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वर्तमान जगत् में भी उपरोक्त सभी अपराध की श्रेणी में माने जाते हैं। अस्तेय व्रत का निरतिचार पालन करने से हम मानव जाति व राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व को भली प्रकार निभा सकते हैं ।
१.५.१४
ब्रह्मचर्य अणुव्रत४५:
अपनी काम प्रवृत्ति पर अंकुश श्रावक एवं श्राविका का चौथा स्वपत्नी या स्वपति संतोष अणुव्रत है। गृहस्थावस्था में रहकर व्यक्ति पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता। अतः श्रावक एक मात्र विवाहिता पत्नी (स्वपत्नी) में पूर्ण संतोषी बनकर शेष सभी स्त्रियों के साथ मैथुन सेवन का त्याग करता है। उसी प्रकार श्राविकाओं के लिए भी स्वपति संतोषव्रत का विधान किया गया है ।
अ. ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार :
यहां यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अन्य स्त्रियों या अन्य पुरुषों से काम व्यवहार रखना, अनंगक्रीड़ा करना, अपने पुत्र-पुत्री को छोड़कर अन्य का विवाह कराना, काम सेवन की तीव्र भावना रखना व्रत भंग के कारण है, यही अतिचार है।
१.५.१५
अपरिग्रह अणुव्रत
धन-धान्य हिरण्य स्वर्ण, दास-दासी, खेत-वस्तु आदि के परिग्रहण की मर्यादा निश्चित कर लेना परिग्रह परिमाण अणुव्रत
है ।
पूर्व पीठिका
:
परिग्रह परिमाण अणुव्रत वर्तमान प्रसंग में समाजवाद सह अस्तित्व और समानता की दिशा में उठाया गया बहुत महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है। परिग्रह की मर्यादा का अतिक्रमण करना ही इस व्रत के अतिचार हैं।
पांच अणुव्रतों को व्यवस्थित रूप से पालन करने के लिए गुणव्रत और शिक्षाव्रतों का विधान किया गया है।
अ. गुणव्रत - दिशाव्रत, उपभोग परिभोग परिमाण व्रत एवं अनर्थदंड विरमण व्रत ये तीन गुणव्रत हैं ।
दिशाव्रत -
१.५.१६
सभी दिशाओं में गमनागमन की मर्यादा निश्चित करने को दिशाव्रत कहा गया है। दसों दिशाओं में कहां तक आवागमन करना है इसकी सीमा इस व्रत मे निश्चित की जाती है। अतिचार इसमें ऊँची, नीची, तिरछी, दिशा का उल्लंघन करना निश्चित की हुई सीमा में वृद्धि करना, सीमा मर्यादा का विस्मरण होने पर उस मर्यादा क्षेत्र से आगे जाना व्रत भंग के कारण माने गये हैं। उपभोग परिभाग परिमाण व्रत
१.५.१७
खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने आदि दैनिक व्यवहार में काम में आने वाली वस्तुओं की मर्यादा निश्चित करना उपभोग - परिभोग परिमाण व्रत हैं । उपासक दशांग सूत्र में ऐसी वस्तुओं की सूची दी गई है जिनकी इस व्रत में मर्यादा निश्चित की जानी चाहिए । ४६ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र में इन वस्तुओं की संख्या छब्बीस बताई गई है।
अ. अतिचार :
गृहीत मर्यादा का अतिक्रमणकर, सचित्त वस्तु सेवन करना सचित्त मिश्रित वस्तु का सेवन करना, कच्ची वनस्पति का सेवना करना अधपकी वनस्पती को खाना एवं ऐसी वस्तु खाना जिसमें खाने योग्य पदार्थ कम हों, फेंकने योग्य अधिक हों-ये सब इस व्रत भंग के कारण हैं ।
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ब.
पन्द्रह कर्मादान
उपभोग परिभोग परिमाण व्रत में उपर्युक्त पांच अतिचारों के अतिरिक्त निषिद्ध व्यवसाय के पन्द्रह अतिचार बताये गये हैं। ये पन्द्रह ऐसे व्यवसाय हैं जिनके करने में जीवों की अति हिंसा होती है। अतः श्रावक या श्राविका को ऐसे व्यवसाय नहीं करने चाहिए। इनके नाम इस प्रकार हैं-कोयले का व्यवसाय, जंगल काटना, लकड़ी बेचना, रथ आदि बेचना, पशुओं को भाड़े पर देना, खान आदि किराये पर चलाना, हाथी दांत का व्यापार लाख का व्यापार, मदिरा आदि का व्यापार, विष आदि का व्यवसाय, दास-दासी का व्यापार, घाणी आदि से पेरने का व्यापार, बैल आदि को नपुंसक बनाने का व्यवसाय, जंगल में आग लगाना, तालाब,
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