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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास ३.७.६७ श्रीकांता जी : भ. महावीर के शासनकाल में, साकेत नाम का सुरम्य नगर था। मित्रनंदी नाम का राजा राज्य करता था । । उसकी रानी का नाम श्रीकांता था जिसके वरदत्त कुमार नाम का पुत्र था । वीरसेना आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ । १४४ ३.७.६८ धारिणी देवी : भ. महावीर के शासनकाल में हस्तिशीर्ष नामक नगर में अदीनशत्रु नामक राजा राज्य करते थे । उनकी प्रमुख रानी का नाम धारिणी था । धारिणी ने किसी समय सुखपूर्वक सोते हुए शुभ लक्षणों वाले सिंह को क्रीड़ा करते हुए आकाशमार्ग से उतर कर स्वमुख में प्रवेश करते हुए देखा, अत्यंत हर्षित हुई । यथासमय उसने एक तेजस्वी पुत्र रत्न को जन्म दिया, जिसका गुणनिष्पन्न नाम रखा गया सुबाहुकुमार । १४५ इन माताओं का महत्वपूर्ण योगदान इस रूप में रहा है कि इन्होंने संस्कारवान् पुत्रों को जन्म ही नहीं दिया किंतु उनको धर्म पथ पर चलने में पूर्ण सहयोग दिया। अंतगढ़ सूत्र में वर्णित श्रेणिक महाराजा की नन्दवती, नन्दोत्तरा, नंदा, मरूता, सुमरूता, महामरूता, मरूदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमनायिका, भूतदत्ता आदि तेरह रानियाँ भगवान् महावीर की परम उपासिका थी, विरक्त होकर संसार का त्याग किया और मोक्ष में गई | १४६ 181 श्रेणिक महाराजा की अन्य काली, सुकाली, महाकाली, कष्णा, सुकष्णा, महाकष्णा, वीरकष्णा, रामकष्णा, पितसेनकष्णा, महासेनकष्णा आदि दस रानियों ने भी प्रभु महावीर से अपने युद्ध में गये हुए अपने ही नाम वाले दस पुत्रों की मत्यु का समाचार सुनकर भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षा धारण की तथा तप के विविध आभूषणों से काया को सजाकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुई । सभी रानियां धर्म में दढ़ होकर संयम लेकर मोक्ष को प्राप्त हुई । १४७ ३.७.६६ फल्गुसेना जी : फल्गुसेना दुःषम काल (पंचम आरे) की अंतिम श्राविका होगी, यह साकेत नगर की रहने वाली होगी। दुषम काल के साढ़े आठ मास शेष रहने पर कार्तिक मास में कष्ण पक्ष के अंतिम दिन प्रातः स्वाति नक्षत्र के उदयकाल में शरीर त्याग कर प्रथम स्वर्ग में जाएगी । १४८ ३.७.७० यशा जी : तीर्थंकर महावीर के शासन में कौशाम्बी नगरी के राजा जितशत्रु का पुरोहित "काश्यप " ब्राह्मण था, यशा उसकी पत्नी थी, तथा कपिल पुत्र था । कपिल बालक था, तभी पिता की मत्यु हुई तथा राजा से सम्मान मिलना बंद हो गया। नये पुरोहित की राजसवारी को निकलते हुए देखकर यशा रोने लगी। पुत्र ने कारण पूछा मां को आश्वस्त किया कि मैं पढ़ लिखकर पिता का पद प्राप्त करूंगा। मां ने पढ़ने के लिए पति के मित्र पंडित इंद्रदत्त के समीप श्रावस्ती नगरी में पुत्र को भिजवाया । १४६ इस प्रकार यशा की जागरूकता नज़र आती है, वह पुत्र को उचित शिक्षा देकर उसे सुयोग्य पद पर प्रतिष्ठित देखने हेतु पुरुषार्थरत है। ३.७.७१ भद्रा जी : काकंदी नगरी में भद्रा सार्थवाही रहती थी, उसका धन्य नामक पुत्र था। बत्तीस कन्याओं के संग उसका विवाह हुआ बाद में दीक्षीत हुआ था । १५° इसी प्रकार भद्रा के सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चंद्रिक, पुष्टिमातक, पेढ़ालपुत्र, पोष्टिल्ल आदि आठ पुत्र हुए । धन्य की तरह उन्होंने भी दीक्षा ली। भद्रा का योगदान यह था कि उसने जिनधर्मप्रभावक पुत्रों को जन्म दिया था । १५१ ३.७.७२ धारिणी जी : राजगही के महाराजा श्रेणिक की रानी थी । यथासमय उसने क्रम से दीर्घसेन, महासेन, लट्ठदंत, गूढदंत, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पुण्यसेन आदि राजकुमारों को जन्म दिया। उसने धर्म प्रभावक सुयोग्य पुत्रों को जन्म दिया, यही उसका महत् योगदान है । १५२ ३.७.७३ नंदा जी : श्रेणिक एक बार वेणातट नगर आया, वहाँ भद्र नामक श्रेष्ठी रहता था। उसकी पुत्री का नाम था नंदा । श्रेणिक की तेजस्विता को देखकर उन्होंने नंदा का विवाह श्रेणिक के साथ संपन्न किया । १५३ कालांतर में उसके उदर से अभय कुमार नामक पुत्र पैदा हुआ। एक बार भगवान् महावीर स्वामी से यह सुनकर कि मुनि जीवन स्वीकार करने वाले उदयन अंतिम राजा होंगे, अभय ने राजा बनने से पूर्व राज्य त्याग का निश्चय किया। माता नंदा स्वयं भी दीक्षित होने के लिए तत्पर थी । श्रेणिक ने माता-पुत्र का महोत्सव मनाया। १५४ नंदा महासती चंदनबाला की शिष्या बनी । १५५ नंदा स्वयं धर्म संस्कारवान थी । संस्कारवान् पुत्र को जन्म देने मात्र का ही नहीं, किंतु पुत्र के साथ ही स्वयं भी जीवन को पावन करनेवाली पुण्यशालिनी वीर माता थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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