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________________ 180 ३.७.५७ धारिणी देवी : धारिणी पोतनपुर नरेश सोमचंद्र की रानी थी। एक बार रानी अपने पति के मस्तक के बाल स्नेहपूर्वक संवार रही थी, कि उनकी दष्टि एक श्वेत बाल पर पड़ी। उसने पति से कहा - "स्वामी! दूत आ गया है।" रानी द्वारा श्वेत बाल रूप दूत बताने पर राजा खेदित होकर बोला, इस दूत के आने से पूर्व ही मुझे त्याग मार्ग अंगीकार कर लेना चाहिए था। लेकिन अब मैं शीघ्र ही त्यागी बनने को तत्पर हूँ, तुम राज्य संभालो । रानी ने भी त्याग मार्ग अपनाया। राजा रानी ने पुत्र प्रसन्नचंद्र को राज्य दिया। स्वयं "दिशा - प्रोक्षक" जाति के तापस होकर रहने लगे। वे सूखे पत्ते खाकर तप साधना करते, घास की मढ़ी विश्राम के लिए बना ली। पके हुए फल आदि खाकर जीवन निर्वाह करने लगे। कालांतर में तापसी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया "वलकलचीरी । संस्कारवान पुत्र को जन्म देना ही धारिणी का महत्वपूर्ण योगदान है । १३४ T ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ : ३.७.५८ सुवर्णगुलिका जी सिंधु सौवीर की राजधानी वीतभय नगरी थी। महाराज "उदयन" वहाँ के राजा थे। उनकी प्रभावती नाम की रानी थी, अभीचिकुमार उनका पुत्र था । उदयन नरेश श्रमणोपासक थे। उनके राज्य में अनुपम सुंदरी सुवर्णगुलिका नामक दासी थी । अवंतिनरेश चण्डप्रद्योत ने यह जान लिया तथा उसे प्राप्त करने के लिए एक विश्वस्त दूत भेजा। दासी ने दूत का संदेश समझा उस पर विचार किया कि दासी से महारानी बनने का मुझे सुयोग प्राप्त हो रहा है। उसने सन्देश भिजवाया कि महाराजा लेने आयेंगे तो मैं उनके साथ जाने को तत्पर हूँ। कामासक्त चंडप्रद्योत अनलवेग हाथी पर सवार होकर वीतभय नगर आया और सुवर्णगुलिका को अपने साथ लेकर उज्जयिनी लौट आया । १३५ सुवर्णगुलिका अपने सौंदर्य के कारण राजरानी बन गई। ३.७.५६ सरस्वती देवी जी : भ. महावीर के शासनकाल में ऋषभपुर नामक नगर में धनावह राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम सरस्वती देवी था। किसी समय सुखपूर्वक सोते हुए उसने सिंह का स्वप्न देखा । यथासमय तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया भद्रनंदीकुमार । माता-पिता ने भद्रनंदी कुमार का श्रीदेवी प्रमुख पांच सौ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया । १३६ ३.७.६० श्रीदेवी जी : वीरपुर नाम का एक नगर था, वीरकष्णमित्र वहाँ के राजा थे, उनकी रानी का नाम था श्रीदेवी । कालान्तर में श्रीदेवी के उदर से सुजात कुमार नाम का तेजस्वी पुत्र पैदा हुआ। माता-पिता ने उसका विवाह बलश्री आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ किया । १३७ ३.७.६१ कृष्णा जी : विजयपुर नाम का नगर था। वासवदत्त नाम का राजा राज्य करता था। उनकी रानी का नाम कष्णा था। कालांतर में शुभ स्वप्न देखकर रानी ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम रखा "सुवासव" कुमार और जिसका भद्रा आदि पाँच सौ राजकन्याओं के साथ विवाह किया गया । १३८ ३.७.६२ सुकन्या जी : सौगंधिका नाम की नगरी थी। उसमें अप्रतिहत राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम सुकन्या था। कालांतर में उससे महचंद्र नामक तेजस्वी कुमार पैदा हुए। उनकी स्त्री अरहदत्ता थी । उनसे जिनदास नामक पुत्र पैदा हुआ । १३६ ३.७.६३ सुभद्रा जी : कनकपुर नाम का नगर था । प्रियचंद्र राजा राज्य करते थे। उनकी रानी सुभद्रा थी। जिसने वैश्रमण कुमार को जन्म दिया था । वैश्रमण के युवावस्था प्राप्त होने पर श्रीदेवी प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ। १४० ३.७.६४ सुभद्रा जी : महापुर नामक नगर था। वहाँ पर बल राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सुभद्रा था। सुभद्रा के पुत्र का नाम महाबलकुमार था जिसका रक्तवती आदि पांच सौ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया गया था । १४१ ३.७.६५ तत्ववती जी : सुघोष नामक नगर था । अर्जुन नामक राजा राज्य करता था, उसकी रानी का नाम तत्ववती था । उसके भद्रनंदी नाम का कुमार था। श्रीदेवी प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ । १४२ ३.७.६६ रक्तवती जी : चम्पा नाम की नगरी थी। दत्त नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम रक्तवती था । महचंद्र कुमार युवराज था जिसका श्रीकांता आदि पांच सौ राजकन्याओं के संग पाणिग्रहण हुआ ।१४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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