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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास ७ सप्तम अध्याय आधुनिक काल की जैन श्राविकाओं का अवदान ७.१ आधुनिक कालीन परिस्थितियाँ : आधुनिक काल को नारी जागरण का काल कहा जा सकता है। बीसवीं शताब्दी में भारत वर्ष अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ। नारी का सोया हुआ आत्म-विश्वास, आत्म-विकास के लिए जागत हुआ । अपनी दिशाओं को नया मोड़ देने के लिए नारी की उत्सुकता बढ़ी । भारतवासियों ने स्वतंत्रता के खुले क्षितिज में अपने कदम बढ़ाए। पुरूष वर्ग में परिवर्तन आया। नये उद्योगों का विकास हुआ। ग्राम शहरों में परिवर्तित हुए। जन जीवन परिवर्तन के दौर से गुजरने लगा । स्त्रियाँ आत्मनिर्भर होने लगी। शिक्षा के क्षेत्र में आगे आई, फलस्वरूप सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आया। सती प्रथा, बाल-विवाह, पर्दा प्रथा पर रोक लगाई गई। शोषण की मनोवत्ति, अत्याचार, परतंत्रता का बोझ ढोते ढोते नारियां थक चुकी थी । पुरूषों के समान ही अधिकारों को प्राप्त करने एवं शिक्षा प्राप्त करने की उनकी भावना प्रबल हुई ।। अपने सामाजिक राजनैतिक, आर्थिक, पारिवारिक अधिकारों की मांग करने के लिए वह प्रयत्नशील बनी। समाज सुधारकों ने भी इसमें सहयोग दिया। संपत्ति में नारी के अधिकारों की मांग एवं परिवार में उसके स्थान को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया गया। अपने पैरों पर खड़ा होना वह अपना कर्त्तव्य या दायित्व समझने लगी । गहस्थी के कार्य क्षेत्र के अतिरिक्त देश एवं समाज की समस्याओं को सुलझाने में पुरूषों के साथ वह कदम से कदम मिलाकर सहयोग देने लगी। 629 जैन इतिहास का अवलोकन करने पर ऐसी अनेक श्राविकाएँ विविध क्षेत्रों में अपना उन्नयन करती हुई नज़र आती है। पावापुरी मंदिर के निर्माण के समय उसमें चुनी जाने वाली हर ईंट को तालाब के पावन जल से शुद्ध करती हुई सुश्राविका श्रीमती महताब कुंवर को समाज कैसे भूल सकता है? मंत्रीश्वर दयालदास के साथ युद्ध में लड़ने वाली वीर रमणी सती पाटणदे, जगत सेठ घराने से संबंधित विदुषी रत्नकुंवर बीबी एवं अहमदाबाद की असाधारण नारी रत्न सेठानी हरकौर जी के प्रेरणास्पद जीवन उल्लेखनीय हैं। अनेकानेक सामाजिक अभिषप्तताओं के बावजूद समाज में अनेक नारी प्रतिभाएँ उत्पन्न हुई हैं जिनका उल्लेख आवश्यक है। अब तो वे हर क्षेत्र में नाम कमा रही हैं। समाज-सुधार, शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति - संरक्षण, तकनीकी विशेषज्ञता, उद्योग व्यापार में भी नारियों ने नये कीर्तिमान स्थापित किये है। उनके जीवन प्रसंग समाज को प्रेरणा एवं नया मार्गदर्शन देनेवाले हैं। प्रस्तुत अध्याय में श्राविकाओं के विविध क्षेत्र की विकास यात्रा पर दष्टि डालने का यत्किंचित् प्रयास किया है वह अवश्य ही पठनीय है। यद्यपि आधुनिक कालीन जैन श्राविकाओं की संख्या काफी परिमाण में उपलब्ध होती है, किंतु विस्तारभय से हमने इस अध्याय को सीमित रखा है तथा कुछ श्राविकाओं का चार्ट द्वारा ही विवरण दे दिया है। इनमें श्राविकाओं को कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत विभिन्न विभागों में विभाजित नहीं किया है, अपितु एक साथ ही उन सबका उल्लेख कर दिया है। ७. २ राजनीति के क्षेत्र में नारियों का योगदान : Jain Education International आधुनिक युग के आगमन के साथ ही नारियों को राजनीति भी में महत्त्वपूर्ण और पुरूषों के बराबर के अधिकार प्रदान किये गये। पहले उन्हें मतदान का अधिकार भी प्राप्त नहीं था । पर आज के युग में शायद ही कोई ऐसा विकसित देश हो, जहाँ नारि को पुरूषों के बराबर मत का अधिकार नहीं है । अंग्रेजों के भारत में आगमन से ही पश्चिमी विचारधारा से भारतीय समाज प्रभावित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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