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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 247 ५.३८ खेतल : ई. सन् की १३वीं-१४ वीं शती. हीलवाड़ी निवासी श्रेष्ठी महीधर की पुत्रवधू एवं श्रेष्ठी रतनपाल की पत्नी थी। खेतल देवी के पाँच पुत्र थे। बीच वाले पुत्र थे सुभटपाल। सुभटपाल बचपन से ही बड़े समझदार थे। सभी भाईयों में सबसे योग्य थे। एक बार जिनसिंहसूरि का श्रेष्ठी परिवार से परिचय हुआ। उन्होंने रतनपाल से बीच वाले पुत्र को संघहितार्थ समर्पित करने को कहा । गुरू के निर्देशानुसार श्रेष्ठी रतनपाल तथा खेतल ने अपने सुयोग्य पुत्र को शासन हेतु समर्पित किया। जो आगे चलकर जिनप्रभसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए।२८ ५.३६ नेढ़ी : ई. सन् की १२वीं-१३वीं शती. धर्मानुरागी श्रेष्ठी दाहड़ सोपारक नगर का समद्ध व्यक्ति था। उसकी पत्नी नेढ़ी भी धर्मपरायण चतुर महिला थी। नेढ़ी ने एक बार पूर्ण चंद्र का स्वप्न देखा और यथासमय तेजस्वीपुत्र बुद्धिमान बालक जासिग को जन्म दिया। वह पढ़ाई भी करता था, तथा माँ के साथ संतों का प्रवचन सुनने भी जाया करता था। उन्होंने कक्कसूरि से जंबूचरित्र का आख्यान सुना विरक्त हुए। दीक्षित होने के पश्चात् यशेशचंद्र नाम रखा तथा सूरिपद पर प्रतिष्ठित होने के बाद जयसिंहसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। माँ के संस्कार तथा धार्मिक वातावरण पुत्र के लिए कल्याणदायक रहा था। ५.४० देदी : ई. सन् की ११ वीं-१२ वीं शती. ___ मंत्री द्रोण की पत्नी का नाम देदी था। इनका पुत्र गोदुह कुमार था। संपूर्ण परिवार जैन धर्म के प्रति आस्थाशील था। इन्हीं संस्कारों के परिणाम स्वरूप गोदुह कुमार विरक्त हुए। दीक्षा के पश्चात् वे सुयोग्य आर्यरक्षितसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए, इन्होंने अंचलगच्छ की स्थापना की थी। ५.४१ जिनदेवी : ई. सन् की ११ वीं-१२वीं शती. गुणवान् श्रेष्ठी वीरनाग की पत्नी का नाम जिनदेवी था। जिनदेवी सरलाशया, विनम्र, विवेक संपन्न, एवं साक्षात् देवी स्वरूप थी। एक दिन जिनदेवी ने स्वप्न में चंद्रमा को अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा । समयानुसार चंद्र के समान तेजस्वी पुत्र को जिनदेवी ने जन्म दिया, पुत्र का नाम पूर्णचंद्र रखा। शासन हित के लिए.मुनिचंद्रसूरि के आग्रह पर माता-पिता ने गुरू चरणों में पुत्र को समर्पित किया। दीक्षा के बाद इनका नाम रामचंद्रसूरि रखा गया। आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने पर देव नाम रखा, आगे चलकर वादिदेवसूरि के नाम से वे प्रसिद्ध हुए। माता जिनदेवी की ममता का त्याग शासन के लिए वरदान सिद्ध हुआ था।३१ ५.४२ वाहड़देवी : ई. सन् की १३ वीं शती. गुजरात प्रदेश के धवलकनगर (धोलका) के वैश्य वाच्छिग की पत्नी का नाम वाहड़ देवी था। वाच्छिग गुजरात राज्य के अमात्य पद पर आसीन थे। माता वाहड़देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। अपने पुत्र जिनदत्त को लेकर वाहड़देवी धर्मकथाएँ सुनने के लिए जाती थी। पुत्र जिनदत्त धर्मकथा को सुनकर वैरागी हुए। मुनिजीवन धारण करने के इच्छुक बने । माता स्वयं धर्मानुयायी थी, अतः उसने पुत्र को धर्मसंघ में समर्पित किया। उपाध्याय धर्मदेव के चरणों में पुत्र दीक्षित हुआ।२ माता की धर्मानुसारिणी वत्ति ही इसका एक मात्र कारण नज़र आता है। ५.४३ यशोमती : ई. सन् की १२ वी १३ वीं शती. यशोमती पांचाल प्रदेश के भद्रेश्वर ग्राम के श्रीमाली जातीय शाह सोलग के पुत्र जिनशासन प्रभावक महादानी मानवसेवी जगडूशाह श्रमणोपासक की पत्नी थी। वह जैन धर्मानुयायिनी बारह व्रत धारी श्रमणोपासिका थी। वह स्वर उदार स्वभाववाली महिला थी, धन समद्धि होते हुए भी वह धन के गर्व से तथा धन की आसक्ति से परे थी। एक दिन मध्यान्ह वेला में एक योगी उसके द्वार पर आकर खड़ा हुआ, पति से अनुमति पाकर शाह पत्नी जलेबी से भरा थाल लेकर योगी से उसे ग्रहण करने की विनंती की। योगी ने उसे ग्रहण नहीं किया, पूर्ववत् वही खड़ा रहा। शाहपत्नी ने तत्काल अपने पति की आज्ञा से एक भारी भरकम चाँदी का थाल इमरतियों से भरकर उस योगी को सादर प्रदान किया। योगी उसकी उदारता तथा दानशीलता से अत्यंत संतुष्ट हुआ। इस घटना से शाह पत्नी की पति परायणता आतिथ्य सत्कार की पवित्र भावना नजर आती है। भयंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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