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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
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लुटा पाएँ और दुनियाँ से चल बसे। बड़े पिताजी श्रीमान् लछमणदासजी के सान्निध्य में माताजी के द्वारा प्रदत्त धर्म-संस्कारों को
एवं पुष्पित होने का सौभाग्य प्राप्त किया। धर्मप्रभावक आचार्य को छोटांजी ने पैदा कर शासन प्रभावना में सहयोग दिया
पल्लवित एव पुष्प
६.२४ श्रीमती रूपांबाई - ई. सन् की २० वीं शती.
पंजाब में झेलम नदी के किनारे "कलश" ग्राम के श्रेष्ठी गणेशचंद्रजी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती रूपांबाई था। उसने यथासमय एक तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम दित्ता या देवदास रखा गया था। बचपन में ही पुत्र के सिर से पिता का साया उठ गया था। श्रीमती रूपांबाई पति के मित्र जोधमलजी जैन के घर पर पत्र सहित रहने लगी। गाँव में जैन स्थानकवासी परंपरा के साधु-साध्वियों का आवागमन होता रहता था।
श्रीमती रूपांबाई के धर्मसंस्कार वश बालक को संतों का संपर्क रूचिकर लगने लगा। परिणाम स्वरूप यथासमय बालक ने वैराग्य भाव के साथ दीक्षा धारण की तथा विजयानंद (आचार्य आत्माराम) के नाम से मूर्तिपूजक संप्रदाय के प्रभावशाली आचार्य
बने ।२८
६.२५ श्रीमती विद्यादेवी - ई. सन् की २० वीं शती.
पंजाब फरीदकोट जिले के मलौटमंडी में ओसवाल भाबू गोत्रीय श्रीमान चिंरजीलाल जी श्रेष्ठी निवास करते थे। उनकी धर्म-संस्कारी, दान व धर्म प्रवत्ति में रूचिवान धर्मपत्नी का नाम विद्यादेवी था। उनका परिवार संपन्न एवं धार्मिक था। विद्यादेवी ने तेजस्वी पुत्र ध्यान योगी आचार्य श्री शिवमुनि जी भ. को जन्म देकर स्वकुक्षी को धन्य बनाया। ६.२६ श्रीमती नेमादेवी · ई. सन की २० वीं शती.
राजस्थान के चुरू जिलान्तर्गत सरदारशहर में ओसवाल दुगड़ गोत्रीय श्रीमान् झूमरमलजी निवास करते थे। उनकी धर्मपत्नी थी नेमादेवी। वह सरल, सहज, धर्मपरायण एवं व्यवहार कुशल महिला थी। उनकी दो पुत्रियाँ एवं छः पुत्र थे। उनका सातवां पुत्र मोहन धर्म मार्ग पर अग्रसर होते हुए दीक्षित हुआ। आज मोहन युवाचार्य श्री महाश्रमणजी के रूप में तेरापंथ धर्मसंघ की प्रभावना कर रहे हैं। तेजस्वी त्यागी पुत्र से माँ की कुक्षी धन्य हुई। ६.२७ श्रीमती परमेश्वरी देवी जी - ई. सन् की १६ वीं - २० वीं शती.
पंजाब जालंधर जिले के "राहों" ग्राम निवासी श्रीमान् मनसारामजी चोपड़ा की धर्मपरायणा शीलसंपन्ना धर्मपत्नी श्रीमती परमेश्वरी देवी थी। माँ परमेश्वरी देवी पुत्र वात्सल्य लुटा भी नहीं पाई, और वह स्वर्गवासी हो गई। माता के धर्म संस्कारों से पोषित पुत्र गुरू शालिग्रामजी से दीक्षित होकर स्थानकवासी श्रमण-संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्मारामजी भ०. के रूप में सुविख्यात हुए।३१ ६.२८ श्रीमती हुलसादेवी जी - ई. सन् की १६ वीं शती.
महाराष्ट्र अहमदनगर जिले के अंतर्गत चिचोंडी ग्राम में गुगलिया गोत्रीय श्रीमान् देवीचंद जी निवास करते थे। उनकी शील सम्पन्ना, धर्मपरायणा धर्मपत्नी श्रीमती हुलसादेवी था। हुलसादेवी जैन श्रमणोपासिका थी। हुलसादेवी के दो पुत्र थे, बड़े उत्तम चंद जी तथा छोटे थे, श्री नेमिचंदजी नेमिचंदजी ने माँ की प्रेरणा से गुरू रत्नऋषिजी के सान्निध्य में प्रतिक्रमण सूत्र तथा कई थोकड़े आदि भी सीखे। माँ से दीक्षा का स्वसंकल्प सुनाया। माँ ने मोहवश प्रारंभ में कई तरह से पुत्र को गहस्थाश्रम में रखने का प्रयत्न किया, किंतु पुत्र के दढ़ संकल्प वश उसे गुरू रत्नऋषिजी के चरणों में दीक्षित किया। आगे चलकर कई पदों को धारण कर स्थानकवासी श्रमण-संघ पंरपरा के द्वितीय आचार्य आनंदऋषिजी के रूप में वे सुविख्यात हुए ३२ माँ की प्रेरणा पुत्र के जीवन हेतु वरदान सिद्ध हुई। ६.२६ श्रीमती सत्यवती जी · ई. सन् की १६ वीं शती.
दक्षिण भारत के बेलगाँव जिले के येलगुल गाँव में क्षत्रिय वंशज भीम गौंडा पाटिल की धर्मपत्नी थी सत्यवती। श्रीमती सत्यवती जी ने चार पुत्र एवं एक पुत्री कष्णा बाई को जन्म दिया था। उनके धर्मसंस्कार एवं शीलस्वभाव के प्रभाव से पुत्र सात
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