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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 167 उसके मन में यह शंका हुई कि इतने बड़े तपस्वी को इतना तुच्छ आहार कैसे समर्पित करूँ ? यही सोचकर उसकी आंखे भर आई। ___ आधुनिक विज्ञों ने ऐसा भी लिखा है कि भ० महावीर स्वामी ने अपने अभिग्रह की पूर्ति में कुछ कमी देखी। वे भिक्षा ग्रहण किये बिना ही बाहर निकलने लगे, यह देख चंदना की आंखों में आंसू आ गये। अब तपस्वी साधक महावीर का अभिग्रह पूरा हो चुका था। उन्होंने चन्दना की भिक्षा को स्वीकार कर लिया। चंदना के इस भाग्योदय पर सभी श्रावक उसे श्रद्धा से देखने लगे। महाराजा शतानीक भी सपरिवार अभिवंदना करने आये। शतानीक के साथ दधिवाहन का अंगरक्षक भी बंदी के रूप में आया था। चंदना को देखकर वह उसके पैरों में गिर पड़ा। पूछने पर उसने चंदना का सम्पूर्ण परिचय दिया। शतानीक की पत्नी मृगावती चंदना की माता पद्मावती की बहिन थीं, सभी परस्पर मिलकर बड़े गद्गद हुए। ___ चंदना को इस घटना के कारण संसार से वैराग्य हो गया। वह भ० महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हुई। चंदना का दासत्व महावीर के कारण ही छुट सका। वर्द्धमान के समय की साध्वियों एवं श्राविकाओं की अग्रणी महासती चन्दना ही थी। चंदना ने विषम परिस्थितीयों में शान्ति एवं सहिष्णुता का परिचय दिया तथा अपने धर्म पर अटल रही। अकेले ही जीवन से संघर्ष किया शांति एवं सहिष्णुता का परिचय दिया तथा धर्म की दढ़ता को बनाये रखा। वह युग मनुष्य के क्रय-विक्रय का युग था। आज हमें पशु क्रय-विक्रय जितना स्वाभाविक लगता है। उस युग में मनुष्य का दास, दासियों का व्यापार उतना ही स्वाभाविक था। बिका हुआ मनुष्य दास बन जाता था। और वह खरीद्दार की चल-संपत्ति हो जाता, उस युग में मनुष्य का मूल्य आज जितना नहीं था। आज का मनुष्य पशु की श्रेणी से ऊँचा उठ गया है, इस आरोहण में दीर्घ तपस्वी भ० महावीर का विशेष योगदान है। ३.७.२४ महासती मृगावती जी : कौशाम्बी के राजा शतानीक की पत्नी महारानी मृगावती भ० महावीर स्वामी की परम भक्त थीं। मगावती वैशाली के गणराजा चेटक की पुत्री थी। वह रूप गुण संपन्न थी तथा महाराजा शतानीक की राजकीय समस्याओं के समाधान में सतत् सहयोगिनी थी।५ प्रभु महावीर कौशाम्बी पधारे। भगवान् ने तेरह अभिग्रह धारण किये थे। प्रभु का पारणा न होने से वह व्यथित थी। एक बार मार्ग में हो रहे जन कोलाहल और जयघोष से महारानी मृगावती को ज्ञात हुआ कि दीर्घ तपस्वी भगवान् महावीर का पारणा धनावह सेठ की दासी द्वारा हुआ है। वह अत्यंत प्रसन्न हुई और स्वयं धनावह के घर पहुंची। उसी समय एक सैनिक से उसे ज्ञात हुआ कि यह दासी दधिवाहन की पुत्री वसुमती है। इस रिश्ते के अनुसार वसुमती महारानी की बड़ी बहन की पुत्री थी, अतः उसने स्नेहपूर्वक वसुमती को गले लगाया और राजमहलों में ले गई।६६ रानी मृगावती अनुपम सौंदर्य की स्वामिनी थी। उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत ने किसी चित्रकार के पास महारानी का चित्र देखा। महाराजा उसके सौंदर्य से अभिभूत हुआ। उसने मृगावती को पाने के लिए कौशांबी पर आक्रमण किया। युद्ध में शतानीक की मत्यु हो गई। महारानी मगावती ने अद्भुत धैर्यता, चतुरता व साहस के साथ परिस्थितियों का सामना किया एवं कौशाम्बी की एवं स्वयं की रक्षा की। भगवान महावीर स्वामी का कौशाम्बी में पदार्पण हुआ । समवसरण की रचना हुई। मगावती चण्डप्रद्योत के साथ प्रभु के दर्शनार्थ गयी। महावीर का उपदेश सुनकर मगावती अपने राजकुमार पत्र उदायन की सुरक्षा का भार चण्डप्रद्योत को सौंपकर साध्वी बन गई।६७ महासती मगावती के नारी पराक्रम एवं सतीत्व की कथा वैदिक, बौद्ध तथा जैन तीनों साहित्य में समान रूप से प्रसिद्ध है। भगवतीसूत्र एवं आवश्यक चूर्णि में मृगावती सम्बद्ध कथा का उल्लेख हुआ है।१ ३.७.२५ शिवादेवी जी : उज्जयिनी नरेश महाप्रतापी राजा चण्डप्रद्योत की रानी तथा राजा चेटक महाराजा की पुत्री थी। प्रभु महावीर की मौसी थी तथा उनकी उपासिका थी। एक बार उज्जयिनी नगरी में महामारी का प्रकोप फैल गया। राजवैद्यों से परामर्श किया गया। उन्होंने बताया कि यह दैवी प्रकोप है। अतः अंत:पुर की शीलवती रानी द्वारा यक्ष को पूजा से संतुष्ट किये जाने पर रोग का शमन संभव है। शिवादेवी ने आगे आकर यक्ष का पूजन किया, परिणामस्वरूप नगरी में महामारी का रोग शांत हुआ। अन्य उल्लेख के अनुसार नगरी में भयंकर आग लगी जो शांत नहीं हुई। मंत्रणा द्वारा पता चला कि यह दैवी प्रकोप है। कोई पतिव्रता सती स्त्री अग्नि पर जल छिड़केगी तब अग्नि का प्रकोप शांत हो जाएगा। रानी शिवादेवी ने सम्पूर्ण श्रद्धा एवं आत्मविश्वास के साथ जल छिड़का, जिससे भयंकर अग्नि का प्रकोप शांत हुआ। शिवादेवी के पुत्र का नाम पालक था।८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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