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________________ 376 सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ गौड़ा आगे चलकर आचार्य शांति सागरजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। दिगंबर परंपरा के विकास में सत्यवती के इस पुत्ररत्न का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। ६.३० श्रीमती हुलासी जी - ई. सन् की १६ वी - २० वीं शती. राजस्थान के ओसवाल परिवार के श्रीमान् केवलचंदजी कांसटिया की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती हुलासी देवी था। छोटी उम्र में हुलासी का स्वर्गवास हो गया। श्री केवल चदं जी ने दीक्षा ग्रहण की, पीछे बालक अमोलक ऋषि भी दीक्षित हुए। वे प्रथम जैन मुनि थे जिन्होंने बत्तीस आगमों का सरल हिंदी अनुवाद किया था। माता हुलासी का नाम ऐसे पुत्र को पैदा कर अमर हो गया। ६.३१ श्रीमती धारिणी देवी - ई. सन् की २० वीं शती. राजस्थान में स्थित बाली नगर के श्रीमान् शोभाचन्द्रजी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती धारिणी देवी था। उनके एक पुत्र का नाम सखराज जी था जो आगे चलकर शाकाहार प्रेरक आचार्य श्री विजय समुद्रसूरिजी के रूप में विख्यात हुए। धारिणी के धर्म संस्कारों के प्रभाव से ऐसा महान् आचार्य उनकी कुक्षी से अवतरित हुआ । ६.३२ श्रीमती जडावांजी - ई. सन् की २० वीं शती. उज्जयिनी नगरी में ओसवाल श्रेष्ठी श्री कानीरामजी निवास करते थे। उनकी पत्नी का नाम जड़ावांजी था। वे पीपाड़ा गोत्र के थे। जडावांजी धार्मिक महिला थी। पति के देहावसान के बाद संसार के भोग प्रधान जीवन से उसका मन विरक्त हुआ। पुत्र डालचंद्र दूसरे दशक में प्रवेश कर रहा था। परिवारिकजनों के संरक्षण में पुत्र को रखकर स्वयं दीक्षित हुई, आगे चलकर डालचंद भी दीक्षित हुए एवं प्रभावशाली आचार्य बने।६ ६.३३ श्रीमती कमलदेवी जी - ई. सन् की १६ वीं शती. गुजरात के महुआ ग्राम में बीसा श्रीमाल परिवार के श्रीमान् रामचंद्रजी की धर्मपत्नी कमलदेवी थी। उनका एक पुत्र था। मूलचंद। आगे चलकर वे आचार्य श्री विजयधर्मजी के रूप में प्रसिद्ध हुए।३७ माता कमलदेवी ने इस धर्मनिष्ठ पुत्र को शासन की प्रभावना के लिए जिन शासन को समर्पित किया। ६.३४ श्रीमती नाथीबाई जी - ई. सन् की १६ वीं शती. मालवा प्रदेश के थांदला ग्राम में श्रेष्ठी जीवराजजी अपनी पत्नी श्रीमती नाथी बाई सहित निवास करते थे। उनके एक पुत्र आचार्य श्री जवाहरलालजी के रूप में विख्यात हुए थे।३८ माँ के धर्मसंस्कार पुत्र के लिए वरदान बने। ६.३५ श्रीमती इच्छांबाई जी - ई. सन् की १६ वीं शती. बड़ौदा गुजरात में श्रीमान् दीपचंद भाई निवास करते थे। उनकी धर्मपत्नी थी इच्छांबाई। उनके एक पुत्र था छगनलाल । माता-पिता आस्थावान जैनधर्मोपासक थे। आगे चलकर पुत्र छगन श्री वल्लभविजयजी के नाम से प्रभावशाली आचार्य बने । ६.३६ श्रीमती बालूजी - ई. सन् की २० वीं शती. राजस्थान के टमकोर ग्राम में चोरड़िया परिवार के श्रीमान् तोलारामजी की धर्मपत्नी का नाम बालूजी था। बालूजी सुशीला व धार्मिक प्रवत्ति वाली महिलारत्न थी। पति के स्वर्गवास के पश्चात उसने संतान के प्रति पिता की भमिका का भी निर्वहन किया। माँ की धार्मिक वत्तियों से संतान में भी धार्मिक चेतना का जागरण हुआ। माँ द्वारा प्रदत्त प्रबल वैराग्य भावना ने पुत्र नथमल को दीक्षित होने का परम सौभाग्य प्रदान किया। वे आचार्य श्री महाप्राज्ञजी के रूप में तेरापंथ परंपरा की महती प्रभावना कर रहे हैं। आपकी बड़ी बहन साध्वी मालूजी के रूप में प्रसिद्ध हुई। माँ बालूजी ने अपना सच्चा दायित्व निभाया, अपनी संतान को सच्चे मार्ग का साधक बनाया। ६.३७ श्रीमती सरस्वती जी ई. सन् की २०वीं शती. . कर्नाटक के सेड़वाल ग्राम में श्रीमान् कालप्पा आणप्पा निवास करते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम सरस्वती था । सरस्वती यथा नाम तथा गुणवाली धर्म संस्कारी महिलारत्न थी। फलस्वरुप उनके सपत्र सुरेंद्र ने आगे चलकर दिगंबर परंपरा में आचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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