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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 229 ५.८ श्रवणबेलगोला के ५०० शिलालेख इतिहास के अनेक स्त्रोत हमारे सामने हैं । इनमें अभिलेख, मूर्तिलेख, प्रशस्ति, किंवदन्ति, जनश्रुति, साहित्य आदि, प्रमुख हैं। इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण, अभिलेख एवं शिलालेख हैं, क्योंकि ये पाषाण, या धातुद्रव्यों पर उत्कीर्ण पाये जाते हैं। इस कारण ये जल्दी नष्ट नहीं होते, दूसरे इनमें कालान्तर में परिवर्तन, परिवर्धन, संशोधन, गुपचुप विनष्टीकरण की संभावना नहीं रहती। साहित्यिक कृतियों में परिवर्तन, परिवर्धन, संशोधन और उनका अपने नाम से न्यूनाधिक उपयोग विख्यात है। अतः किसी भी देश काल की धर्म-संस्कृति, रहन-सहन, उत्कर्ष-अपकर्ष, शिक्षा आदि के ज्ञान के लिए अभिलेख, शिलालेख, एवं साहित्य, सर्वाधिक प्रामाणिक आधार हैं। जैन संस्कृति के लिए यह भी गौरव की बात है कि सर्वाधिक अभिलेख शिलालेख जैनियों द्वारा लिखवाए गए हैं या फिर जैन तीर्थों आदि पर उपलब्ध है। दक्षिण भारत में अत्यधिक जैन अभिलेख शिलालेख पाये गये है। श्रवणबेल अधिकांश शिलालेख चंद्रगिरि पर पाये गये हैं। एक मंदिर को छोड़कर शेष सभी मंदिर परकोटे के अंदर है। प्राचीन मंदिर लगभग आठवीं शताब्दी के है, सभी दक्षिण शैली में बने है व सभी का ढंग एक सा है। श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश की प्रतिमा दोड्डबेट अर्थात बड़ी पहाड़ी पर है, इसे विंध्यगिरी भी कहा जाता है, यह पहाड़ी सबसे महत्वपूर्ण है। इस पर समतल चौक है जो एक छोटे से घेरे से घिरा है। चौक के बीचों बीच भगवान् बाहुबली की प्रतिमा है। इस पर सिद्धरबस्ति, अखण्ड बागिलु, सिद्धरगुण्ड, गुलकायज्जिबागिलु, त्यागदब्रह्मदेवस्तम्भ, चेन्नण्णबस्ति, ओढ़ेगल बस्ति, चौबीस तीर्थंकर बस्ति, ब्रह्मदेव मंदिर आदि जिनालय हैं। श्रवणबेलगोल नगर में भी आठ दस जिनालय है। आसपास में जिननाथपुर, ओदेगलबस्ति, हलेबेल्गोल, साणेहल्लि आदि ग्राम है। इन सभी में शिलालेख है, जिन्हें श्रवणबेलगोला के शिलालेख नाम से ही अभिहित किया गया है। उक्त शिलालेखों में लगभग १०० लेखों में मुनियों, आर्यिकाओं, श्रावक, और श्राविकाओं के समाधिमरण का उल्लेख है। लगभग १०० शिलालेखों में मंदिर निर्माण, मूर्ति प्रतिष्ठा, दानशाला, वाचनालय, मंदिरों के दरवाजे, परकोटे, सीढ़ियाँ, रंगशालाएँ, तालाब, कुण्ड, उद्यान, जीर्णोद्धार आदि कार्यों का उल्लेख है। लगभग सौ शिलालेखों में मंदिरों के खर्च, पूजा, अभिषेक, जीर्णोद्धार, आहारदान, ग्राम, भूमि, द्रव्य दान आदि का उल्लेख है। १६० शिलालेखों में संघों, यात्रियों की तीर्थयात्रा का, ४० शिलालेखों में आचार्य, श्रावक व योद्धाओं की स्तुति आदि है। लगभग इन शिलालेखों में गंगवंश, राष्ट्रकुटवंश, चालुक्यवंश, होयसलवंश, मैसूर राजवंश, कदम्ब वंश, नोलंब व पल्लव वंश, चोल वंश, कोंगाल्व वंश, चंगल्व वंश, निटुगल वंश, आदि का उल्लेख हुआ है । इन वंशों के महत्वपूर्ण व्यक्तियों और उनके द्वारा दिये गये दानादि का उल्लेख भी इन शिलालेखों की विशेषता है । १६० तीर्थयात्रियों के लेख में लगभग १०७ दक्षिण भारत के यात्रियों के और ५३ उत्तर भारत के यात्रियों के है | कुछ लेखों में यात्रियों के नाम है तो कुछ में नाम के साथ उपाधियाँ भी हैं। उत्तरभारत के यात्रियों के लेख मारवाड़ी-हिंदी भाषा में है। कुछ यात्रियों के साथ उनकी बघेरवाल जाति, व गोनासा, गर्रा, और पीतला गोत्र का उल्लेख हैं। श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में आचार्यों की वंशावली दी गई है, जिस कारण ये जैन इतिहास की अमूल्य धरोहर है । लगभग १५० आचार्यों का उल्लेख इसमें हुआ है। शिलालेखों में वर्णन है कि जिनभक्त अनेक महिलाओं ने यहाँ निर्माण कार्य कराए, तथा संलेखना विधि से अपना शरीर त्यागा। कतिपय शिलालेखों में श्राविकाओं के नामों की भी अच्छी जानकारी प्राप्त होती है यथा अक्कब्बे, जक्कणब्बे, नागियक्के, माचिकब्बे, शांतिकब्बे, एचलदेवी, शांतला, श्रियादेवी, पदमलदेवी आदि । शिलालेख लिखे जाने के अनेक विषय रहे हैं। मात्र संलेखना संबंधी एक सौ लेख चंद्रगिरि पर है। लेखों से सूचना मिलती हैं कि मुनियों, आर्यिकाओं, श्रावक, श्राविकाओं ने कितने दिनों का उपवास, व्रत या तप करके शरीर लाया था । संलेखना संबंधी सर्वाधिक लेख आठवीं सदी के है ।३४ श्रवणबेलगोला को यदि शिलालेखों का संग्रहालय कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी । लगभग पाँच हज़ार की आबादी वाले इस गाँव की दोनों पहाड़ियों पर गाँव में और आसपास के कुछ गाँवों के शिलालेखों की संख्या ५७३ तक पहुँच गई है । तेईस सौ वर्ष पुराने इतिहास वाले इस स्थान के कितने ही लेख नष्ट हो गए होंगे । इधर उधर जड़ दिए गए होगें या अभी प्रकट नहीं | अंग्रेज विद्वान् बी. लुइस राईस मैसूर राज्य के पुरातत्व शोध कार्यालय के निदेशक थे। उन्होंने मैसूर राज्य के हजारों शिलालेखों की खोज की और उन्हें एपिग्राफिका कर्नाटका (कर्नाटक के शिलालेख) के रूप में प्रकाशित कराया। श्रवणबेलगोला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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