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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास उसी समय प्रभु महावीर का पदार्पण नगरी में हुआ। युवराज मेघकुमार प्रभु प्रवचन सुनकर ऐश्वर्य से विमुख हो वैरागी बने और माता से दीक्षा की अनुमति माँगी। माता ने दीक्षा के कष्टों का वर्णन करते हुए कई तरह से समझाया किंतु मेघकुमार अपने संकल्प पर दृढ़ रहे। मेघकुमार के साथ ही उनकी आठों पत्नियां भी दीक्षित हुई। रानी धारिणी की आंखों में बार- बार मेघकुमार का बचपन घूमने लगा, लेकिन के पुत्र आग्रह को देखते हुए उसने अनुमति दे दी। महारानी धारिणी ने पुत्र स्नेह के स्थान पर धर्मस्नेह निभाया अतः उसके पुत्र का भविष्य उज्जवल बना । १०० 169 ३.७.२८ राजकुमारी वासवदत्ता : वासवदत्ता उज्जयिनी के महापराक्रमी राजा चंडप्रद्योत तथा महारानी अंगारवती की पुत्री थी। वह सुंदर, सुशीला एवं शुभ लक्षणों वाली थी। कई कलाओं में वह पारंगत थी किन्तु गंधर्व कला (संगीत) शिक्षा गुरु के अभाव में प्राप्त नहीं कर पाई थी। राजा चण्डप्रद्योत इस कमी को पूर्ण करना चाहते थे। उन्हें पता चला कि कौशाम्बी का राजा उदायन संगीत विद्या में पारंगत है। राजा उदयन को प्रद्योत के सैनिकों छल पूर्वक ने पकड़कर राज दरबार में उपस्थित किया। प्रद्योत ने इस आशंका से कि कहीं उदयन उसकी पुत्री के प्रति आकर्षित न हो जाए। उदयन को कुष्ट रोग से पीड़ित तथा अपनी पुत्री को एक आंखवाली बताकर विद्या सिखाने के समय बीच में पर्दा डलवा दिया। कुछ समय बाद यह भेद खुल गया तथा बीच के व्यवधान के दूर होते ही दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गये, तथा प्रणयसूत्र में बंध गये। एक बार प्रद्योत के अनलगिरि हाथी को वश में करने में वासवदत्ता तथा उदयन ने अपनी कला का परिचय दिया जिससे राजा प्रसन्न हुआ। राजा उदयन अपनी राजधानी लौटना चाहता था। कौमुदी (बसंतोत्सव ) उत्सव के समय एक बार जब राजा तथा प्रजा नगर के बाहर के उद्यान में रंग - राग में व्यस्त थे, तब वासवदत्ता अपनी राखी आदि के सहयोग से पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार वेगवती हथिनी पर आरूढ़ हुई । तब उदयन उसे लेकर अपनी राजधानी लौट आया। अंत में पुत्री के वात्सल्य के कारण प्रद्योत ने गुणवान् राजा उदायन को अपना दामाद स्वीकार कर लिया । वासवदत्ता भगवान महावीर की उपासिका थी, साथ ही वीणावादन में निपुण थी व स्त्री का चौंसठ कलाओं में पारंगत थी । १०१ ३.७.२६ महारानी | पृथा जी: पृथा वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष राजा चेटक की रानी थी। वह परम धर्मोपासिका सुश्राविका थी। अपने धर्म परायण पति चेटक की समस्त धार्मिक गतिविधियों में परम सहयोगिनी थी। धैर्य एवं साहस की वह अद्भुत प्रतिमा थी, कठिनतम परिस्थितियों में भी धैर्य एवं साहस के साथ उसने शील धर्म की रक्षा की। उसने प्राणों का मोह त्याग दिया। उसने चेलना, धारिणी, मृगावती आदि सात पुत्रियों के विवाह की जिम्मेदारी वहन की तथा प्रसिद्ध राजाओं के संग कन्याओं का विवाह किया।१०२ नारी के धैर्य एवं साहस का महान् आदर्श प्रथा के जीवन से प्रकट होता है। ३. ७.३० सुभद्रा जी : सुभद्रा वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष महाराजा चेटक की रानी थी, वह श्रमणोपासिका तथा जिनभक्त थी । १०३ ३.७.३१ श्रीमती कालिका जी : कालिका पुंडरिकिणी नगरी के समीपवर्ती मधुक वन के निवासी पुरुरुवा भील की पत्नी थी, वह भद्र प्रकृति की थी। अपने संघ से बिछुड़े हुए सागरसेन मुनि उस वन में आए। मृग समझकर भील ने उन्हें बाण से मारना चाहा, किंतु कालिका ने अपने पति को समझाया कि यह तो वनदेवता हैं, ये तो वंदनीय होते हैं। उन्होंने मुनि के समीप जाकर उन्हें वंदना की, व्रत ग्रहण किये, अंत में समाधिमरण से स्वर्ग प्राप्त किया। यह प्रभु महावीर का पूर्व का भव था ।१०४ सात्विक प्रवृत्ति की कालिका ने श्राविका व्रतों का सम्यक् परिपालन किया था, यही इसका महत् योगदान है। ३.७.३२ सुसेनांगजा जी : सुसेनांगजा राजा विद्याधर एवं रानी सुसेना की पुत्री थी । महाराजा श्रेणिक की भाजी थी। बचपन में ही माता की छत्रछाया से वंचित रही, अतः पिता ने उसके संरक्षण के लिए उसके मामा श्रेणिक को सुपुर्द किया। समस्त कलाओं में निपुणता प्राप्त करने पर युवावस्था प्राप्त होने पर तथा श्रेणिक ने अपने पुत्र एवं मंत्री अभयकुमार के साथ उसका धूमधाम से विवाह किया। सुसेनांगजा प्रतिभासंपन्न सन्नारी थी। उसने पति के कठिन एवं विचित्र कार्यों में अपूर्व सहयोग दिया। वह प्रभु महावीर की परम भक्त श्राविका तथा परम धर्मोपासिका थी । १०५ धर्म परंपरा के निर्वाह में श्राविका व्रतों का सम्यक् परिपालन किया, यही इसका महत्वपूर्ण योगदान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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