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३.७.२६ महारानी चेलना जी भगवान महावीर के भक्त मगध सम्राट् राजा श्रेणिक की पत्नी तथा वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष चेटक महाराज की पुत्री थी। रानी चेलना प्रभु महावीर की परम उपासिका थी । वह पतिव्रता सन्नारी थी। अपने पति राजा श्रेणिक को धर्म के प्रति दृढ़ करने में वह सदा प्रयत्नशील रही और उसमें सफल भी हुई। राजा श्रेणिक एवं महारानी चेलना न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करते थे। रानी चेलना के गर्भ में कूणिकं का जीव आया। गर्भ के प्रभाव से रानी को श्रेणिक के कलेजा का मांस खाने की इच्छा हुई। अभयकुमार ने युक्तिपूर्वक माता की इच्छा पूर्ण की। रानी ने ऐसे बालक को जन्म के साथ ही जंगल में छोड़ दिया, किन्तु संतति वात्सल्य से राजा श्रेणिक उसे उठाकर ले आये। कालांतर में राज्य की महत्वाकांक्षावश कूणिक ने श्रेणिक को बंदी बनाया। कर्तव्यबोध से चेलना को कारागह में जाने की अनुमति थी। चेलना सौ बार सुरा से बालों को धोकर गीले बालों को बांधकर शीघ्रता से श्रेणिक के कारावास में जाती थी और केश के बीच कुल्माष (उड़द) का एक लड्डू भी छिपाकर ले जाती थी। राजा इसे ही दिव्य भोजन समझकर खाता था तथा बालों से टपकनेवाली सुरा का पान करके तप्त होता था ।
ऐतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
पुत्र
एक बार कोणिक अपने पुत्र को गोद में लेकर भोजन कर रहा था तथा माता चेलना भी पास में बैठी थी। भोजन करते समय पैशाब कर दिया तथा भोजन के थाल में भी उसका कुछ अंश चला गया। राजा कूणिक ने कुछ हिस्सा फैंका शेष खाना खाते हुए माता चेलना से पूछा, माते मुझ जैसा पित-प्रेम और किसी का होगा क्या? रानी चेलना ने उसे उसके पिता श्रेणिक की सारी घटना बतायी कि उनके पुत्रस्नेह के सामने तेरा पुत्रस्नेह नहीं के बराबर है। कूणिक के मन में यह सुनकर पितृस्नेह जाग उठा, पिता को बंधनों से मुक्त करने के लिए लौह दण्ड लेकर दौड़ा। श्रेणिक ने कोणिक को इस अवस्था में आते हुए देखा तो स्वयं ही तालपुट विष जिव्हा पर रखकर अपने प्राण त्याग दिये । चेलना ने पत्नी एवं माता के रूप में अपना कर्तव्य निभाकर एक आदर्श उपस्थित किया। महारानी चेलना धर्मपरायणा सन्नारी थी। राजा श्रेणिक ने उसकी धर्म आराधना हेतु देवों की सहायता से अभयकुमार द्वारा एक स्तंभवाला महल बनवाया, तथा नंदनवन जैसा उद्यान भी तैयार कर दिया। वहाँ रहकर महारानी चेलना सर्वज्ञ प्रभु की उपासना में अपना समय व्यतीत करने लगी ।
चेलना की साधु-भक्ति: प्रभु महावीर का नगरी में आगमन हुआ। रानी चेलना एवं राजा श्रेणिक दोनों प्रभु को वंदन करके लौट रहे थे। लौटते समय रास्ते में एक मुनि को उत्तरीय वस्त्र रहित (बिना वस्त्र के ) शीत परिषह सहन करते हु देखा। दोनों ने रथ से उतरकर मुनि को नमन किया। रात्रि को सोते समय रानी चेलना का एक हाथ रजाई से बाहर निकल आया और ठण्ड में ठिठुर गया। महारानी को मुनि का स्मरण हो आया, कि ऐसी शीत में उन मुनिराज का क्या होगा? ऐसे शब्द धीरे से मुंह से "आह" के साथ निकल पड़े। राजा श्रेणिक को अपनी प्रिय रानी के चरित्र पर शंका हुई और रानी के महल में आग लगा देने का आदेश दे दिया। राजा श्रेणिक ने प्रभु महावीर के समक्ष उपस्थित होकर प्रश्न किया कि चेलना पतिव्रता है या नहीं । प्रभु बोले- राजन् । तुम्हारी धर्मपत्नी चेलना महासती हैं, तथा शील और अलंकार से शोभित हैं। राजा तत्काल नगर अभयकुमार के बुद्धि कौशल से अपने अन्तःपुर को सुरक्षित पाकर अत्यंत हर्षित हुआ । देव, गुरू धर्म की भक्ति से मंडित चेलना का व्यक्तित्व, नारी जगत के लिए प्रेरक था ।
आया और
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३.७.२७ महारानी धारिणी देवी : धारिणी राजगृही के महाराजा श्रेणिक की रानी थी, तथा भगवान महावीर के संघ में दीक्षित मेघकुमार मुनि की माता थी। रानी धारिणी पतिव्रता सद्धर्मचारिणी तथा श्रेणिक की प्रिय पत्नी थी। एक बार रात्रि के चतुर्थ प्रहर रानी धारिणी ने स्वप्न देखा कि चार दांतों वाला श्वेत वर्ण का हाथी उसके मुंह में प्रवेश कर रहा है। स्वप्न देखकर रानी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने अपने इष्ट का स्मरण किया एवं राजा श्रेणिक के शयनागार में पहुंचकर मृदु शब्दों में स्वप्न की बातें कही। राजा ने कहा- हे देवानुप्रिय ! तुम्हारा स्वप्न शुभ है। तुम सुंदर लक्षणोंवाले एक पुत्र को जन्म दोगी। गर्भ के तीसरे माह रानी धारिणी को दोहद हुआ-मेघों से आच्छादित आकाश हो, बरसात हो रही हो हरियाली हो, मंद-मंद पवन बह रही हो और मैं महाराजा श्रेणिक के साथ भ्रमण करती हुई प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द लूँ। वर्षाऋतु अभी दूर थी । अतः दोहद पूरा नही हो सकता था। इसी चिंता में रानी दुःखी रहने लगी। राजा श्रेणिक को पता चला तब उन्होंने रानी को आश्वस्त किया । पुत्र अभयकुमार ने माता की इच्छा पूर्ति के लिए तीन दिनों तक तेले का अनुष्ठान किया तथा मित्रदेव की आराधना की । मित्र देव ने अभयकुमार की सहायता की तथा रानी धारिणी का दोहद पूर्ण हुआ । पुत्र का जन्म होने पर उसका नाम मेघकुमार रखा गया। अपने इकलौते पुत्र का पालन पोषण रानी धारिणी ने बड़े लाड़ प्यार से किया । युवावस्था में प्रवेश करने पर आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण किया गया ।
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