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६.१६ श्रीमती सोमादेवी ई सन् की १८ वीं शती.
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सोजत राजस्थान में वल्लावत जाति, ओसवाल गोत्रीय श्रावक नथमलजी रहते थे। उनकी धर्म परायणा सुशीला सन्नारी थी श्रीमती सोमादेवी । उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जो आगे चलकर धर्म प्रभावक आचार्य रघुनाथजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। वे भूधरजी के शिष्य बने । माता सोमादेवी ने धर्म कार्य के लिए अपने पुत्र को समर्पित कर शासन सेवा में सहयोग दिया । २० ६. १७ श्रीमती दीपांबाई जी ई. सन् की १८ वीं शती.
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जोधपुर कंटालिया ग्राम निवासी सकलेचा परिवार के श्रीमान् शाह बल्लूजी की धर्मपत्नी श्रीमती दीपांबाई थी। एक बार धर्म परायणा माता ने सिंह का स्वप्न देखा और यथासमय तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, नाम रखा गया "भीखण" । अपनी पत्नी के स्वर्गवास से भीखणजी वैराग्योन्मुख बने तथा रघुनाथजी के समीप दीक्षित हुए। आगे चलकर इन्होंने तेरापंथ धर्म संप्रदाय का सूत्रपात किया ।२१ नाम था कालूगणि आचार्य एक क्रांतिकारी पुत्र शासन को अर्पित करने में श्रीमती दीपाबाई का योगदान महत्वपूर्ण है ।
सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
६. १८ श्रीमती कल्लूजी - ई. सन् की १६ वीं शती.
मारवाड़ रोयट में श्रीमान् आईदानजी निवास करते थे। उनका विवाह कल्लूजी से हुआ था। श्रीमती कल्लूजी भी धार्मिक संस्कारों से संस्कारित थी । उसने प्रज्ञापुरूष जयाचार्य जैसे उग्र विहारी सन्त शासन को समर्पित किया, तथा पुण्यशाली आत्मा बनी | २२
६. १६ श्रीमती बन्नादेवी ई. सन् की १६ वीं शती.
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बीदासर (राजस्थान) बेगवानी परिवार के सज्जन श्रीमती पूरणमलजी की धर्म पत्नी श्रीमती बन्नादेवी थी। उनकी एक पुत्री का नाम गुलाब देवी था तथा पुत्र थे मघवागणी क्षेत्र में जयाचार्यजी पधारे। उनकी वाणी सुनकर तीनों के मन में संयम के भाव जगे । बन्नादेवी, गुलाब तथा मघवागणी ने दीक्षित होकर शासन की प्रभावना की । २३ माता श्रीमती बन्नादेवी की निरासक्तता अन्य माताओं के लिए प्रेरणास्पद है।
६.२० श्रीमती महिमादेवी ई. सन् की १६ वीं शती.
राजस्थान के लांबिया ग्राम निवासी बीसा ओसवाल गोत्रीय समदड़िया मेहता सेठ मोहनदासजी की धर्मपत्नी थी श्रीमती महिमादेवी । उन्हें आचार्य श्री जयमलजी को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । जयमलजी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती लक्ष्मी देवी था। विवाह हुए अभी छः मास ही हुए थे कि जयमल जी दीक्षित हो गए। २४ नाम के अनुरूप माता महिमादेवी ने अपने हृदय की ममता का त्याग किया तथा पुत्र एवं पुत्रवधू दोनों को दीक्षित किया। स्वयं भी धर्ममय जीवन व्यतीत किया था । ६.२१ श्रीमती धारिणी - ई. सन् की १६ वीं शती.
मेवाड़ के ओसवाल वंशीय लोढ़ा गोत्रीय श्रीमान् किशनोजी की धर्म पत्नी का नाम श्रीमती धारिणी देवी था । इन्होंने पुत्र भारमल जी को जन्म दिया, आगे चलकर वे आचार्य भिक्षु के निर्भीक शिष्य बने । २५ यह धारिणी देवी के धर्म संस्कारों का सुपरिणाम था, उसने शासन में स्व-पुत्र को दीक्षित कराने का सौभाग्य प्राप्त किया ।
६.२२ श्रीमती कुशलांजी ई. सन् की १६ वीं शती.
मेवाड़ के रावलिया ग्राम में ओसवाल गोत्रीय श्रीमान् चतरोजी की भार्या का नाम कुशलांजी था। उन्होंने शासन प्रभावक आचार्य रायचंदजी जैसे सुपुत्र को जन्म दिया । २६ कुशलांजी ने योग्य पुत्र शासन को सुपुर्द किया तथा तेरापंथ धर्मसंघ के विकास में सहयोग दिया।
६. २३ श्रीमती छोटांजी ई. सन् की १६ वीं - २० वीं शती.
राजस्थान की राजधानी जयपुर के जौहरी परिवार में खारड़ गोत्रीय श्रीमान् हुक्मीचंदजी रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती छोटांजी था। लम्बे समय के बाद घर आंगन में पुत्र माणकगणी का जन्म हुआ । माता पुत्र पर वात्सल्य भी नहीं
पिता
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