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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास विनाश हेतु मंत्र का प्रयोग करती थी। उपनिषद् काल में पुत्र-पुत्री में कोई अंतर नहीं था। उपनिषद् काल में यह प्रार्थना और कामना की जाती थी कि उन्हें विदुषी कन्या प्राप्त हो। उसकी पूर्ति हेतु चेष्टा भी की जाती थी। कन्या प्राप्ति के निमित्त चावल और तिलमिश्रित घतयुक्त खिचड़ी का आहार लिया जाता था तथा ऐसे अन्य कई विधान अपनाए जाते थे। हमें भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए और कन्या के प्रति अनिच्छा तथा अनादर के भाव की उपेक्षा करनी चाहिए। १.१.४ रामायणकाल में नारी रामायण और महाभारत ये दो अति महत्वपूर्ण महाकाव्य हैं। महाभारत में द्यूत प्रसंग रहा है तो रामायण का प्रमुख विषय नारी है। समाज सापेक्ष होने से इनमें समाज की अनेकानेक स्थितियों, वर्गों, आदर्शों और विशेषताओं के परिचायक विवरण ओर कान्त प्राप्त होते हैं। तत्कालीन नारी चरित्र की विशिष्टतायें एवं नारी के सामाजिक स्थान की विस्तत व्याख्या का सुलभ व सार्थक चिःण हुआ है। रामायण समकालीन नारी का एक समग्र चित्र ही प्रस्तुत नहीं करती वह आगत अनेक सहस्त्राब्दियों तक नारी जाति के लिए एक आदर्श आचरण संहिता दिग्दर्शित करती है, जिसका प्रभाव अपनी गुणवत्ता और श्रेष्ठता के आधार पर निरन्तर बना रहेगा। में माताएं पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्याएं भी किया करती थी। पति-पत्नी मिलकर यज्ञादि धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न करते थे, इसी महत्तावश पत्नी के लिए धर्मपत्नी. की संज्ञा अधिक सार्थक हो रही थी। समीक्षक और यशस्वी चिंतक श्री बलदेव उपाध्याय की दष्टि में - "रामायण वास्तव में पति-पत्नी की विमल प्रीति का प्रस्थापक महाकाव्य है"। इस युग में समाज पुरूष प्रधान था किंतु परंपरागत रूढ़ियों-प्रथाओं और संस्कारों के अनुवर्तन में स्त्रियों के निर्देश की प्रमुखता रहती थी। विपरीत आचरणवाली नारियाँ निंदनीय थी। ___ अ. कन्या की स्थिति : रामायणकाल में पुत्र प्राप्ति प्रसन्नता और संतोष का आधार था, किंतु परिवार में कन्या का आगमन असंख्य पुण्यों का एवं तपस्या का फल माना जाता था। कुमारी कन्याओं की उपस्थिति शुभ शकुन और मांगल्यपूर्ण मानी जाती थी, तथा अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में उन्हें आदर एवं स्नेहपूर्वक आमंत्रित किया जाता था। जैसे युवराज के रूप में श्री राम के अभिषेक के प्रसंग में भी आठ कन्याओं द्वारा उनके जलाभिषेक का वर्णन प्राप्त होता है। पुत्री के चरित्र तथा पावनता की रक्षार्थ तथा उपयुक्त वर की खोज में पिता दुःखी एवं चिंतित रहते थे। कन्या परित्याग की कुलषित प्रवत्ति उस काल में रही हो यह आशंकित है। स्वयं जानकी भी शैशवास्था में राजा जनक को खेत के गड्डे में मिली, जब राजा हल हाँक रहे थे। कतिपय विद्वज्जन इसे भी कन्या विसर्जन के प्रसंग के रूप में ही अनुमानित करते हैं। ऐसी विसर्जित कन्याओं के लिए संरक्षण-तत्परता भी समाज में व्याप्त थी। ब. रामायण कालीन शिक्षा और नारी : तत्कालीन व्यवस्थाओं में शिक्षा के चार प्रकार थे: (क) शारीरिक (ख) मानसिक (ग) व्यवहारिक (घ) और नैतिक रामायण कालीन स्त्रियों के लिए इन चारों प्रकार की शिक्षा का विधान था। बालिकावस्था से ही उन्हे आयुधसंचालन, रथ संचालन आदि सामरिक विद्याएं सिखायी जाती थीं। रणस्थल में आहत योद्धाओं की प्राथमिक चिकित्सा के लिए भी उन्हें अभ्यास कराया जाता था। रामायण के एक प्रसंग में कैकेयी ने अपने स्वामी की समरस्थली में प्राण-रक्षा की और उन्हें बचाकर ले आई थी। जानकी के पाणिग्रहण के लिए राजा जनक की प्रतिज्ञा के पीछे भी एक रहस्य था। जानकी इतनी शक्तिमती थीं कि वे शंकर के विशाल धनुष को सुगमतापूर्वक उठा लेती थीं। उसके लिए इससे उच्चत्तर शक्तिवान वर ही अपेक्षित था। शारीरिक शिक्षा के फलस्वरूप ही तत्कालीन नारियों में इस भांति का सामर्थ्य और क्षमता थीं। स्त्रियों को प्रारम्भ से ही कर्मकांड, वेद-वेदांग, पुराण, उपनिषद्, इतिहास, शस्त्रादि के ज्ञान में पारंगत किया जाता था। संगीत, चित्र, नत्यादि कलाओं में स्त्रियां निपुण होती थीं। सीता इन विलक्षण गुणों से सम्पन्न थी। कौशल्या हवन करती हुई, जानकी संध्यावंदन करती हुई ओर तारा मंत्र प्रयोगकरती हुई रामायण में दष्टिगत होती हैं। माता पिता, ऋषि, द्विज आदि के द्वारा कन्याओं को स्त्रीधर्म के विभिन्न पक्षों का ज्ञान करा दिया जाता था। यह नैतिक शिक्षा का ही परिणाम था जो उन्हें पति-पत्नी के पारस्परिक कर्तव्यों, पतिगह में मर्यादापूर्ण आचरण, शील की महत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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