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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 203 माता-पिता तथा नागिला के विषय में प्रश्न किया। महिला नागिला ने मुनि के एकाकी आगमन का प्रयोजन पूछा । मुनि ने अपना प्रयोजन स्पष्ट बतलाया। नागिला ने मुनि भवदेव को परिचित कराया कि नागिला वह स्वयं है। अखण्ड ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करती हुई कठोर तपश्चर्या द्वारा श्राविका के व्रतों का पालन कर रही है और अनेक महिलाओं से भी श्राविकाओं के व्रतों का पालन करवा रही है, उत्तम आत्मार्थी साधु-साध्वियों के उपदेशामत का पान कर रही है, और प्रतिक्रमण प्रत्याख्यानादि से भवभ्रमण की महाव्याधि के समूल नाश के लिए सदा प्रयत्नशील रहती हैं। नागिला ने मुनि को मनुष्य जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश दिया। कुत्सित भावनाओं को गुरू के समक्ष प्रायश्चित्त कर शुद्ध होने की प्रेरणा दी एवं बाह्यरूप से चिरकाल तक परिपालित श्रमणाचार का अंतर्मन से पूर्णरूपेण पालन करने की प्रेरणा दी। नागिला के हितप्रद एवं बोधपूर्ण वचन सुनकर भवदेव के हृदय पटल पर छाये हुए मोह के घने बादल तत्क्षण छिन्न भिन्न हो गए। उनका अज्ञान तिमिराच्छन्न अन्तःकरण ज्ञान के दिव्य प्रकाश से आलोकित हो उठा। मुनि ने निश्छल स्वर में नागिला को सच्ची सहोदरा, गुरूणीतुल्या और उपकारी माना, संकल्प ग्रहण किया कि शेष जीवन निर्दोष साधु धर्म का त्रिकरण त्रियोग से पालन करूंगा। इस प्रकार श्राविका नागिला ने पवित्र नारी जीवन की प्रतिमूर्ति बनकर त्याग वैराग्य में मुनि को स्थिर किया। स्वयं भी मुक्ति पथ की अनुगामिनी बनी। यह घटना भ. महावीर ने निर्वाण गमन से १६ वर्ष पूर्व श्रेणिक से कहीं थीं। यह विद्युनमाली देव (जंबू कुमार) के पूर्वभव की घटना है। ४.२५ चणकेश्वरी : ई. पू. चतुर्थ शती. चणकेश्वरी मौर्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्रीश्वर चाणक्य की माता थी तथा गोल्ल निवासी चणक की पत्नी थी। चणक और चणकेश्वरी दोनों धर्म प्रधान वत्ति के दम्पत्ति थे। ई. पू. ३७५ में चणकेश्वरी ने पुत्र चाणक्य को जन्म दिया था। जिस समय चाणक्य का जन्म हुआ उस समय जैन संत ब्राह्मण चणक के मकान में बिराज रहे थे। संतो ने बालक के लिए भविष्यवाणी की थी कि यह राजा के समकक्ष प्रभावशाली होगा। संतों की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। चाणक्य सम्राट चंद्रगुप्त का अभिन्न अंग था। चणकेश्वरी चाणक्य जैसे धैर्यवान एवं प्रतिभासंपन्न व्यक्तित्व को जन्म देने वाली वीर माता थी।४७ ४.२६ धारिणी : ई. पूर्व की पांचवी शती. मगध राज्य की राजधानी राजगह नगर में ऋषभदत्त श्रेष्ठी रहते थे। उनकी निर्मल स्वभाव वाली शीलवती सन्नारी धारिणी थी। उसने देव की आराधना की तथा एक बार सिंह एवं जंबूफल का शुभ स्वप्न देखकर जागत हुई और यथासमय तेजस्वी पुत्ररत्न जंबूकुमार को जन्म दिया। युवावस्था में जंबू कुमार का आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। उनके नाम इस प्रकार है, पद्मावती की पुत्री समुद्रश्री, कमलमाला की पद्मश्री, विजयश्री की पद्मसेना, जयश्री की कनक सेना, कमलावती की नभसेना, सुषेणा की कनकश्री, वीरमती की कनकवती, जयसेना की पुत्री जयश्री आदि। इन आठों कुमारियों ने जंबू कुमार के दढ़ वैराग्य को देखा। देखकर अपने भोगमय जीवन को आठों कुमारीयों ने तिलांजली दी तथा त्यागमय जीवन अपनाया । माता धारिणी ने भी जंबू कुमार का ही अनुगमन कर सच्चा मातत्व निभाया। जंबू की आठ पत्नियों की माताओं ने भी दीक्षा अंगीकार की। एक अनूठा त्याग का आदर्श स्थापित किया। इन सत्तरह श्राविकाओं ने भोगों की क्षणभंगुरता को देखने की दष्टि प्राप्त की एवं जिन शासन की प्रभावना की। ४.२७ अन्निका : ई. पू. की पाँचवी शती. अन्निका दक्षिण मथुरा की निवासी वाणिक पुत्र जयसिंह की रूप गुणसंपन्ना बहन थी। उत्तर मथुरा निवासी युवा व्यवसायी देवदत्त जयसिंह का मित्र था। देवदत्त अन्निका से आकर्षित हुआ व जयसिंह से अन्निका की याचना की। जयसिंह ने इस शर्त पर अन्निका का विवाह किया कि जब तक अन्निका पुत्रवती नहीं होगी तब तक देवदत्त अन्निका सहित उसी के घर पर रहेगा। देवदत्त ने इस शर्त को स्वीकार किया, जयसिंह के घर पर ही रहने लगा। कालांतर में देवदत्त के वद्ध माता-पिता ने एक पत्र पुत्र को प्रेषित किया कि हम कराल काल के मुख में जाने वाले है, एक बार आकर हमसे मिलो, हमें शांति प्राप्त होगी। देवदत्त बार-बार पत्र को पढ़कर खूब रोया अन्निका ने भी पत्र पढ़ा और भाई से उत्तर मथुरा जाने की अनुमति माँगी। अग्निका ने मार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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