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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास रणों के निवारण होने पर पनर्ग्रहण भी संभव हो गया था। अराजकता के कारण पत्नी द्वारा पति के परित्याग के प्रसंग भी रामायण में उपलब्ध होते हैं। रामायण काल में एकाकी या एकल पक्षीय प्रेम हेय माना जाता था। इसी आधार पर रावण सीता का स्पर्श नहीं कर पाया था। कामुकता निंदनीय प्रवृत्ति समझी जाती थी। विवाह का प्रयोजन मात्र संतति लाभ माना जाता था। वासना तप्ति नहीं। स्त्रियों के । लिए तो तिः गार्हित मानी गयी थी। पर स्त्री संग महापाप माना जाता था। पर-दाराएं पुरूष के पराभव का कारण मानी जाती थीं। ऐसा परिणय प्रस्ताव भी सामाजिक अनाचार माना जाता था। जो व्यक्ति धर्म और अर्थ को एक तरफ रखकर मात्र काम का सेवन करता है, वह दशरथ की भांति संकट में पड़ता है। जीवन के अन्यान्य पदार्थों के साथ काम का संतुलित रूप ही वरेण्य था। (घ) नारी का वधू रूप एवं पत्नी रूपः____ वधू रूप में नारी रामायण काल मे भी गरिमामयी, मदुल ओर स्नेह पात्र रही। पतिगह में नवीन वातावरण में संकोचशीला ना बनी रहे, अतः सास ससुर अपनी संतति से भी अधिक ममता और स्नेह उसे देते थे। पति का असीम प्रेम भी उसे मिलता तथा सास, ननंद, जेठानी-देवरानी, जेठ–देवरादि से कभी कलह या अप्रिय, कटु व्यवहार का प्रसंग ही नहीं बनता था। वधू शीघ्र ही इस नव–परिवार की रीतिनीति के अनुरूप ढ़ल जाया करती थी। रामायणकाल में पत्नी के लिए पतिव्रता होना एक सहज धर्म ही हो गया था। पत्नी स्वयं को पति की सहधर्मिणी और दुःख सुख में उसकी सहचरी मानती थी। परलोक के लिए भी वे स्वयं को अपने पति की सहवर्ती मानती थी। सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक कार्यों में ही नहीं अपितु अपने दायित्व पूर्ण करने में भी पुरूष को पत्नी का सहयोग प्राप्त रहता था। वे अपने परामर्श से राजनैतिक स्थितियों तक को प्रभावित परिवर्तित कर उन्हें अनुकूल बना देती थी। सीता के जीवन में भी ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं। युद्ध में भी पत्नी पति संगिनी रहती थी, और सार्थक भूमिका निभाती था। रानी कैकेयी राजा दशरथ के साथ उन्हीं के रथ में आरूढ़ हो कर युद्ध क्षेत्र में गई। रथचक्र के भग्न होने के कारण संकट की घड़ी में अपने प्राणों को जोखिम में डालकर उसने पति की जीवन रक्षा की थी। वनवास के लिए प्रस्थान करते समय श्रीराम ने अपनी माता कौशल्या को जो उपदेश दिया, उससे नारी आदर्शों की पुनर्स्थापना हुई। उन्होंने कहा कि स्त्री के लिए पति ही देवता, गुरू, गति, धर्म, प्रभु और सर्वस्व है। अतः पति में एकान्त निष्ठा ही पत्नी का धर्म है। पति-चरणों की सेवा का सुख रिद्धि-सिद्धियों के सुखों से भी अधिक श्रेयस्कर होता है। माता-पिता, पुत्रादि सीमित सुख दे पाते हैं। पति ही अमित सुख का स्त्रोत होता है। यही भाव अनसूया ने सीता से कहे थे। अन्यत्र भी वर्णित है - " स्त्री के लिए पति सेवा से बढ़ कर अन्य कोई तप नहीं। स्त्री को शौर्य, पराक्रम, साहस की प्रतिमा रूप में भी वाल्मीकि ने चित्रित किया है। ऐसी स्त्रियाँ पति के मन पर शासन करने लग जाती हैं। ग का आखेट करने का आग्रह अस्वीकार्य नहीं कर सके। कैकेयी ने भी पति दशरथ की शासिका होने का खूब परिचय दिया। पत्नियाँ पतियों को समरांगन हेतु प्रस्थान के लिए प्रेरित करती थी, और योद्धापति अपनी पत्नियों से भर्त्सना पाने के भय से युद्धभूमि में शत्रुओं को पीठ नहीं दिखाते थे। इन प्रवृत्तियों का प्रचुर वर्णन रामायण में उपलब्ध होता है। रामायण में अग्निपरीक्षा से सर्वथा पवित्र सिद्ध हो चुकी जानकी का भी पति श्रीराम ने लोकापवाद के भय से पुनर्वनवास दे दिया किंतु स्वयं सीता ने पति की आज्ञा को तत्परतापूर्वक स्वीकार किया। इस प्रसंग ने भारतीय नारी की प्रश्नहीन निष्ठा, कष्ट सहिष्णुता और तितिक्षा भावना की उच्चता को दढ़तापूर्वक सुस्थापित किया है और भावी नारियों के लिए सन्मार्ग सुझाया है तथा नारी सीता के माध्यम से ममता, मांगल्य और मंजुलता का कोष चित्रित हुई है। सहज व्रीड़ा, संकोचशीलता, श्रद्धा, स्नेह, माधुर्यादि महिमाओं से मंडित जानकी महान नारियों, शची, रोहिणी, सावित्री, दमयन्ती से भी शीर्ष स्थान की अधिकारिणी है। सीता ने पति राम के साथ वनवास के समस्त कष्टों को स्वीकार किया श्री राम के बिना उन्हें स्वर्ग लाभ भी स्वीकार्य नही हआ। पुरूष के साथ सदा सर्वदा रहने वाली उसकी परछाई भी अंधकार में उसका संग छोड़ देती है किंतु विपत्तिकाल में सीता ने श्रीराम का साथ निभाया है। पत्नी की अनुपस्थिति में पति यज्ञ क्षमता नहीं रखता था, किंतु पति के अभाव में स्त्रियां यज्ञ करती थी, तथा पितरों के तर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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