SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास 139 २.२६.४ मदनवल्लभा :- अंगदेश की राजधानी धारापुर नगर के राजा संदर की रानी का नाम मदनवल्लभा था। कुलदेवी ने राजा को भावी संकट के बारे में सावधान किया। राजा अपनी रानी एवं दो पुत्रों सहित मंत्री को राज्य सौंपकर स्वयं सेवक बनकर जीवन चलाते रहे। विपत्ति के कारण राजा रानी तथा बच्चों का विछोह हो गया। राजा तथा रानी परीक्षा लिए जाने पर भी अपने शीलधर्म में दढ रहे। मदनवल्लभा ने सेविका रूप में कश काय होने पर भी अपने शील धर्म को सुरक्षित रखा है। कालांतर में अचानक ही श्रीपुर के राजा की मृत्यु हो जाने पर सुंदर पुनः राजा बन गया। दोनों पुत्रों और मदनवल्लभा से मिलन हुआ। पुनश्च मंत्री ने राजा को ससम्मान धारापुर में बुलाया। वहाँ मुनि के दर्शनो का संयोग मिला। मुनि से पूर्वभव पूछा और पुनः धर्म में दृढ़ हो कर राजा रानी ने श्रावक व्रतों की आराधना की तथा स्वर्ग को प्राप्त हुए।३८३ २.२६.५ स्मिता :- कुसुमपुर के अधिपति राजा विमलसेन की पुत्री तथा राजा सूर्यसेन एवं महारानी ज्योत्सना के सुपुत्र युवराज कुमारसेन की वह रानी थी। युवराज की प्रतिज्ञा थी कि मैं अनुपम सुंदरी एवं विलक्षण प्रतिभा की धनी राजकुमारी से ही विवाह करूँगा। अन्ततः राजकुमारी स्मिता से कुमार सेन का विवाह हुआ। स्मिता ने अपने बुद्धिचातुर्य एवं धर्म परायणता से पति एवं पारिवारिक जनों का हृदय जीत लिया। उसके सद्गुणों व धार्मिकता का प्रभाव कुमारसेन पर भी पड़ा। फलस्वरूप कुमार सेन ने भी श्रावक व्रतों को अंगीकार किया ।३८४ २.२६.६ बसन्तसेना :- सेठ जिनदत्त विदेश यात्रा के लिए तैयार हुए। उसने सभी नगर निवासियों से पूछा- बताओ! मैं विदेश से आपके लिए क्या लाऊँ ? किसी ने खाद्य पदार्थ मंगवाया, किसी ने आभूषण तो किसी ने वस्त्र इत्यादि। श्रेष्ठी ने राजा के पास पहुँचकर पूछा महाराज आपके लिए विदेश से क्या लाऊँ। राजा ने उसे चार सार लाने के लिए कहा। सेठ ने करोड़ों का धन विदेश में अर्जित किया। नगर निवासियों की पसन्द की सभी वस्तुएं खरीदी, किंतु राजा के चार सार के लिए वह चिंतित हुआ ।पूछने पर किसी बुद्धिमान सज्जन ने उसे बताया कि नगर वधू बसन्त सेना से आपको चार सार उपलब्ध हो सकते हैं। वह वेश्या बसंतसेना के पास गया एवं प्रत्येक सार एक-एक लाख मुद्राओं में खरीदा। स्वदेश लौटकर उसने सभी की मन पसंद वस्तुएं उन्हें प्रदान की। राजा की इच्छा के अनुरूप चार सार उसने राज सभा में पेश किए जो इस प्रकार हैं :-(१) बुद्धि पाने का सार है- तत्व चिंतन । (२) शरीर का सार है- व्रतों का पालन। (३) धन का सार है- सुपात्र का दान । (४) वाणी का सार- मधुर वचन । राजा अति प्रसन्न हुआ तथा चारों को जीवन में अपनाया। जिनदत्त को मुँह मांगा इनाम दिया गया तथा वसन्त सेना को अपने राज दरबार में बुलाकर उसका बहुत सम्मान किया। बसन्त सेना ने वेश्या वृत्ति का त्याग कर दिया तथा धर्ममय जीवन व्यतीत करने लगी। इस प्रकार चार सार का पालन करने से सारा नगर धर्म के रंग में रंग गया।३८५ २.२६.७ विद्युल्लता :- विद्युल्लता सज्जन शेखर के पुत्र विद्युतसेन की पत्नी थी। विवाह की प्रथम रात्रि में ही कुलदेवी द्वारा विद्युतसेन का अपहरण हो गया। विद्युल्लता के धैर्य और धार्मिक प्रवृत्ति के प्रभाव से चोरों ने उसके भाई बनकर विद्युतसेन का पता सती विद्युल्लता को दिया। और उन्होंने बताया कि विद्युतसेन का अपहरण देवी द्वारा हुआ है तथा वह अमुक स्थान पर मिल सकता है। विद्युल्लता अपने पति की खोज में निकली तथा अपने सतीत्व के बल पर उसने कुलदेवी को प्रसन्न किया। फलस्वरुप कुलदेवी ने उसके पति को सकुशल घर लौटा दिया ।२८६ २.२६.८ मृगासुंदरी :- मृगासुंदरी राजा चंद्रशेखर की एवं रानी चंद्रावली की पुत्रवधू एवं सज्जनकुमार की पत्नी थी। परिणय की प्रथम रात्रि में पति सज्जनकुमार का अपहरण होने पर मगासुंदरी पुरूष वेष में पति को खोजने निकली, योगिनी का वेश बनाकर पाखंडी योगी के चक्रव्यूह में फंसे पति एवं अन्य व्यक्तियों का भी उसने उद्धार किया। अपनी सूझबूझ, साहस और चातुर्य के बल पर उसने सतीत्व का तेज दिखाया और साथ ही नारी जाति की गरिमा में चार चांद लगाए ।३८७ २.२६.६ गुणसुंदरी :- गुणसुंदरी राजा अरिदमन की पुत्री थी जिसको राजा ने चुनौती दी कि पुत्री का सुख दुख पिता पर निर्भर है। पुत्री गुणसुंदरी कर्मवाद के सिद्धान्त पर अटूट विश्वास रखती थी। उसने कहा पिता जी! प्रत्येक व्यक्ति को अपने किये कर्मों के अनुसार फल मिलता है। पिता अरिदमन ने क्रुद्ध होकर एक लक्कड़हारे से उसका विवाह कर दिया। किंतु गुण सुंदरी को अपने भाग्य पर भरोसा था कालांतर में वह सब प्रकार से सुखी हो गई।८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy