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पूर्व पीठिका
आदि विभिन्न आवश्यक विषयों का ज्ञान हो जाता था। यही कारण है कि स्त्रियों की मर्यादाहीनता, अनाचार आदि के उद्धरण कम ही मिलते हैं। म. विवाह व्यवस्था और नारी:
रामायणकाल मे पिता ही कन्या के लिए वर का चयन किया करता था,। उसके निर्णय एवं विवेक में कन्या की पूर्ण श्रद्धा रहा करती थी। विवाह के पूर्व पारस्परिक परिचय, रूपाकर्षण, आसक्ति, प्रणय-प्रस्ताव एवं पूर्वराग के लिए कोई स्थान नहीं था। स्वयंवर में श्रीराम ने सीता के वरण की पात्रता प्राप्त कर ली थी किंतु विवाह पिता दशरथ की आज्ञा पाकर ही किया, कन्या की याचना स्वयं कन्या से नहीं,अपितु उसके पिता से की जाती थी। बाल विवाह का कोई प्रसंग प्राप्त नही होता। वर और कन्या का अल्पायु में तथा बेमेल विवाह नहीं होता था। आयु क्रम से ही भाइयों के विवाह हुआ करते थे। क. विवाह प्रकार और प्रणालियाँ:
इस युग में छ: प्रकार के विवाह प्रचलित थे। जिनका स्मृतिकारों ने निम्नलिखित रूप में नामकरण किया है। (१) ब्राह्मण-विवाह – दोनों पक्षों मे परस्पर द्रव्यादि के लेन देन का व्यवहार नहीं रहता है। (२) प्रजापत्य-विवाह – वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष का समुचित सत्कार तथा धर्माचारिणी के रूप में कन्या का दान कर दिया
जाता है। (३) आसुर विवाह – वर द्वारा धन सम्पति शुल्क के रूप में कन्या को दी जाती है। (४) गांधर्व विवाह - प्रच्छन्न रूप में होते थे, सार्वजनिक रूप मे नहीं। (५) राक्षस विवाह - कन्यापहरण के पश्चात् किया जाने वाला विवाह। (६) पैशाच विवाह - विवाह से पूर्व वासनोपशांति का बलपूर्वक क्रम रहता है। ऐसे विवाह के मूल में अनाचार रहा करता
प्रजापत्य विवाह ही सामान्य रूप से प्रचलित था। इस काल में अग्नि के तीन फेरे होते थे। पिता कन्या को स्वेच्छा से उपहार देते थे, जिस पर कन्या का अधिकार होता था। वर पक्ष द्वारा प्राप्त उपहारों पर भी कन्या का अधिकार होता था। दहेज प्रथा का प्रचलन नहीं था। कन्या यदि सामान्य से अधिक गुणवती, रूपवती होती तथा वर अधिक उम्र वाला होता तब वर पक्ष की ओर से अल्प मात्रा में ही कन्या पक्ष को कुछ शुल्क देना होता था। परम गुणवती सीता के लिए श्रीराम को धनभंग करना पड़ा, तथा कैकेयी के लिए नृपति दशरथ को वचन देना पड़ा कि कैकेयी - पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। ख. एकाधिक पत्नीत्व प्रथा:__राजवंशों के अनुकरण से प्रजाजनों में भी बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी। इसे श्रेयस्कर नहीं माना जाता था। इसका परिणाम था:- सौतिया डाह, गृहकलह तथा षडयन्त्र एवं नारी गौरव की अवमानना। एक पत्नीत्व की महिमा अपरंपार थी। राम एक पत्नीव्रती थे, सीता हरण प्रसंग में उन्होंने पुनर्विवाह नहीं किया, अपितु यज्ञादि के लिए सीता की स्वर्ण प्रतिमा के विकल्प को अपनाया । नारी का शील एक पतिव्रत्य में ही निहित था। दक्षिण भारत इसका अपवाद रहा। तारा, रंभा, मंदोदरी आदि रानियां ऐसी थी जिनके एक से अधिक पति रहे, किंतु वे दो पति एक ही समय में रहे, अथवा अन्य पुरूष को पति स्वीकार किया इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। (ग) दाम्पत्य संबंध और विच्छेदः
स्वार्थपरता, अराजकता, सपत्नी कलह, परदारा या पर पुरूष में अनुरक्ति या व्यभिचार मधुर ओर पवित्र दाम्पत्य संबंध को कलुषित कर देते हैं। इन कारणों से पत्नी परित्याग के उद्धरण अपवाद रूप में ही प्राप्त होते हैं। कैकेयी की माता अपने पति के प्रति लापरवाही के कारण परित्यक्ता थी। व्यभिचार के कारण अहिल्या, व लोकापवाद के कारण सीता का परित्याग कर दिया गया।
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