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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास धर्म, साहित्य एवं संस्कृति की सेवा में दिये गये अमूल्य योगदान को उजागर करने का निर्णय दृढीभूत हुआ । परिणाम स्वरूप प्रस्तुत शोध प्रबन्ध की रचना श्राविका के बृहद इतिहास के रूप में हुई। "चतुर्विध जैन संघ में श्राविकाओं का योगदान" यह विषय व्यवहारिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी और प्रेरणास्पद है, अतः इस विषय को सात अध्यायों में प्रस्तावित कर मैनें निम्न प्रकार से संयोजित किया है। प्रथम अध्याय में भूमिका के रूप में प्रत्येक युग की नारी के स्थान एवं महत्व पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है, जिसमें भारतीय परंपरा की वेदकालीन, उपनिषद्कालीन, रामायण एवं महाभारतकालीन, मध्यकालीन, मुस्लिमकालीन एवं आधुनिक युगीन नारियों की अवस्था का सामान्य चित्रण, तद्-तद् काल की नारी शक्ति एवं उसके शील गुणों का परिचय इस प्रथम अध्याय में दिया गया है। द्वितीय अध्याय में प्रागैतिहासिक कालीन अर्थात् प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जी से लेकर बाईसवें तीर्थंकर भगवान श्री अरिष्टनेमि जी के काल की जैन श्राविकाओं के योगदान का उल्लेख है। इसमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि को जन्म देनेवाली माताओं उनकी धर्मपत्नियाँ तथा तद्युगीन उपलब्ध श्राविकाओं का वर्णन है। तृतीय अध्याय में सर्वप्रथम ई.पू. आठवीं शताब्दी के तेइसवें तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ एवं ई.पू. छठी शताब्दी के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के समय की सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् उस युग के राजवंश की तथा अन्य वंशों की शील गुणसंपन्न, त्यागी, अनुकरणीय श्राविकाओं का वर्णन है । चतुर्थ अध्याय में ई.पू. की छठी शताब्दी से लेकर ई. सन् की सातवीं शताब्दी अर्थात् महावीरोत्तर काल का वर्णन किया गया है । इस कालक्रम में भारत के महत्त्वपूर्ण राजवंशों का जैसे नंदवंश, चेदिवंश, मौर्यवंश, गंगवंश, उत्तर भारत में मथुरा तथा दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला के महत्त्वपूर्ण अभिलेखों में उल्लेखित श्राविकाओं का तथा अशोक, संप्रति, चंद्रगुप्त, कुणाल, प्रभृति मौर्यवंश के राजाओं के समय की महत्वपूर्ण श्राविकाओं की धर्म प्रभावना का समुल्लेख है । पाँचवें अध्याय में आठवीं से पंद्रहवीं शताब्दी तक के कालक्रम में गुजरात के प्रसिद्ध राज्यवंशों का वर्णन तथा उस समय की प्रसिद्ध श्राविकाओं का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। साथ ही उत्तर एवं दक्षिण भारत की राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों से सम्बन्धित सरस इतिहास के सहज बोध के साथ पांचवां अध्याय समाप्त किया है। इसमें परमारवंश, धारावंश सिसोदिया वंश, गंगवाड़ी वंश, होयसल वंश के काल की श्राविकाओं एवं अन्य श्राविकाओं का वर्णन भी किया गया है। छठे अध्याय में सोलहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी अर्थात् आधुनिक कालीन श्राविकाओं का वर्णन किया गया है। इस कालक्रम में सोलहवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी के काल को मुगल साम्राज्यकाल कहा गया है। मुगल साम्राज्य के श्रेष्ठ राजा अकबर महान् हुए । उनके समय में महान् तपस्विनी चम्पा श्राविका हुई थी। इस तपस्विनी के तप के प्रभाव से अकबर बादशाह भी प्रभावित हुए तथा उन्होंने अहिंसात्मक जीवन शैली को अपनाया। इसी अध्याय में मेवाड़, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा दक्षिण प्रांत की सुश्राविकाओं का उल्लेख किया गया है। उन्नीसवीं शताब्दी की एक उल्लेखनीय जर्मन श्राविका चारलेट क्रॉस हुई थी, उसका वर्णन भी इस अध्याय में किया गया है। सातवें अध्याय में उन्नीसवीं, बीसवीं तथा इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ की तथा उत्तर एवं दक्षिण भारत की आधुनिक कालीन जैन श्राविकाओं के विभिन्न क्षेत्रों में दिये गये अवदानों की चर्चा है। इस अध्याय में विभिन्न कार्यक्षेत्रों जैसे राजनीति, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, संगीत, कला एवं धर्म के संरक्षण एवं उन्नयन में श्राविकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। शोध कार्य करते हुए उत्तर भारत में विचरण होने से उस क्षेत्र की श्राविकाओं का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त हुआ, किंतु पत्र-पत्रिकाओं एवं पत्राचार के संपर्क से ही दक्षिण भारत की श्राविकाओं का विशेष विवरण उपलब्ध हो पाया है। वर्तमान कालीन श्राविकाओं की संख्या और उनके योगदान बहुत ही व्यापक हैं, अतः विस्तार भय से इस अध्याय को सीमित ही रखा गया है। इस सामग्री को संयोजित करने के लिए मैंनें (१) जैन आगम साहित्य (२) आगमेत्तर साहित्य (३) व्याख्या साहित्य ( ४ ) अभिलेखीय सूचनाएँ (५) पुरासाक्ष्य एवं (६) अन्य साहित्यिक स्त्रोतों को आधार बनाया है। सम्पूर्ण शोध सामग्री को संकलित करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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