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सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ
श्री हर्षचंद्रजी की पत्नी श्रीमती देवी दुर्गा ने अनन्त जिन व्रत पूजा के उद्यापन के उपलक्ष्य में भट्टारक गुणचंद्रजी से “अनन्त जिनव्रत पूजा' की रचना करायी थी, जो उन्हीं के पूर्वजों द्वारा निर्मित उस नगर के आदिनाथ-चैत्यालय में लिखकर पूर्ण की गई थी। महाराज सामंत सिंह जी के पुत्र राजकुमार पद्मसिंह थे, उनका अन्य नाम शिवाभिराम था। वे ब्रह्मचर्य व्रतधारी तथा जिनभक्ति में लीन रहने वाले थे। उनकी भार्या रानी वीणाजी भी शीलादि गुणोज्जवलांग अर्हतोपासक श्राविका थी। उसकी प्रेरणा से राजकुमार
ने "चंद्रप्रभ-पुराण" नामक संस्कत काव्य की रचना की थी। अकबर के समय में अग्रवाल जैन मंत्री श्री क्षेमसिंह जी हुए, जिन्होंने : १५६१ में रणथम्भौर-दुर्ग में एक-एक भव्य जिनालय बनवाया था। अग्रवाल जैन श्री साहरनवीरसिंह जी सम्राट अकबर के कृपा
पात्र थे। उन्होने उत्तर प्रदेश में अपने नाम पर “सहारनपुर" नगर बसाया था। उनके पिता राजा रामसिंह ने भी राज्य सम्मान प्राप्त किया था। कई स्थानों में जैन मंदिर बनवाए थे। इनके पौत्र गुलाबराय तथा प्रपौत्र सेठ मिहिरचंद ने अपने नाम से दिल्ली के कूँचा सुखानंद में जैन मंदिर बनवाया था।
मध्यप्रदेश के निमाड़ से प्राप्त लेख के अनुसार- ईस्वी १५६१ में सुराणा वंशीय श्री उदयसिंह जी के पुत्र संघपति साहु पालहंस की भार्या नायकदे जैन धर्मानुरागिनी थी। उसके पुत्र श्री साहु माणिकचन्द ने प्रतिमा का निर्माण करवाया था। ग्वालियर के कविवर परिमल ने ई. १५६४ में श्रीपालचरित्र नामक हिन्दी काव्य की रचना की थी। मध्यप्रदेश में इंदौर के निकट रामपुरा भानपुरा क्षेत्र में साहु हामाजी के पुत्र सिंघई खेताजी थे, उनके पौत्र संघपति डूंगरजी थे, उन्होने ईस्वी १५५६ में कमलापुर में एक सुंदर महावीर चैत्यालय बनवाया था जो "सास बहू का मंदिर" कहलाता था। संभव है कि संघपति डूंगर की माता और पत्नी ने मिलकर स्वद्रव्य से इसे बनवाया हो। महामात्य नानूजी अकबर के विश्वसनीय थे। वे खण्डेलवाल ज्ञातीय, गोधागोत्रीय साहु श्री रूपचंद्रजी के पुत्र थे। नानूजी ने बीस तीर्थकरों के निर्वाण स्थल पर बीस जिनगह (मंदिर या टोंक) बनवाये थे। चंपापुर में भी जिनालय बनवाए थे। आमेर के निकट मौजमाबाद में एक विशाल कलापूर्ण जिनमंदिर बनवाकर प्रतिष्ठोत्सव किया था, जिसमें सैंकडों जिनबिम्ब प्रतिष्ठित हुए थे। उसके पश्चात् बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीकाजी के परम सहायक श्री कर्मचंद्रजी बच्छावत हुए थे। प्रधानमंत्री बच्छराज के समय से ही उसके वंशज बीकानेर नेरशों के दीवान रहते आए थे। उन्होंने अनेक धार्मिक कार्य भी किये थे। अकबर के