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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास जीवनचरित है। उनके पूर्व का पुरातन या पुराण युग महावीर पूर्व युग है तो उनके उपरान्त का महावीरोत्तर काल । वह अन्तिम पुराण पुरुष थे तो प्रथम विशुद्ध ऐतिहासिक हस्ती भी थे। इतना ही नहीं, गत ढाई हजार वर्षों में जितने जैन ऐतिहासिक व्यक्ति हुए हैं वे सब तीर्थकर भगवान महावीर के अनुयायी थे। उक्त ईसा पूर्व छठी शताब्दी में तो जितने और जो जैन इतिहासांकित स्त्री-पुरुष हुए वे सब प्रायः साक्षात् रूप में भगवान् महावीर से संबंधित थे। कुछ उनके आत्मीयजन, कुटुम्बीजन या परिवार के सदस्य थे, कुछ नाते-रिश्तेदार आदि संबंधी थे, अन्य अनेक उनके शिष्य, अनुयायी, उपासक, उपासिकायें थे अथवा उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे। महावीर के सिद्धांतो का अनुगमन करने वाली उपासिकाओं में प्रमुख थी वैशाली गणतंत्र के अधिपति चेटक की महारानी सुभद्रा तथा उनकी स्वनामधन्या सात सुपुत्रियाँ त्रिशलादेवी, चेलना, प्रभावती, मगावती, शिवादेवी, ज्येष्ठा, दधिवाहन की पत्नी पद्मावती (धारिणी) तथा उनकी पुत्री (चंदना) वसुमति आदि। ये सभी महादेवियां भ० महावीर के श्राविका संघ की अग्रणी थी। उनमें से अनेकों की गणना सुप्रसिद्ध सोलह सतियों में है। ज्येष्ठा और चंदना कौमार्यकाल में ही दीक्षित होकर साध्वी बन गयी थी। उनमें से जिनका विवाह हुआ वे सब पति परायणा, शीलगुण विभूषिता एवं धार्मिक वत्ति की थीं। भगवान महावीर के परम भक्त (दस श्रावक) प्रमुख उपासक एवं उपासिकाओं का वर्णन आता है। इन श्राविकाओं ने भगवान के बताये हुए व्रतों को धारण कर जीवन को धन्य किया, पवित्र किया। देवानंदा, रेवती, सुलसा और विदुषी जयंति श्राविका जैसी गहिणियां महावीर युग की नारियाँ थी। आदर्श गही श्रावक-श्राविका के रूप में रहते हुए वे अपनी स्वयं की इच्छाओं और आवश्यकताओं को सीमित कर, अपनी उत्पादन सामर्थ्य को तनिक भी व्यर्थ किये बिना, शेष धन एवं आय को लोक सेवा में लगा देते थे। भ०. महावीर के श्रावक-श्राविकाएं ही परवर्ती काल के जैन गृहस्थ स्त्री-पुरुषों के लिए, प्रेरणा के सतत् स्रोत तथा अनुकरणीय आदर्श रहे हैं। चाहे वे किसी वर्ण, जाति या वर्ग के, किसी व्यवसाय या वृत्ति के, और किसी भी क्षेत्र के हों। ६७ १.१२ नारी जाति के इतिहास का काल-विभाजन :जैन धर्म में नारी जाति के अवदान के अध्ययन को कालक्रम की दृष्टि से इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है। १. कुलकर युग एवं बाईस (२२) तीर्थंकरो के काल की नारियां । २. भ०. पार्श्वनाथ एवं भ०. महावीर स्वामी के काल की नारियां। ३. भ०. महावीर स्वामी के निर्वाण से ईसा की सातवीं शती तक की जैन नारियां । ४. ईसा की आठवीं शती से १५वीं शती तक की जैन नारियां । ५. ईसा की १६वीं शती से २०वीं शती तक की जैन नारियां । १.१३ साहित्यिक स्त्रोत :साहित्यिक स्त्रोतों के आधार पर नारी जाति का जो अवदान देखा गया वह निम्न प्रकार केया जा रहा है। १.१४ आगम साहित्य एवं आगमिक व्याख्या साहित्य : उपलब्ध जैन साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रंथ अंग उपांगादि संज्ञक आगम ग्रंथ हैं। भगवान महावीर की दीर्घ तपश्चर्या व चिंतन के पश्चात् जो केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था और उससे वस्तु तत्व का जो ज्ञान व दर्शन हुआ उसे जनता के लिए जिन वाणी के रूप में प्रसारित किया गया है। वही कल्याणकारी वाणी इन आगमों में गुंथित है, अतः इनका महत्व सर्वाधिक निर्विवाद है। परवर्ती समस्त जैन वाडमय की जड़ इन्हीं आगमों में एवं अनुपलब्ध "पूर्व" संज्ञक ग्रन्थों में सन्निहित है। असाधारण पाण्डित्य संपन्न जैनाचार्यों ने इन पर नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, वृत्ति, टबा, अवचूरि व बालाबोध आदि अनेक विवरणात्मक टीकाएं रचकर इन्हें अधिकाधिक सुबोध बनाने का प्रयत्न किया है और आज भी वह क्रम चालू है। इसके अतिरिक्त इनके आधार से रचे गये स्वतंत्र जैन ग्रन्थों का विशाल साहित्य भी उपलब्ध है। छोटे बड़े सैंकड़ों प्रकरण व कथादि ग्रन्थ इन्हीं आगम रूपी वृक्षों की शाखाएं, प्रतिशाखाएं, फल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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