ों की संख्या में ऐसी भारतीय महिलाएँ हुई हैं, जिन्होनें आरती उतारकर अपने पतियों को सहर्ष देश सेवा व देश की रक्षा के लिए युद्ध भूमि में भेजा। उन्होंने पुरूषों को घर की चिंताओं तथा जिम्मेदारीयों से मुक्त रखा। साथ ही उनकी अनुपस्थिति में उनके कार्य को जारी रखा। स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कई जैन श्राविकाओं ने जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया, नमक आंदोलन व सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया, शराब की दुकानों के विरोध में धरना दिया आदि सभी राजनैतिक गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। १८५७ की क्रांति अपने आप में अद्भुत थी। महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, मंगल पांडे, लाला हुकुमचंद जैन, अमरचंद बांठिया आदि अनगिनत शहीदों ने कुर्बानी देकर आजादी की मशाल जलाई। इसी प्रकाश में महात्मा गांधी सहित अनेक नेताओं ने आजादी के आंदोलन को दिशा दी। गांधी जी ने अहिंसा के बल पर अपनी नीति बनाई और अंततः सफलता प्राप्त की। आज़ादी की इस लड़ाई में जैनियों ने बढ़-चढ़कर " ग लिया। जहां अनेक वीर पुरुषों ने बलिदान किया वहां अनेक लोगों ने जेल की कठोर यातानाएं सही। ऐसे भी लोगों का अवदान कम नहीं है, जिन्होनें बाहर से समर्थन और सहायता देकर आंदोलन को सफल बनाया। लगभग ४०० जैन श्रावक, श्राविकाएं स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गए। ___आज़ादी की इस लड़ाई में जैन महिलाओं ने पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य किया। कुछ महिलाएं तो सीधे ही क्रांतिकारी आंदोलनों से जुड़ी रहीं तो कुछ ने जेल की कठोर यातानाएं सहीं। अनेक महिलाओं ने गहस्थ धर्म निभाते हए ही सम्पूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली जैन महिलाओं में श्रीमती लेखवती जैन का नाम उल्लेखनीय है। सारे हिंदुस्तान में चुनाव में निर्वाचित होने वाली यह पहली महिला सदस्या थी, जो जैन जाति की सरोजिनी नायडु के रूप में विख्यात हुई। श्रीमती विद्यावती देवड़िया तथा श्रीमती सज्जन देवी महनोत ने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया एवं जेल की कठोर यातनाएँ सहन की थी। श्रीमती सुंदर देवी ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देश-प्रेम की भावना भरी थी। श्रीमती धनवती बाई राँका ने खादी एवं चरखे को अपने जीवन का अंग बनाकर समस्त समाज को गौरव प्रदान किया। श्रीमती अंगूरीदेवी को गर्भवती अवस्था में होते हुए भी छ: माह जेल की सजा सुनाई गई थी। श्रीमती गोविंद देवी पटवा ने कलकत्ता के विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देनेवाले जत्थों का वीरतापूर्वक नेतत्व किया था। श्रीमती माणिक गौरी ने विदेशी कपड़ों की होली में हजारों रूपये के विदेशी कपड़े जला दिये। ब्रह्मचारिणी पंडिता चंदाबाई शिक्षा के संबंध में महात्मागांधी से विचार विमर्श करती थी। आपने 'महिलादर्श' पत्र का संपादन भी प्रारंभ किया तथा संस्था की स्थापना करते हुए पर्दाप्रथा और दास्ता की भावना को दूर करने का प्रयत्न किया। इनके अतिरिक्त और भी कई जैन-वीरागनायें हुई हैं, जिन्होनें स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इनमें प्रमुख हैं श्रीमती कला देवी जैन दिल्ली, श्रीमती कमला सोहनराज जैन कानपुर, श्रीमती सरदार कुँवरबाई लुणिया राजस्थान, ताराबाई जैन कासलीवाल उज्जैन, आर्यिका सर्बती बाई उत्तरप्रदेश, पण्डिता सुमति बेन, श्रीमती पुष्पा देवी कोटेचा, श्रीमती बयाबाई रामचन्द्रजैन, श्रीमती मीराबाई रमणलाल शाह, श्रीमती लीलाबाई कस्तूरचंद, श्रीमती विमलाबाई गुलाबचंद, सरस्वती देवी रांका आदि। इनके अतिरिक्त यदि बहत् रूप में अनुसंधान किया जाएं तो इतिहास के पन्नों में और भी अनेक ऐसी जैन महिलायें मिल जायेंगी, होनें अपना सर्वस्व समर्पण करके देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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