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ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
३.७.७४ धारिणी देवी : भगवान् महावीर स्वामी के शासनकाल में महाराजा श्रेणिक की रानी थी धारिणी । धारिणी ने कालांतर में सिंह का सपना देखा तथा जाली कुमार को जन्म दिया। युवावस्था में कलानिपुण जालीकुमार का विवाह आठ कन्याओं से किया गया।१६ इसी प्रकार धारिणी के मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदंत, लष्टदंत आदि छ: अंगजात चरम शरीरी हुए। इस प्रकार धारिणी का योगदान इस रूप में रहा कि उसने धर्म संस्कारों से अपने पुत्रों को भी धर्म मार्ग पर बढ़ाया।
३.७.७५ सुभद्रा जी : राजगही नगरी में “धन्य" नाम का धनाढ्य श्रेष्ठी रहता था। सुभद्रा धन्य की पत्नी थी तथा गोभद्र ठ की पुत्री एवं शालीभद्र की बहन थी। सुभद्रा भाई शालीभद्र के संसार त्याग की बात सुनकर बंधु विरह के दुःख से भरी हुई थी। धन्य श्रेष्ठी स्नान करने बैठा। उसकी पत्नियाँ उबटन आदि कर रही थी, सुभद्रा सुगंधित जल से स्नान करवा रही थी। उसके नेत्र से आंसू की धारा बह निकली। धन्य द्वारा कारण पूछने पर सुभद्रा ने भाई की दीक्षा तथा प्रतिदिन एक नारी का त्याग आदि ही उसके दुःख का कारण है ऐसा बताया। धन्य ने कहा-वीर पुरुष एक साथ ही त्याग करता है, तेरा भाई तो कायर है। अन्य पत्नियां बोली-यदि त्यागी बनना सरल है तो आप ही एक साथ सर्वस्व त्याग कर निग्रंथ दीक्षा क्यों नहीं ले लेते? कहना सरल, करना कठिन होता है। धन्य उठ खड़ा हुआ-बोला मैं यही चाहता था, तुमने सहज ही मैं मुझे आज्ञा प्रदान कर दी है। धन्ना मनाने पर भी न माना, पत्नियां भी संयम लेने के लिए तत्पर हो गई। भगवान् महावीर पुण्य योग से पधारें | धन्य ने दीनजनों को विपुल दान दिया, पत्नियों सहित शिविका में बैठकर भगवान् के समीप गया दीक्षित हुआ।५८
३.७.७६ धन्या जी : राजगह के निकट शालीग्राम में धन्या नाम की स्त्री थी, वह अन्य किसी ग्राम से आकर यहाँ रहने लगी थी। उसके "संगमक" नामक पुत्र था। शेष संपूर्ण परिवार काल कवलित हो चुका था। धन्या दूसरे घरों में मजदूरी करती थी और सगमक दूसरे के गौ बच्छड़ों को चराया करता था। एक बार पर्वोत्सव के दिन सभी लोगों के घरों में खीर बनाई गई थी। संगमक ने लोगों को खीर खाते देखा तो मां से खीर बनाने को कहा। धन्या पूर्व की संपन्न स्थिति तथा आज की दरिद्र अवस्था का विचार कर रोने लगी। आस पास की महिलाओं ने उसका रुदन देखा, कारण पूछा, तब उसने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा। मेरी वर्तमान स्थिति रूखा सूखा खाकर पेट भरने की है। बेटे को मैं खीर कैसे खिलाऊँ? पड़ोसिन महिलाओं ने करुणा कर दूध, चीनी आदि सामग्री अपने घरों से लाकर दी, धन्या ने खीर पकाई, अपने पुत्र को थाली में डालकर दे दी। पुत्र को खीर देकर धन्या दूसरे कामों में लग गई। मासखमण तपस्वीधारी मुनिराज पारणे के लिए भिक्षा हेतु विचरण करते हुए धन्या के घर आ गए। संगमक थाली की खीर को ठंडी होने तक रूका हुआ था। मुनिराज को देख कर अपने भाग्य की सराहना करने लगा और समस्त खीर मुनि के पात्र में डाल दी। तपस्वी संत लौट गए, धन्या अपना काम निबटाकर घर में आई। उसने देखा थाली में खीर नहीं है, पुत्र खा गया है, उसने दूसरी बार खीर परोसी। संगमक ने रुचिपूर्वक आकण्ठ खीर खाई, उससे अजीर्ण होकर वह रोगातंक हुआ। रोग उग्रतम हुआ, परन्तु संगमक के मन में तपस्वी संत और उन्हें दिये हुए दान की प्रसन्नता रम रही थी, उन्हीं विचारों में संगमक ने आयु पूर्ण कर देह छोड़ी और गोभद्र सेठ के पुत्र शालीभद्र के रूप में पैदा हुआ "५६ तत्पश्चात् शालीभद्र जब मुनि अवस्था में थे तब अंतिम दही का आहारदान माता धन्या ने दिया, तत्पश्चात शालीभद्र ने अनशन स्वीकार किया। धन्या महाभाग्यशालिनी माता थी१६० स्वावलंबन पुत्र प्रेम तथा मुनिभक्ति उसके जीवन का आदर्श था।
३.७.७७ प्रियदर्शना जी : महावीर एवं यशोदा की पुत्री थी तथा जमालि की पत्नी थी। अनोद्या उसका अन्य नाम था, उसकी पुत्री का नाम शेषवती (यशवती) था।१६१ प्रियदर्शना प्रभु महावीर की श्राविका थी तथा वह महावीर के संघ में दीक्षित भी हुई थी।६२ इस प्रकार प्रियदर्शना ने पिता के साथ धर्मस्नेह का रिश्ता जोड़कर पितावत अपनी आत्मा का उत्थान किया, पवित्र जीवन व्यतीत किया।
३.७.७८ पद्मावती जी६३ : महाराज कुणिक की रानी का नाम पद्मावती था। एक बार उसने कुणिक के छोटे भाई विहल्ल और वेहास को चेलना प्रदत्त अठारह लड़ी वाला हार, कुण्डल और वस्त्र पहनकर सेचनक हस्ति पर बैठकर निकलते हुए तथा रानियों के साथ जलक्रीड़ा करते हुए देखा और ईर्ष्या से जल गई। उसने हठ पकड़ ली और कोणिक से निवेदन किया कि ये वस्तुएं आप ले लेवें। मोह से दबे कुणिक ने हार और हाथी की माँग की। दोनों कुमारों ने कहा-बदले में आप आधा राज्य दे दीजिए। कूणिक इस बात पर राजी नहीं हुआ विहल्ल और वेहास मातामह चेटक की शरण में वैशाली गए। चेटक को कणिक ने संदेश भिजवाया
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