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________________ 620-7. सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ क्र० संवत् श्राविका नाम वंश/गोत्र । संदर्भ ग्रंथ ५. 1273 सिंधई वंष जि. मु. प्र. ले. 54 | 1744 | मथुरा, मोती, षषि, हरिकुंवरि 1746 | जामिनी | 1706 | ऊषु प्रेरक/प्रतिष्ठापक । प्रतिमा निर्माण गच्छ / आचार्य आदि भट्टा. भसुरेंद्रकीर्ति (मूलसंघ) भट्टा श्री सुरेंद्रकीर्ति विजयराजसूरि तपा. भ. श्री नमिनाथ जी 1274 जि. मु. प्र. ले. | जे. जै. ले. सं. भा. | 4 1275 प्रा.ज्ञा. 1276 | 1703 पंखवालगोत्र | विजयराजसूरि तपा. भ. श्री मुनिसुव्रत जे. जै. ले. सं. भा. | 36 1277 |1712 | मनरंगदे | 1778 | विष्व श्री 1278 विजयसेनसूरि विजयसूरि विजयसेनसूरि | मुनिसुव्रत भ. श्री अनंतनाथ जी | वही | भ. श्री सुविधिनाथ | वही 175 1279 | 1710 | कनका 233 जी 1280 1715 | अनुपमदे श्री श्री ज्ञा. भ. श्री पंचतीर्थी जी | वही 175 श्री रत्नाकरसूरि (नागेंद्रगच्छ) 1281 1783 | पद्माई भ. सुरेंद्रकीर्ति चौबीसी प्रतिमा भ. सं. 287 बघेरवाल गोमाल गोत्र | बघेरवाल ज्ञा. कासिलगोत्र 1282 1756 | कुडाई केशरियाजी मंदिर भ. सं. 288 11283 | 1718 लालमती भव सुरेंद्रकीर्ति भ. श्री सकलकीर्ति श्री गुणकीर्तिदेव प्रतिमा | भ. सं० 205 1284 1768| जाल्ही. देवसिरी पंचास्तिकायसार भ. सं. 217 वंषिलगोत्र अग्रोत 1285 1786 | अंबाई श्री भूषण चंद्रप्रभु प्रतिमा भ. सं. 273 बघेरवाल ज्ञा. बोरखंडयागोत्र 1286 1725 | नाथा पठनार्थ इ.अ. वे. ओ. 1287 | 1721 | करमाइ, बछाई, सोनी प्रा. ज्ञा. श्री. प्र. सं. 230 मुनि सुबुद्धिविजयजी महावीर स्तवन लिखित राघवजी धनुआनी | श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सान्निध्य में सूत्र एवं 45 आगम का भण्डार मेघबाई को प्रदान की। आचारांग सूत्र मुनि उदयरत्न ने तपा श्री कर्मविपाक लिखा विजयसिंहसूरि को भेंट | श्री विपाकसूत्र की थी श्री श्री. | श्री. प्र. सं. 219 12881710 चंगादे 1289 1748| भाग्यवती पठनार्थ ओस. ज्ञा. श्री. प्र. सं. 257 1290 1705] फूला श्री. प्र. सं. 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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