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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास भविष्यपुराण के सातवें अध्याय में लिखा है-जैसे एक पहिये का रथ नहीं चल सकता, उसी प्रकार गृहस्थाश्रम रूपी रथ के स्त्री और पुरुष दो पहिये हैं। दोनों पहिये समान और दृढ़ होंगे तभी जीवन यात्रा सुचारू रूप से चल सकेगी। नारी 'शक्ति' है तो पुरुष उस शक्ति का संचालक है। शक्ति 'अबला' नहीं हो सकती, वह "सबला" है। हमारे देश में सिंह को वाहन बनानेवाली दुर्गा की पूजा होती है जो शक्ति स्वरूपा मानी जाती है। भारत में यदि स्त्री अबला बन गई है तो यह हमारी सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है। हमारा समाज पुरूष प्रधान समाज है जिसमें स्त्री का वर्चस्व बंधनों में जकड़ी हुई दासी के समान है। सदियों से नारी जाती को व्यापक रूप में अपनी शक्तियों का विकास करने का मौका ही नहीं मिला। जब कभी मौका दिया गया तो पुरुष के बराबर रहने की तो बात ही क्या वह उनसे भी आगे बढ़ गई है। वास्तव में प्रारम्भ में स्त्री या पुरुष किसी को भी जिसे सांचे में डाल दिया जाये, वह वैसा ही बन जाता है। कठिन परिश्रम के बल पर ही स्त्री-पुरूष एक-दूसरे से आगे निकल सकते हैं। आज ऐसी अनेक पहाड़ी जातियां हैं जिनमें पुरुष घर का काम संभालते हैं और स्त्रियां बाहर के कृषि व्यापार आदि कार्य करती हैं। वहां स्त्रियां बलवती होती हैं और पुरुष निर्बल । अतएव स्त्रियों का अबलापन कोई स्वाभाविक दोष नहीं है, किन्तु सामाजिक जीवन के वर्गीकरण का परिणाम है। जब जब स्त्री जाति को उसकी शक्तियों के विकास के लिए उचित अवसर दिया गया तब-तब वह किसी क्षेत्र में पुरुष से कम नहीं रही। जिन कार्यों को पुरुषों ने किया उनको करने में स्त्रियां भी पिछे नहीं रही थी। विद्या के क्षेत्र में देखिये, जिस प्रकार वेदों के प्राचीनतम ऋग्वेद के मंत्रों के बनाने वाले या दृष्टा ऋषि थे इसी प्रकार लोमशा, घोषा, विश्वातारा, इंद्राणी, और अपाली आदि स्त्रियां भी वेदमंत्रों ऋषि थीं। गार्गी मैत्रेयी और सरस्वती की विद्वत्ता से तो सब परिचित हैं ही। वीरता के क्षेत्र में भी स्त्री पुरुष से पीछे नहीं रही। पुरुषों की भांति स्त्रियां भी बड़े बड़े संग्रामों में वीरता दिखलाती आई हैं। मुद्गल पत्नी इंद्रसेना ने बड़ी चतुराई से संग्राम में रथ हांका था और बड़ी वीरता से उसने इंद्र के शत्रुओं का नाश किया था। शस्त्र संचालन कला में वह बड़ी प्रवीण मानी जाती थी। जब शत्रु गउएं चुराकर ले जाने लगे तब इस वीर नारी ने उनसे ऐसा युद्ध किया कि वे गौएं वहीं छोड़कर अपनी जान बचाकर भागे। पुरुष की तरह राज्यसत्ता भी स्त्रियों के हाथ में रह चुकी है और उसे बड़ी प्रवीणता से वे चलाती भी रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, रजिया बेगम और इन्दिरा गाँधी इसके उदाहरण हैं। इस प्रकार शिक्षा, विज्ञान, वीरता और राज्यशासन आदि सभी सामाजिक क्षेत्रों में स्त्री पुरुष के समान ही प्रख्याति प्राप्त करती आई है। आचरण, सहनशीलता, त्याग, तपस्या, प्रेम, करूणा, उपकार, कृतज्ञता, साहस, सेवा और श्रद्धा इन गुणों में तो पुरुष भी स्त्री की समानता नहीं कर सकता। नारी का हर क्षेत्र में अदभुत योगदान होने के उपरान्त स्त्रियों का क्रमबद्ध इतिहास हमें प्राप्त नहीं होता। यत्र तत्र बिखरे हुए जीवन चरित्र हैं जो अपर्याप्त है। कहीं कहीं देखने को मिलते हैं। उन सबको खोजकर एक स्थान पर लाने की आवश्यकता है।६६ जिस प्रकार हिन्दू धर्म में नारियों का प्रत्येक क्षेत्र में अति विशिष्ट योगदान रहा है, उसी प्रकार जैन धर्म में भी नारियों का अति विशिष्ट योगदान रहा है, किन्तु उसका विधिवत् आकलन नहीं हुआ है। विकीर्ण सूचनाएं तो मिल जाती है। किन्तु उनका ऐतिहासिक काल क्रम में सुव्यवस्थित अध्ययन अभी तक नहीं हुआ है। प्रस्तुत गवेषणा में हमारा प्रयोजन जैन धर्म में नारी के विशेष रूप से गृहणियों के अवदान की कालक्रम से सम्यक् विवेचना करना है। १.१०. नारी जाति के इतिहास की आधारभूत सामग्री : भारतीय नारी अनादि काल से आत्म चेतना के स्वर गुंजित करती रही है। नारी जहाँ एक ओर नर की सहायिका हैं वहीं दूसरी ओर वह उसकी मार्गदर्शिका भी हैं। विषमता के विष को पीकर भी परिवार और समाज के जीवन में समता और सरसता का अमत बांटने वाली रही है। चतुर्विध जैन संघ में श्राविका संघ का महत्वपूर्ण स्थान है। उसके बारे में क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध नहीं होता, जबकि प्रभु महावीर ने जैन धर्म संघ में स्त्री-पुरुषों में किसी प्रकार का भेद नहीं किया है। आत्म-कल्याण के पथ पर अग्रसर होने के लिए जो अधिकार भगवान ने पुरुष वर्ग को दिये, वे ही सारे अधिकार महिलाओं को भी दिये हैं। इस आध्यात्मिक मार्ग की समानता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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