अंतिम वर्षों में आगरा के ओसवाल ज्ञातीय सेठ श्री हीरानंदजी मुकीम अत्यंत धनवान् एवं धर्मात्मा पुरूष थे। वे शाह श्री कान्हड़जी एवं उनका भार्या भामनीबहू के सुपुत्र थे। सत्तरहवीं शती में जहाँगीर के शासन काल में, श्री नेमा साहु के पुत्र आगरे के धनी जैन श्री सबल सिंह मोठिया थे। इसी प्रकार वर्द्धमान कुँअरजी, साह बंदीदासजी, साहु ताराचंद्रजी, दीवान धन्नारायजी, ब्रह्म गुलालजी आदि हुए थे। बीहोलिया-गोत्रीय, श्रीमाल वैश्य, पंडित श्री बनारसीदासजी आगरा के मुगल कालीन सुप्रसिद्ध जैन महाकवि, समाज सुधारक, अध्यात्म रस के रसिया विद्वान्, पंडित व व्यापारी थे। जौनपुर के सूबेदार को उन्होंने 'श्रुतबोध "आदि पढ़ाए थे। स्वयं सम्राट् शाहजहाँ ने उन्हें अपना मुसाहब बनाया था और मित्रवत् व्यवहार करता था। उनका लिखित आत्म चरित अर्धकथानक ऐतिहासिक दष्टि से महत्वपूर्ण है। उससे पूर्व पुरूषों, शासकों, शासन-व्यवस्था, लोकदशा इत्यादि का बहुमूल्य परिचय प्राप्त होता है। उससे ज्ञात होता है कि जैन व्यापारियों का संबंध सम्राटों, सूबेदारों, नवाबों और स्थानीय शासकों से विशेष था तथा वे सुशिक्षित भी होते थे। इसी प्रकार सूरत गुजरात के जैन कोट्याधीश सेठ वीर जी व्होरा हुए थे। उनकी पुत्री फूलाँबाई हुई थी, जो परम
न सिद्धांतों का पालन करती थी। इसी शती में श्रीमान हीराचन्द्रजी सेठ की भतीजी तथा बागड़ देश के सागवाड़ा निवासी हेमराज पाटनी की पत्नी का नाम श्रीमती हमीरदे था, जो धर्मपरायणा जैन श्राविका थी। जिसने सम्मेदशिखर आदि की तीर्थ यात्रा की थी। हुमड़ज्ञातीय खरजागोत्रीय संघई श्री ऋषभदासजी की भार्या नारंगदे थी, जिसने अपने पति एवं पुत्र के साथ कारंजा में भ० पार्श्वनाथ बिम्ब की प्रतिष्ठा करायी थी। भट्टारक जगत भूषण की आम्नाय में श्री दिव्य नयनजी सुश्रावक की पत्नी श्राविका दुर्गा, पौषधोपवासयुक्त नियम व्रत वाली थी। श्री चक्रसेनजी की पत्नी श्रीमती कष्णाजी, मित्रसे यशोदाजी, श्री भगवानदासजी की भार्या श्रीमती केशरिदेजी जिनचरणानुरागिनी श्राविकाएँ हुई थी। सिरोही के महाराज श्री अश्वराजजी के राज्य में साह गागाजी की पत्नी श्रीमती मनरंगदे ने पुत्र, पौत्रों सहित भ० पार्श्वनाथजी एवं श्री शांतिनाथजी की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करायी थी। मध्यप्रदेश के सागर जिले के धर्मावनिपुर में जैनवैश्य संघपति श्री आसकरणजी निवास करते थे। उनकी भार्या का नाम श्रीमती मोहनदे था। उनके ज्येष्ठ पुत्र संघपति श्री रत्नाई जी की पत्नी का नाम श्रीमती साहिबा देवी था,द्वितीय पुत्र संघपति श्री हीरामणि जी की श्रीमती कमला देवी एवं श्रीमती वासंती देवी नाम की दो पत्नियाँ थी। तथा पुत्र पौत्रों सहित समस्त
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