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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास * इच्छा परिमाण अणुव्रत ६. दिशा परिमाण व्रत उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत अनर्थदण्ड विरमण व्रत ६. सामायिक व्रत १०. देशावकाशिक व्रत ११. पौषधोपवास व्रत १२. अतिथिसंविभाग व्रत इनका संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं साथ ही १२ व्रतों के प्रत्येक के पांच-पांच अतिचारों का वर्णन है। अतिचार का तात्पर्य उस आचरण से है, जिनसे व्रत में दोष लगने की संभावना रहती है। श्राविकाओं को इन अतिचारों को ध्यान में रखना चाहिए और इनसे बचकर अपने व्रतों का पालन करना चाहिए। १.५.११ अहिंसा अणुव्रत२: जैन शास्त्रों में संकल्पी, आरंभी, उद्योगी और विरोधी इन चार प्रकार की हिंसाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। श्राविका संकल्पी हिंसा का त्याग करती है "मैं किसी को मारूँ" इस भावना से की गई हिंसा संकल्पी हिंसा है। गही जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए श्राविका पूर्ण अहिंसा का पालन नहीं कर पाती है अतः उसे विवेकपूर्वक अपना कार्य करना चाहिए। (अ.) अहिंसा-अणुव्रत के अतिचार :- अहिंसाअणुव्रत के ५ अतिचार हैं-बंध, वध, छविच्छेद, भत्तपान व्यवच्छेद, एवं अतिभार। किसी को बांधना, मारना, अंगो को काट देना, खाने-पीने में बाधा उपस्थित करना एवं व्यक्ति की सामर्थ्य से अधिक भार डालना, व्रत भंग के कारण है। इन पांचों अतिचारों से बचना वर्तमान परिवेश में भी पूर्ण प्रासंगिक है। राज्य व्यवस्था की दृष्टि से भी ये अपराध माने गये हैं। इस प्रकार अहिंसाअणुव्रत व्यक्ति को नैतिक और सामाजिक बनाता है और समाज तथा राष्ट्र की आत्म सुरक्षा एवं औद्योगिक प्रगति में सहयोगी बनकर चलता है। १.५.१२ सत्य अणुव्रत३: कन्या, पशु, भूमि, धरोहर आदि के संबंध में असत्य भाषण का त्याग करना सत्य अणुव्रत है। इस व्रत में श्राविका ऐसे स्थूल असत्य का त्याग करती है, जिससे समाज, देश और राष्ट्र की हानि होती हो और व्यक्ति के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचती हो। इसके साथ ही साथ इस व्रत में श्राविका ऐसे सत्य का भी त्याग करती है जो सत्य होते हुए भी अन्य व्यक्ति के मन को पीड़ित करता हो। भगवान महावीर के अनन्य श्रावक महाशतक का कथानक इसका सर्वोत्तम शास्त्रीय उदाहरण है। अ. सत्याणुव्रत के अतिचार सत्य व्रत में किसी पर बिना सोच-विचार किये दोषारोपण करना, एकांत में बातचीत करते हुए व्यक्तियों पर झूठा आक्षेप लगाना, झूठा उपदेश देना, जाली चेक, ड्राफ्ट आदि जारी करना, अतिचार माने गये हैं। वर्तमान में भी इन सभी पर राज्य द्वारा रोक लगायी जाती है। इस प्रकार सत्य अणुव्रत में श्रावक सत्य, तथ्य और प्रीतिपूर्ण वचनों का ही प्रयोग करता है, जो समाज को उन्नत और पवित्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। १.५.१३ अस्तेय अणुव्रत : स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करना अस्तेय है। सार्वजनिक रूप से प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को छोड़कर अन्य वस्तुओं को स्वामी की अनुमति के बिना ग्रहण नहीं करना ही श्रावक या श्राविका का अस्तेय अणुव्रत हैं। ___ अ. अस्तेयाणुव्रत के अतिचार : चोरी की वस्तु खरीदना, चोर को सहायता करना, राज्य नियमों के विरुद्ध आचरण करना, वस्तुओं में मिलावट करना व नाप--तोल में बेईमानी करना अस्तेय व्रत के अतिचार हैं, दोष हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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