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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
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२.२५.६६ गंगा :- गंगा गंधर्व नगर के राजा "जन्हु की पुत्री थी। वह एक सुन्दर, सुशील, विदुषी एवं धर्मपरायणा नारी थी। उसकी यह दृढ़ प्रतिज्ञा थी कि मैं उसी वर के साथ विवाह करूंगी जो सद्गुणी, सुशील, शूरवीर तथा उसकी इच्छा के अनुकूल चलने वाला होगा। अन्यथा आजीवन कुमारी रहूंगी। अपना मनोरथ पूर्ण करने के लिए वह उत्तम वाटिका में जाकर साधना करने लगी। भगवान् आदिनाथ के पुत्र कुरू से कौरव वंश चला। इसी वंश परंपरा के सद्गुणी महाप्रतापी राजा "शान्तनु" थे, जिनमें शिकार खेलने का एक अवगुण था। वे उस वाटिका के निकट शिकार खोजते हुए आए। देवांगना के समान परम सुंदरी युवती को देखकर राजा ने उससे परिचय पूछा और गंगा की शर्त स्वीकार की। कदाचित् शर्त का दैवयोग से उल्लंघन हो जाये तो तुम मुझे त्याग देना इस प्रकार राजा ने गंगा की प्रतिज्ञा पूर्ण की। महाराज जन्ह वहाँ पहुँचे। सखी मनोरमा ने राजा जन्ह को शान्तनु के अभिप्राय का परिचय दिया। जन्हु ने बड़े समारोह के साथ उसी समय दोनों को विवाह बंधन में बांध दिया। शान्तनु अपनी राजधानी में आये तथा कालांतर में गंगा ने “गांगेय कुमार' को जन्म दिया। एक बार शांतनु के मन में आखेट पर जाने की तीव्र लालसा उत्पन्न हुई। शांतनु की पहनी हुई वेशभूना से रानी उसका अभिप्राय समझ गई। राजा को मधुर शब्दों में उसने समझाया, किंतु राजा नहीं रूका वह आखेट के लिए निकल गया। रानी को राजा के व्यवहार से गहरा आघात लगा। वह गांगेय कुमार को साथ में लेकर अपने पीहर चली गई। शांतनु ने आकर वहां रानी को नहीं देखा तो वह विरह से व्याकुल हो उठा। गंगा अपने पीहर रत्न पुरी में आकर धर्मध्यान पूर्वक अपना समय व्यतीत करने लगी। एक बार गंगा पुत्र गांगेय कुमार की क्रीड़ा वाटिका में राजा शांतनु शिकार हेतु आया। गांगेय द्वारा शिकार के लिए मना करने पर शांतनु तथा गांगेय में युद्ध प्रारंभ हो गया। गंगा ने पिता-पुत्र को वस्तुस्थिति की जानकारी दी। गंगा ने पुत्र गांगेय को पिता के सुपुर्द किया तथा स्वयं जैन भागवती दीक्षा धारण की। गंगा की संकल्प शक्ति तथा अहिंसा धर्म पर आस्था प्रशंसनीय है।३६६
२.२५.१०० यशोदा :- गोकुल के अधिपति नंद की पत्नी का नाम यशोदा था, जिसे देवक राजा ने अपनी पुत्री देवकी के विवाह पर गायों सहित नंद को प्रीतिदान में दिया था। यशोदा ने बहुत बड़ा त्याग किया, अपनी पुत्री को कंस के भक्षण हेतु अर्पित किया तथा कृष्ण के रक्षण हेतु उसका पालन पोषण गोकुल में किया ।३७०
२.२५.१०१ सत्यभामा :- सत्यभामा उग्रसेन राजा की पुत्री, श्रीकृष्ण की पटरानी थी, परम रूपवती होने का उसे बड़ा गर्व था। एक बार शीशे में नारदजी का मुख देखने पर उसने हँसी उड़ाई थी, इससे रूष्ट होकर नारद जी ने रूपवती गुणवती रूक्मिणी और श्रीकृष्ण के मन में परस्पर एक दूसरे के प्रति अनुरक्ति पैदा की और दोनों का विवाह संपन्न हुआ। रूक्मिणी से सत्यभामा ईर्ष्या करती थी। उसने रूक्मिणी के साथ शर्त रखी कि जिसके पुत्र का विवाह पहले होगा, दूसरी को सिर के बाल कटवाकर देने पड़ेंगे, इसमें भी सत्यभामा के ही बाल काटे गये। नेमिनाथ भगवान् के उपदेशों को सुनकर सत्यभामा का हृदय परिवर्तित हुआ। वह अर्हतोपासिका बनी। कालान्तर में दीक्षित हुई।३७१ अहं को दूर कर अर्ह पद की अधिकारिणी बनी।७२
२.२५.१०२ जीवयशा :- जीवयशा राजगृही के राजा प्रतिवासुदेव जरासंध की पुत्री तथा कंस की पत्नी थी। वसुदेव और देवकी के विवाह के पश्चात् मथुरा में आगमन पर जीवयशा व कंस ने विवाह की प्रसन्नता में एक महोत्सव का आयोजन किया। इसी बीच कंस के दीक्षित भ्राता तपस्वी अतिमुक्तक मुनि भिक्षा हेतु जीवयशा के द्वार पर आए। जीवयशा ने मुनि मर्यादा से विपरीत उच्छंखल मजाक किया। रोष पूर्वक ज्ञानी मुनि ने जीवयशा से कहा, जिस राज्य का तुझे घमंड है, वह देवकी के सातवें गर्भ से, कंस की मृत्यु द्वारा विनष्ट हो जाएगा। जीवयशा ने दुःखपूर्वक कंस को मुनि के वचन सुनाये, तथा वह सदैव कृष्ण की मृत्यु की कामना तथा प्रयत्न में लगी रहती थी। फलस्वरूप कृष्ण द्वारा कंस वध के पश्चात् उसने अपने पिता जरासंध को कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। युद्ध में उसने अपने पिता को भी खो दिया। पिता एवं पति के विरह से व्याकुल होकर अग्नि में प्रवेश कर उसने अपने जीवन को समाप्त कर लिया ।३७३
२.२५.१०३ पुप्पचूला :- पुष्पचूला पुष्पचूल नरेश की पुत्री थी। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की पत्नी थी। पुष्पचूला का अपहरण करने वाला विद्याधर विद्या सिद्ध करते हुए ब्रह्मदत्त के हाथों मारा गया। विद्याधर ब्रह्मदत्त की दोनों बहनें खंडा और विशाखा अपने भाई के विवाह के लिए सामग्री लेकर, अपनी सेविकाओं एवं पुष्पचूला के साथ आई। भाई की मत्यु का समाचार सुनकर विद्याधर बहनों ने बदले की भावना से विकराल रूप बनाया। पुष्पचूला ने स्थिति का सामना धैर्य से किया ।३७४
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