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________________ 212 महावीरोत्तर-कालीन जैन श्राविकाएँ ई.पू. छठी शती से ई. सन की सातवीं शती क्र० संवत् श्राविका नाम प्रेरक/प्रतिष्ठापक गच्छ / आचार्य संदर्भ ग्रंथ अवदान प्रतिमा निर्माण आदि प्रतिमा ................... म.ए.प.जै.ध. 449 बप्पनाग श्री रत्नप्रभ सूरी जी श्री महावीर स्वामी भ.पा.प.इ. 157 ई.पू. द्वितीय | कुटुम्बनी शती ई.पू. द्वितीय | मायादे शती ई. सन की छांडदे, नागणदे, 5वीं शती छाहड़ी ई. सन की देवलदे 7वीं शती ई. सन की मांगी, जसादे 7वीं शती उप, चोरड़िया | उप. देवगुप्तसूरि जी श्री महावीर स्वामी भ.पा.प.इ. 157 बप्पनाग उप. कक्कसूरी जी श्री शांतिनाथ स्वामी भ.पा.प.इ. 157 58 आदित्यनाग | उप. देवगुप्तसूरी जी श्री महावीर स्वामी भ.पा.प.इ. 157 क्र० | संवत् श्राविका नाम 59 | अनुपलब्ध शिवमित्रा 498 60 | अनुपलब्ध शिवमित्रा 27 61 | अनुपलब्ध | दिना(दत्ता) 496 प्रेरक/प्रतिष्ठापक अवदान संदर्भ ग्रंथ गच्छ / आचार्य प्रतिमा निर्माण आदि गोतिपुत्र की पत्नी थी। सुंदर आयागपट्ट की स्थापना | पं.च.अ.ग्र. की जो भग्न है। मत्स्य युक्त सरोवर में पुष्पित एवं मुकुलित कमलों की सुंदर बेल उसपर चित्रित है। फल्गुयश नर्तक की पत्नी थी। मध्य में वेदिकायुक्त तोरण जै.शि.सं.भा. 2 चित्रित सुंदर आयागपट्ट दान में दिया। आजु बाजु में आभूषणों सहित दो सुंदरियाँ प्रदर्शित है। वजनंदिन की पुत्री वृद्धि शिव की | एक प्रतिमा का दान किया पं.च.अ.ग्र. बहू थी। भदंत जयसेन की अंतेवासिनी एक प्रसाद का दान किया था। | पं.च.अ.ग्र. शिष्या थी। बुद्धि की पुत्री तथा देविल की। गोदासगणि के आदेश से दान | जै.शि.सं.भा. 2 पत्नी थी। दिया था। वयरसिंह की पत्नी थी। पुत्रियाँ रूडी, व गांगी के साथ | जै.शि.सं.भा. 2 मिलकर नेमिनाथ का मंदिर बनवाया था। मुनि सिंह ने प्रतिष्ठा करवाई थी। वरणहस्ति व देवी की पुत्री गुरुआर्य क्षेरक की प्रेरणा से जै.शि.सं.भा. 2 कुठकुसुत्य की पत्नी जयदेव व सर्वतो भद्रिका प्रतिमा बनवाकर मोहिनी की बहू थी। भेंट की थी। मोगली पुत्र की पत्नी पुष्पक थी। | दान का वर्णन है। जै.शि.सं.भा. 2 था। 62 | अनुपलब्ध धर्मघोषा 496 | अनुपलब्ध गृहश्री | 32 64 | अनुपलब्ध फाऊ | 164 65 | अनुपलब्ध स्थिरा | 21 66 | अनुपलब्ध असा 53 67 | अनुपलब्ध | 48 | मारसिंह की लघु बहन 68 | अनुपलब्ध अचला 48 वह माघनंदी की शिष्या थी। जैन मंदिरों का निर्माण व जैन | जै.शि.सं.भा. 2 मुनियों के आवास का प्रबंध किया था। भद्रयश की बहू व भद्रनंदि की। अर्हतो के पूजार्थ एक जै.शि.सं.भा. 2 पत्नी थी, तथा गृहदत्त की पुत्री आयागपट्ट स्थापित किया था। थी। वह गृहदत्त की पुत्री थी। धर्मार्थ नामक श्रमण के उपदेष | पं.चं.अ.ग्रं. | से षिलापट्ट का दान दिया था। 69 | अनुपलब्ध |धनहस्ति की पत्नी 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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