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________________ 210 क्र० 17 18 19 20 21 22 23 24 26 127 28 29 30 31 32 33 25 सन् 110 34 संवत् 35 सन् 58 सन् 76 सन् 83 सन् 93 सन् 95 सन् 96 सन् 98 सन् 103 सन् 113 सन् 118 सन् 118 सन् 123 सन् 125 सन् 126 सन् 128 सन् 140 सन् 140 सन् 157 Jain Education International श्राविका नाम कौशिकी सुचिल की धर्मपत्नी खुड्डा (क्षुद्रा) कुमार मित्रा गृहरक्षिता मित्रश्री मित्रा रयगिनी (राजगगणी) जितमित्रा श्यामाढ्य सिंहदत्ता दिना (दत्ता) धर्मवृद्धि की भार्या पुष्पदत्त की माता यशा विजयश्री वैहिका दिना, दत्ता दिना (दत्ता) महावीरोत्तर - कालीन जैन श्राविकाएँ ई.पू. छठी शती से ई. सन् की सातवीं शती प्रेरक / प्रतिष्ठापक गच्छ / आचार्य अवदान प्रतिमा निर्माण आदि | सिंह नामक वणिक् की पत्नी थी । पुत्र सहित सुंदर आयागपट्ट की पं.च.अ. ग्रं. स्थापना की थी। वह देवपाल सेठ की पुत्री, सेन की पत्नी थी। वह श्रेष्ठी वेणी की पत्नी थी, भट्टिसेन की माता थी । मणिकार जयभट्ट की पुत्री थी। लोहव्यवसायी फल्गुदेव की पत्नी थी । वह जयभट्ट की पत्नी थी। नांदगिरी के जृभक की बहू थी । वह ऋतुनंदी की पुत्री तथा गंधिक बुद्धि की धर्मपत्नी थी । वह भट्टिभव की पुत्री थी । गृहमित्र की पालित प्रातारिक (नाविक) की पत्नी थी । वह ग्रामिक देव की वधू तथा ग्रामिक जयनाग की पत्नी थी। बुद्धि की बहू पुष्प की वधू थी। वह सर्वत्रात की पोती, बंधुक की पत्नी थी। थी। राजा वसु की पत्नी थी, बबु पुत्री थी आर्या जिनदासी की शिष्या थी । की वज्रनंदि की पुत्री वृद्धिशिव की बहू थी । आर्य मातृदिन्न की प्रेरणा से भ. जै.शि.सं.भा.2 शांतिनाथ जी की प्रतिमा अर्पित की थी। वर्धमान प्रतिमा का दान दिया था । आर्यावसुला के उपदेश से सर्वतोभद्रिका प्रतिमा की स्थापना की थी । एक जिन प्रतिमा का दान किया था । अरिष्टनेमी की प्रतिमा का दान दिया था। आर्यनंदिक की प्रेरणा से सर्वतोभद्रिका प्रतिमा की स्थापना की थी। अक्का नंदा के उपदेश से एक शिला स्तंभ तथा सर्वतोभद्रिका प्रतिमा का दान किया था । ऋषभ देव की प्रतिमा का दान दिया था। जिन प्रतिमा का निर्माण करवाकर, दान में दी थी। कोट्टियगण के आर्य सिंह की प्रेरणा से विशाल प्रतिमा का दान किया था। जिन प्रतिमा का दान दिया था जै.शि.सं.भा. 2 वाचकसेन के अनुरोध से जिनप्रतिमा का दान दिया था। धन्यपाल की शिष्या धन्यमिश्रिता की प्रेरणा से संभवनाथ भगवान् की प्रतिमा बनवाई थी। एक माह के उपवास के पश्चात् वर्द्धमान प्रतिमा की स्थापना की थी। संदर्भ ग्रंथ विद्याधरी शाखा के दत्तिलाचार्य जै. शि.सं. भा. 2 की आज्ञा से प्रतिमा बनवाई थी। मुनि की प्रेरणा से प्रतिमा का दान किया था। आर्य संघसिंह की प्रेरणा से भ० वर्धमान स्वामी की प्रतिमा बनवाई थी। मुनिसुव्रत की प्रतिमा को देवनिर्मितवोद्व या बोद्ध शब्द पं.चं.अ. ग्रं. For Private & Personal Use Only जै.शि.सं.भा. 2 पं.चं. अभि. ग्रं. जै.शि.सं.भा. 2 जै.शि.सं.भा. 2 व पं.चं. अ. ग्रं. जै.शि.सं.भा. 2 जै.शि.सं.भा. 2 पं.च.अ.ग्र. पं.च.अ.ग्र. जै.शि.सं.भा. 2 पं.च.अ.ग्र. जै.शि.सं.भा. 2 जै. शि.सं. भा. 2 जै.शि.सं.भा. 2 पं.चं.अ. ग्रं. पृ. 493 495 25 26 493 495 23 495 25 25 497 29 23 58 35 496 499 29 497 38 39 52 496 www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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