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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
घात का तथा धन नष्ट करने का)। उस पुरुष को पकड़ने के लिए हाथ फैलाने पर "खंभा" हाथ में आया। पति की चिल्लाहट सुनकर पत्नी बहुला आई, उसने पति से चिल्लाने का कारण पूछा। चुल्लशतक ने सारी बात बताई। बहुला ने इसे देव उपसर्ग बताया तथा व्रत में दोष लगने के कारण प्रायश्चित्त करने के लिए पति को प्रेरित किया। चुल्लशतक प्राचश्चित्त कर पुनः धर्म में स्थिर हुए ।२२ इस प्रकार उसने अपनी पति को जिनधर्म में तथा पौषध की साधना में सहयोग दिया, यह उसका महत्वपूर्ण अवदान है।
३.७.४६ श्राविका भद्रा जी : चम्पा नगरी के गाथापति “कामदेव" की पत्नी का नाम भ्रदा था। कामदेव ने श्रावक व्रतों को ग्रहण किया, इससे प्रेरित होकर पत्नी भद्रा भी श्रमणोपासिका बनी तथा व्रतों का सम्यक परिपालन किया ।१२३
३.७.४७ श्राविका श्यामा जी : वाराणसी नगरी में चुलनीपिता गाथापति निवास करते थे। उनकी पत्नी का नाम श्यामा था। दोनों ने भगवान् महावीर से श्रमणोपासक व्रत ग्रहण किया और उनका सम्यक् रुप से परिपालन भी किया |१२४
__ ३.७.४८ श्राविका धन्या जी : वाराणसी नगरी में गाथापति सुरादेव हुए थे, उनकी पत्नी का नाम धन्या था। भगवान् महावीर की धर्म प्रज्ञप्ति सुनकर दोनों ने श्रमणोपासक धर्म अंगीकार किया। एक बार सुरादेव को देव का उपसर्ग हुआ। उसने देखा कि देव ने तीनों पुत्रों को मारकर उनके रक्त-मांस को पकाकर उसके देह का सिंचन किया था। अंत में उसके शरीर में एक साथ सोलह महारोग उत्पन्न करने का भय दिखाया, इस भय से विचलित होकर सुरादेव उसे पकड़ने के लिए उठा, तो खंभा हाथ में आया। पत्नी धन्या उनकी चीख पुकार सुनकर आई और कारण पूछा। सुरादेव द्वारा सारा विवरण सुनाने पर बुद्धिमती धन्या ने पति को आश्वस्त किया कि आपको धर्म से डिगाने के लिए यह देव उपसर्ग था। आपने भयवश व्रत खंडित कर दिया। आप आलोचना कर के शुद्ध हो जाइए। प्रेरित वचनों को सुनकर सुरादेव धर्म में पुनः स्थिर हुआ।२५ इस प्रकार धन्या ने पति को प्रेरणा देकर धर्म में दढ़ किया। उनके व्रतों के पालन में सहयोगिनी बनी।
३.७.४६ श्राविका पुष्पा जी : कांपिल्य नगर के श्रेष्ठी कुण्डकौलिक गाथापति की पत्नी पुष्पा थी। पुष्पा सुख-सुविधाओं में अपना जीवन सानंद व्यतीत करती थी। एक समय कांपिल्य नगर के सहस्त्राम्रवन उद्यान में भगवान महावीर स्वामी का आगमन हुआ। उनके पहुँचने का समाचार नगर में फैलते ही जन-समूह दर्शनार्थ एकत्रित हो गया। कुण्डकौलिक श्री महावीर की परिषद् में धर्मदेशना सुनने के लिये गया। धर्म देशना श्रवण कर श्रेष्ठी अत्यन्त प्रभावित हुआ । अणुव्रतों के अनुसार उसने वैभव को सीमित कर अपनी सम्पदा की मर्यादा निश्चित की। पति से प्रेरणा पाकर पत्नी पुष्पा ने भी समवसरण में जाकर श्राविका के बारह व्रत अंगीकार किये। कालांतर में पुष्पा ने श्राविका धर्म का पालन करते हुए अपने धर्मनिष्ठ पति को सहयोग दिया और अपना भी कल्याण किया।१२६
___ ३.७.५० सुश्राविका अग्निनित्रा जी : अग्निमित्रा, पोलासपुर नगर के धनाढ्य कुंभकार शकडाल की धर्मपत्नी थी। मंखला गोशालक द्वारा प्रतिपादित धर्म सिद्धान्तों में अग्निमित्रा की आस्था थी। कुम्भकार दम्पत्ति अतुल वैभव सम्पदा के साथ जीवन व्यतीत कर रहा था। हे सद्दालपुत्र! नगर में त्रिकालदर्शी महामानव का आगमन हो रहा है, तुम उनके वंदन के लिए जाना। इस मंगल-संवाद से सद्दालपुत्र अपने गुरू मंखलि गोशालक का आगमन जानकर हर्षित हुआ। सद्दालपुत्र ने उद्यान में हो रही धर्मसभा में देखा कि उसके परम पावन गुरू की असन्दी पर तीर्थंकर महावीर बिराजमान हैं। उसने भगवान् का अभिवन्दन किया। भगवान् महावीर से सद्दालपुत्र ने कर्मवाद का और गहस्थ धर्म के सच्चे स्वरूप को समझ कर द्वादश व्रत अंगीकार किये। भगवान् महावीर को वदन कर वह स्वगह आया। उसने अपनी सहधर्मिणी अग्निमित्रा को तीर्थंकर महावीर का धर्म समझाते हुए परिषद् में जाने की प्रेरणा दी। पति से प्रेरणा पाकर धर्मपरायण कुशल गहिणी, ऐश्वर्यशालिनी अग्निमित्रा सहस्त्राम्रवन उद्यान में हो रही परिषद में रथ में बैठकर गई, उसके साथ कई सेविकाएँ भी थीं। उसने श्रद्धा से तीन बार भ० महावीर स्वामी की प्रदक्षिणा की। तीर्थंकर भ० महावीर ने अग्निमित्रा को धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश श्रवण कर अग्निमित्रा परम हर्षित व उत्साहित हुई। उसने भगवान् से निवेदन किया, हे भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ प्रकान पर श्रद्धा रखती हूँ, अतः मैं श्राविका के बारह व्रतों को अंगीकार करना चाहती हूँ। इस प्रकार उसने प्रभु महावीर से बारह व्रत अंगीकार किए।
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