________________
जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
प्रo भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो जायेंगे, फिर भी लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा ?
175
उ० जयन्ती ! जिस प्रकार कोई सर्वाकाश की श्रेणी हो, जो अनादि, अनन्त हो एकप्रदेशी होने से परित्त (परिमित) और अन्य श्रेणियों द्वारा परिवत्त हो, उसमें से प्रतिसमय एक-एक परमाणु- पुद्गल जितना खण्ड निकालने से अनंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी तक निकल जाए तो भी वह श्रेणी जीवों से खाली नहीं होती। इसीलिए हे जयन्ती ! ऐसा कहा जाता है कि सब भवसिद्धिक जीवों से लोक रहित नहीं होगा ।
प्रo
भगवन! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि कई जीवों की सबलता अच्छी है और कई जीवों की दुर्बलता अच्छी है ? उ० जयन्ती । जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्म से ही आजीविका करते हैं, उन जीवों की दुर्बलता अच्छी है क्योंकि वे जीव दुर्बल
होने से किसी प्राण, भूत, जीव और सत्व को दुःख आदि नहीं पहुंचा सकते, इत्यादि सुप्त के समान दुर्बलता का भी कथन करना चाहिए। और 'जागत' के समान सबलता का कथन करना चाहिए। यावत् धार्मिक संयोजनाओं में मन संयोजित करते हैं, इसलिए इन धार्मिक जीवों की सबलता अच्छी है।
प्रo भगवन्! जीवों का दक्षत्व उद्यमीपन अच्छा है या आलसीपन ?
उ० जयन्ती। कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है।
प्र० भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि यावत् कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है।
उ० जयन्ती ! जो जीव अधार्मिक यावत् अधर्म द्वारा आजीविका करते हैं, उन जीवों का आलसीपन अच्छा है। यदि वे आलसी होंगे तो प्राणों, भूतों, जीवों और सत्वों को दुःख, शोक और परिताप उत्पन्न करने में प्रवत्त नहीं होंगे इत्यादि सब सुप्त के समान करना चाहिए तथा दक्षता (उद्यमीपन) का कथन जागत के समान कहना चाहिए, यावत् वे (दक्ष जीव) स्व पर और उभय को धर्म के साथ संयोजित करने वाले होते हैं। ये जीव दक्ष हों तो आचार्य की वैयावत्य (उपाध्याय), स्थविरों की वैयावत्य, तपस्वियों की वैयावत्य, ग्लान (रुग्ण) की वैयावत्य शैक्ष (नवदीक्षित) की वैयावत्य, कुल की वैयावत्य, गणवैयावत्य, संघवैयावत्य और साधर्मिकवैयावत्य (सेवा) से अपने आपको संयोजित (संलग्न) करने वाले होते हैं इसलिए इन जीवों की दक्षता अच्छी है।
श्राविका जयंती के जीवन का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि उस समय की सामाजिक स्थिति स्त्रियों के अनुकूल थी । धर्मोपासना, धर्मजिज्ञासा और साधुओं को दान देने के प्रसंग में उनका अच्छा वर्चस्व था । जयन्ति समर्थ राजपुत्री थी। भगवान महावीर और उनके शिष्यों के प्रति उसका प्रशस्त धर्मानुराग था। संभव है, जयंति का मकान नगर के बाहर था, इसलिए कौशाम्बी आने वाले साधु-साध्वियों को वहाँ ठहरने में सुविधा रहती थी। वह जीव, अजीव आदि नौ तत्वों का गहरा ज्ञान रखती थी। भगवान महावीर के साथ हुई उसकी धर्म चर्चा की संक्षिप्त सी सूचना प्रस्तुत पद्यों में मिलती है। भगवती सूत्र में उसके अनेक प्रश्न और भगवान के यौक्तिक उत्तर उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त जीवों के द्वारा संसार को अपरिमित व परिमित, दीर्घकालिक व अल्पकालिक करने, जीवों की भव्यता, अभव्यता, भव्य जीवों की मोक्ष गामिता भव्य जीवों से संसार की शून्यता, इन्द्रियों की वशवर्तिता से होने वाले बंधन आदि के विषय में श्राविका जयंति ने अनेक गंभीर प्रश्न किए। भगवान ने एक-एक कर सब प्रश्नों को समाहित कर दिया। उनके समाधानों से केवल जयंति श्राविका ही लाभान्वित नहीं हुई, समवसरण में उपस्थित अन्य लोगों को भी नया प्रकाश मिला जो जयंति श्राविका का अनमोल योगदान है। भगवतीसूत्र का स्वाध्याय करने वाले लोग वर्तमान में भी इस प्रश्नोत्तर शैली में हुई धर्मचर्चा से लाभान्वित हो सकते हैं । १७
३.७.४१ मां वत्सपालिका जी : वज्रग्राम में वत्सपालिका नाम की वद्धा ग्वालिन रहती थी। भगवान् महावीर साधना के ग्यारहवें वर्ष में छः मास की तपस्या पूर्ण कर वज्रग्राम में गोचरी लेने के लिए गये। वत्सपालिका नाम की वद्धा ग्वालिन ने कृशकाय तपस्वी को देखकर श्रद्धापूर्वक वंदन किया और भक्तिभाव से अपने यहाँ पारणा लेने की भावना भायी। ग्वालिन ने प्रभु को परमान्न (दूध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org