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________________ जैन प्राविकाओं का बृहद् इतिहास श्राविका व्रतों को ग्रहण किया था, वह धर्मनिष्ठ सुश्राविका थी। उसके धर्म प्रभाव से उसके पति भी धर्म के सम्मुख हुए, यह उसका उल्लेखनीय अवदान था। ३.७.१२ महासती सुभद्रा जी : बसंतपुर के राजा जितशत्रु के मंत्री जिनदास एवं उनकी पत्नी तत्वमालिनी की सुपुत्री का नाम था सुभद्रा। सुभद्रा बचपन से ही जिन धर्मानुयायी श्राविका बनी थी, अतः पिता उसका विवाह जैन कुल में करना चाहते थे। चंपानगरी में बौद्धधर्मी बुद्धदास नामक युवक रहता था। सुभद्रा के रूप लावण्य से आकर्षित होकर उसने जैनधर्मी होने का ढोंग करके छलपूर्वक सुभद्रा के साथ विवाह किया। ससुराल में सुभद्रा ने देखा कि उसके परिजन जैन धर्म का पालन नहीं करते। सुभद्रा के देव उपासना, गुरु उपासना के प्रति भी वे शंकित थे। एक बार सुभद्रा के घर भिक्षा हेतु एक जिनकल्पी मुनि पधारे। मुनि की आंखों में तिनका अटका था तथा पानी बह रहा था। प्रतिमाधारी मुनि कष्ट सह लेते हैं परन्तु उसे निकालने की इच्छा नहीं रखते हैं। अतः सुभद्रा ने अपनी जीभ से मुनि की आंख में अटकी फांस निकाल दी। फांस निकालने पर सुभद्रा के ललाट पर लगी सिंधूर की बिंदी मुनि के भाल पर लग गई। उसी समय उसकी ननंद ने मां और भाई को बुलाकर यह दिखाया और जिनकल्पी जैन मुनि पर कलंक आया, उनकी छवि धूमिल हो गई। सुभद्रा के प्रति पति सहित सबका व्यवहार बदल गया, सबने मिलकर सुभद्रा को दुश्चरित्रा घोषित किया। सभद्रा ने संकल्प किया कि जब तक वह कलंकमुक्त नहीं होगी, तब तक वह अन्न जल स्वीकार नहीं करेगी। तीन दिन व्यतीत हुए, चतुर्थ दिन चम्पा नगरी के चारों द्वार बंद हो गए। नगर से बाहर आवागमन के सारे मार्ग बंद हो गए लोग परेशान थे। आकाशवाणी हुई, कि सती स्त्री के द्वार कच्चे धागे से चलनी को बांधकर, कुएँ से पानी निकालने तथा उसके छींटे दरवाजों पर डालने से दरवाजे खुल सकते हैं। राजा ने नगर में घोषणा करवाई कि जो स्त्री यह महान कार्य संपन्न करेगी, उसे राजकीय सम्मान प्राप्त होगा। पूर्व दिशा के द्वार पर नगर की स्त्रियों का मेला लग गया और द्वार के निकट के कुएँ में चलनियों का ढेर हो गया, पर पानी नहीं निकला। सुभद्रा ने सास से आज्ञा माँगी पर सास ने व्यंग्य कसा। सुभद्रा ने पहले घर के कुएँ से चलनी द्वारा पानी निकालकर उन्हें विश्वास दिलाया। फिर सास की आज्ञा लेकर वह कुएँ के पास गई और चलनी से पानी निकालकर पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा के दरवाजों पर छिड़का, दरवाजे स्वतः खुल गए। चतुर्थ दरवाजा उसने किसी अन्य सती के लिए बंद ही छोड़ा कि वह चाहे तो इसे खोल सकती है। दरवाजे खुलते ही सती की जय जयकार हुई। राजा ने राजकीय सम्मान देकर उसे घर तक पहुंचाया। सुभद्रा के सास-ससुर, ननंद, एवं पति ने लज्जा से आंखें नीची कर ली और सुभद्रा से क्षमा-याचना की। सुभद्रा के मन में किसी के प्रति रोष न था। सुभद्रा की नम्रता, शालीनता और सहिष्णुता से परिजन प्रभावित हुए अपने जीवन में वे भी जैन धर्म के प्रति आस्थावान् और पवित्र आचार वाले बने। जैनशासन जयवंत बना। यह सुभद्रा का महान् योगदान था। ३.७.१३ माता पृथ्वीदेवी जी : गोबर ग्राम निवासी गौतम गोत्रीय वसुभूति के तीन पुत्र थे इंद्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति, जो भगवान् महावीर के गणधर बने थे। उनकी माता का नाम था पृथ्वी देवी । ८२ ३.७.१४ श्रीमती वारुणी देवी : कोल्लाग सन्निवेष के भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण "धनमित्र" की पत्नी थी वारूणी। उनके पुत्र का नाम "व्यक्त" था। जिसने भगवान महावीर के संघ में गणधर बनकर जिन शासन की प्रभावना की थी। ३.७.१५ श्रीमती भद्दिला जी : कोल्लाग सन्निवेश के अग्निवेश्यायन गोत्रीय धम्मिल ब्राह्मण की पत्नी थी। इनके एक पुत्र था जिनका नाम सुधर्मा था। जो भगवान महावीर के पांचवे गणधर बने, इस प्रकार भद्दिला संस्कारवान् पुत्र को जन्म देनेवाली सौभाग्यशालिनी माता बनी थी।४।। ३.७.१६ श्रीमती विजया देवी जी : मौर्य सन्निवेश के वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण "धनदेव" की पत्नी थी। इनके पुत्र का नाम था मंडितपुत्र । जो भगवान् महावीर के गणधर बने, जिनशासन की सेवा करने वाली यह महान् सन्नारी थी।५ ३.७.१७ श्रीमती विजया जी : मौर्य ग्राम निवासी काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण की पत्नी थी। इनके पुत्र का नाम मौर्यपुत्र था।८६ जो भगवान महावीर के गणधर बने। माता विजया का यह अवदान है कि उसने संस्कारवान पुत्र को जन्म दिया। ३.७.१८ श्रीमती जयंति जी : मिथिला निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण देवशर्मा की पत्नी थी। इनके पुत्र का नाम अकम्पित था, जो भगवान महावीर के गणधर बने सुयोग्य माता ने सुयोग्य पुत्र को जन्म दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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