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________________ 364 ने अपनी बात की सच्चाई सम्राट् और दरबारियों के हृदय में जमा दी। अतएव सम्राट् ने घोषणा करा दी कि इस ईद पर किसी भी जीव का वध न किया जाए। बीकानेर के राज्य मंत्री श्री कर्मचंद बच्छावत की प्रेरणा से ई. १५२२ में सम्राट् ने श्री जिनचंद्रसूरि जी महाराज को खम्भात से आमंत्रित किया । मूनिजी ने सम्राट् को प्रतिबोध देने के लिए "अकबर - प्रतिबोधरास" लिखा । सम्राट् ने उन्हें युगप्रधान आचार्य की उपाधि दी तथा उनके कहने से दो फरमान जारी किये :- (१) खम्भात की खाड़ी में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया । (२) आषाढ़ी अष्टान्हिका में पशुवध निषिद्ध किया गया। सूरिजी के साथ मुनि मानसिंह जी श्री वैपहर्ष मुनि जी, मुनि श्री परमानंद जी, मुनि समयसुंदर जी, नाम के शिष्य भी आए थे। सम्राट् की इच्छानुसार सूरिजी ने मुनिश्री मानसिंह जी को जनसिंह सूरि नाम देकर अपना उत्तराधिकारी बनाया आचार्य पद प्रदान किया। उन्होंने श्री कर्मचन्द्र जी बच्छावत को जैन धर्मानुसार गहशांति का उपाय करने को कहा तथा जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ प्रतिमा का पूजन किया गया अकबर अभिषेक का गंधोदक विनयपूर्वक अपने मस्तक पर चढ़ाया तथा अन्तःपुर में बेगमों के लिए भी भिजवाया, तथा जिन मंदिर को दस सहस्त्र मुदाएँ भेंट की। उसने गुजरात के सूबेदार आज़मखाँ को फरमान भेजा था कि मेरे राज्य में जैनों के तीर्थों, मंदिरों और मूर्तियों को कोई भी व्यक्ति किसी तरह की क्षति न पहुँचाए। जो इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसे भारी दण्ड दिया जाएगा। सोलहवीं से 20वीं शताब्दी की जैन श्राविकाएँ अकबर के मित्र एवं प्रमुख अमात्य अबुलफ़ज़ल ने अपनी प्रसिद्ध " आईने-अकबरी "में जैनों का और उनके धर्म का विवरण दिया है। आईने अकबरी में अकबर की कुछ उक्तियाँ संकलित हैं जो उसकी मनोवत्तियों की परिचायक हैं। यथा- "यह उचित नहीं है कि मनुष्य अपने उदर को पशुओं की कब्र बनाएँ । कसाई, बहेलिये आदि जीव हिंसा करने वाले व्यक्ति जब नगर से बाहर रहते हैं, तो मांसाहारियों को नगर के भीतर रहने का क्या अधिकार है ? मेरे लिए यह कितने सुख की बात होती कि यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता समस्त मांसाहारी केवल उसे ही खाकर संतुष्ट हो जाते और अन्य जीवों की हिंसा नहीं करते। प्राणी हिंसा को रोकना अत्यंत आवश्यक है, इसीलिए मैंने स्वयं मांस खाना छोड़ दिया है।" स्त्रियों के सम्बंध में वे कहा करते थे "यदि युवावस्था में मेरी चित्त वत्ति अब जैसी होती तो कदाचित् मैं विवाह ही नहीं करता, किससे विवाह करता? जो आयु में बड़ी हैं, वे मेरी माता के समान हैं, जो छोटी है वे पुत्री के तुल्य हैं, जो समवयस्का हैं, उन्हें मैं अपनी बहनें मानता हूँ।" विन्सेण्ट स्मिथ प्रभति इतिहासकारों का मत है कि जीवन के उत्तरार्ध में लगभग ई. सन् १५८० - १५८१ ई. के उपरान्त, सम्राट् अकबर के अनेक कार्य एवं व्यवहार उसके द्वारा जैन आचार विचार को अंशतः स्वीकार कर लेने के परिणाम स्वरूप हुए। पुर्तगाली जेसुइट पादरी, पिन्हेरो ने अपने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार से अपने बादशाह को ई. १५६५ में आगरा से भेजे गए पत्र में लिखा था कि, अकबर जैनधर्म का अनुयायी हो गया है। वह जैन नियमों का पालन करता है। जैनविधि से आत्म चिंतन और आत्म आराधना में बहुधा लीन रहता है, इत्यादि । अनेक आधुनिक विद्वान् इतिहासकार भी स्वीकार करते हैं कि सम्राट् जैनधर्म पर बड़ी श्रद्धा रखता था। उस धर्म और उसके गुरूओं का बड़ा आदर करता था। कुछ तो यहाँ तक कहते है कि उसके अहिंसा धर्म का पालन करने सेही मुल्ला मौलवी और अनेक मुसलमान सरदार उससे असंतुष्ट हो गये थे। उन्हीं की प्रेरणा एवं सहायता से ही राजकुमार सलीम जहाँगीर ने विद्रोह किया था। कुछ भी हो, इसमें संदेह नहीं है कि मुगल सम्राट् अकबर महान्, ईसाई आदि सभी धर्मो के विद्वानों के प्रवचन आदरपूर्वक सुनता था, और जिसका जो अंश उसे रूचता उसे ग्रहण कर लेता था । वस्तुतः उसे किसी भी एक धर्म का अनुयायी नहीं कहा जा सकता। जैन इतिहास में उसका उल्लेखनीय स्थान इसी कारण से है कि किसी भी जैनेतर सम्राट् से जैन धर्म, जैन गुरूओं और जैन जनता को उस युग में जो उदारता सहिष्णुता, संरक्षण, पोषण और आदर प्राप्त हो सकता था, उसके शासनकाल में हुआ। यहाँ तक कहा जा सकता है कि श्री भावदेवसूरि के शिष्य श्री शालिदेव सूरि से प्रभावित होकर इस सम्राट् ने ई. १५७७ के लगभग एक जिन-मंदिर के स्थान पर बनाई गई मस्जिद को तुड़वाकर फिर से जिन मंदिर बनवाने की आज्ञा दी थी। इस प्रकार के अन्य उदाहरण भी हैं, यथा सहारनपुर के सिंधियान मंदिर संबंधी किंवदंती आदि।' अकबर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी मुगल सम्राट् नूरूद्दीन जहाँगीर ईस्वी १६०५ - २७ ने सामान्यतया अपने पिता की धार्मिक नीति का अनुसरण किया था । अपने आत्म चरित्र "तुजुके- जहाँगीरी " के अनुसार उसने राज्याधिकार प्राप्त करते ही घोषणा की थी कि "मेरे जन्म मास में सारे राज्य मांसाहार निषिद्ध रहेगा। सप्ताह में एक दिन ऐसा होगा जिसमें सभी प्रकार के पशुवध का निषेध है, राज्याभिषेक के दिन, गुरूवार को तथा रविवार को भी कोई मांसाहार नहीं करेगा, क्योंकि उस दिन (रविवार) को सष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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