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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
| क्र. | संवत् श्राविका नाम |
संबंध
प्रेरक/प्रतिष्ठापक अवदान संदर्भ ग्रंथ प
आचार्य/गच्छ पक्कनसेट्टि की पत्नि थी. जैनविधिपूर्वक समाधिमरण किया| जै. शि. सं. भा. ३ | ३३७
था। जिसका स्मारक बना हुआ है|
१४५ सन् १२३६/
मल्लब्बे
१४६ | सन् १२३२)
बाचले
राजा इरूडुल देव बाचले ने | पार्श्वनाथ प्रभु की दैनिक पूजा | जै. शि. सं. भा. ३ | ३३१ दान हेतु प्रार्थना की। एवं महाभिषेक हेतु एवं चातुर्वर्ण
को आहार दान के लिए भूमि का
दान किया था।
जै. इ. आ.
१५
8 | सन् | नागलदेवी
१३ वीं सदी
कुंदकुंदान्वय देशीगण | मत्यु का उल्लेख है मूलसंघ के भट्टारक केशनंदी
की शिष्या थी
नागल
त्रिभुवन चूडामणि
जै. सि. भा.
।
रानी नागल ने मानस्तंभ
बनवाया
विनयभद्र
ख. ब गु
श्री देवसेन
- जि.प्र.ले.
लखमा, कल्ला भामिनी, अलिका
नीमा
जि. प्र. ले.
सुधनी
जै. सि. भा. (सन् १६३५)
दमति
श्री सूरि
श्री महावीर
जे. जै.
पोई.
चंद्रसिंहसरि
जिन प्रतिमा
बी.जै. ले. सं
।
प्रियमति
शांतिनाथ
यशोमती, नाऊ
श्री सिद्धसेनाचार्य
जिनप्रतिमा
धना श्रेयार्थ
श्री शांतिनाथ
भूमिणि
धनेश्वसूरि
जिनप्रतिमा
पद्मिनी
नेमिचंद्रसूरि
श्रीपार्श्वनाथ
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