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२.२६.१० मदनरेखा :- मदनरेखा सुदर्शनपुर नगर के युवराज युगबाहु की धर्मपत्नी थी। पति परायणता, शीलधर्म आदि उदात्त गुणों के लिए प्रसिद्ध थी तथा वह समकित धारिणी श्राविका एवं परम बुद्धिमती थी । युगबाहु के बड़े भाई मणिरथ ने मदनरेखा को पाने के लिए छलपूर्वक छोटे भाई युगबाहु पर तलवार का प्रतिघात किया। मदन रेखा ने अपने हृदय की व्यथा को दबाकर परिस्थिति से समझौता किया। मरणासन्न युगबाहु के मन में भाई के प्रति प्रतिशोध के भाव न जगें इसका पूरा ध्यान रखा। पति को अठारह पापों के प्रत्याख्यान करवाये। संलेखना संथारा द्वारा उनका अंतिम समय सुधारा । फलस्वरूप पति ने देव बनकर मुनि के समक्ष उपकारिणी सती मदनरेखा को पहले प्रणाम किया। मदन रेखा ने अपने प्रति आसक्त विद्याधर मणिप्रभ को योग्य मार्गदर्शन देकर भाई बनाया। अपने बड़े पुत्र चंद्रयश तथा छोटेपुत्र मिथिला नरेश नमिराजा के बीच हो रहे युद्ध को रूकवाया। भाई-भाई में प्रेम करवाया। स्वयं मदनरेखा ने दीक्षा लेकर आत्म कल्याण किया । ३८६
२. २७ विविध श्राविकाएँ :
२.२७.१ विरता :- पांचवें सुनंद बलदेव की पत्नी थी विरता । उसके गर्भ से सुमति नामक एक कन्या पैदा हुई थी, वह बाल्यावस्था से ही जिनोपदिष्ट धर्म का पालन करती थी तथा विभिन्न तप भी करती थी, वह बारह व्रतधारिणी श्राविका थी । एक बार उसने मुनि को आहार दिया। रत्न वर्षादि पाँच दिव्य वहाँ प्रकट हुए। उसके स्वयंवर में एक देवी जो उसके पूर्वभव की बहन कनकश्री थी उसने पूर्वजन्म का स्मरण करवाकर उसे प्रतिबोध दिया। फलस्वरूप उसने दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया । ३६०
पौराणिक / प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
२. २७.२ स्वयंप्रभा :- वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में रथनुपूर चक्रवाल नामक एक नगर था। वहां जवलनजटी नामक विद्याधर तथा उनकी प्रधान महिषी वायुवेगा की पुत्री थी स्वयंप्रभा । स्वप्न में माता ने स्वयंप्रभा से आकाश को आवृत्त करने वाली चंद्रकला देखी अतः कन्या का नाम स्वयंप्रभा रखा गया। उसके भाई का नाम अर्ककीर्ति था। अभिनंदन और जगनंदन नामक दो मुनियों के समीप स्वयंप्रभा ने सम्यक्त्व ग्रहण किया । तथा श्राविका व्रतों को अंगीकार किया। कालांतर में स्वयंप्रभा से श्री विजय और विजय नामक दो पुत्रों का जन्म हुआ । ३९१
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२.२७.३ सुकेशा :- गगन वल्लभ नामक नगरी के राजा विद्याधरपति सुलोचन की पुत्री तथा द्वितीय चक्रवर्ती सागर की स्त्रीरत्न थी सुकेशा । चक्रवर्ती पद पर आसीन होते समय भी स्त्री रत्न तथा अंतःपुर की रानियाँ पास में ही उपस्थित रहती हैं। बत्तीस हजार राजकन्याएं, बत्तीस हजार स्त्रियां, कुल चौंसठ हजार रानियां चक्रवर्ती सगर के अंतःपुर में थी । उनसे सगर के साठ हजार पुत्र हुए थे । ३९२
पुत्र
२.२७.४ वासुदेव लक्ष्मण की पत्नियाँ :- • वासुदेव लक्ष्मण की कुल मिलाकर सोलह हजार रानियां थी । और अढ़ाई सौ थे । विशल्या, रूपवती, वनमाला, कल्याणमाला, रत्नमाला, जितपद्मा, अभयवती और मनोरमा, ये आठ पटरानियाँ थी । ३६३
२. २७.५ राम की चार पत्नी थी- सीता, प्रभावती, रतिनिभा, और श्रीदामा ।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार श्री वासुपूज्य जी, मल्लि भगवती, श्री अरिष्टनेमि भगवान और श्री पार्श्वनाथ प्रभु ये चारों तीर्थंकर अविवाहित
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२.२७.६ मगधसुंदरी :- राजगृही में प्रतिवासुदेव जरासंध का राज्य था, मगधसुंदरी और मगधश्री नाम की दो नृत्यांगनाएं मगध राज्य की कला विभूतियां मानी जाती थी । जरासंध दोनों का ही बड़ा सम्मान करता था । मगधश्री कुटिल तथा ईर्ष्यालु स्वभाव की थी, अतः उसने मगध सुंदरी को मारने की कुटिल योजना बनाई। राजगृह में कोई विशेष उत्सव था, मगध सुंदरी का नृत्य होने वाला था। नृत्य आंगन में भी रंग बिरंगे फूल बिछाये गये थे। वहीं मगधश्री ने भी सफेद गुलाब के फूल बिछा दिये। उन फूलों को उसने विषैले धुएं से वासित कर विषाक्त बना दिया था। मगध सुंदरी का नृत्य प्रारंभ हुआ। मगध सुंदरी की आका (संरक्षिका-माता) ने देखा भ्रमर सफेद गुलाब पुष्पों पर नहीं बैठते हैं। उसने गीतिकामय गाथा पढ़ी जिसके भाव थे गुलाब के फूलों को छोड़कर भ्रमर आम्र मंजरियों की तरफ क्यो जा रहे हैं? आका का संकेत समझकर नृत्य करते समय मगध सुंदरी फूलों से दूर ही रही। सकुशल नत्य पूर्ण किया । मगध सुन्दरी की सर्वत्र प्रशंसा हुई।
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