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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
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२.२५.५७ विनयश्री :- कृष्ण की आठवीं पटरानी पद्मावती के आठवें पूर्वभव का जीव जो भरतक्षेत्र के उज्जयिनी नगरी के राजा अपराजित और रानी विजया की पुत्री थी। जिसका विवाह हस्तिनापुर के राजा हरिषेण से हुआ था। इसने पति सहित वरदत्त मुनि को आहार दिया था। तथा आहार दान के परिणाम स्वरूप वह हेमवत् क्षेत्र में एक पल्य की आयु वाली आर्या हुई थी।३२७
२.२५.५८ धनमित्रा :- धनमित्रा उज्जयिनी नगर के सेठ धनदेव की पत्नी थी। यह महाबल का जीव था, इसकी बहन अर्थस्वामिनी थी तथा इनके पुत्र का नाम नागदत्त था। पति द्वारा त्याग किये जाने से देशांतर में इसने शीलदत्त गुरू के पास श्रावक के व्रत ग्रहण किये और अपने पुत्र को शास्त्राभ्यास के लिए उनके चरणों में सौंप दिया था। अपनी बहन का विवाह उसने मामा के पुत्र कुलवाणिज के साथ कर दिया था।३२८
२.२५.५६ रत्नवती तथा लहसुणिका :- इलावर्धन नगर के भद्र सार्थवाह की दासपुत्री लहसुणिका के मुंह की दुर्गंध को वसुदेव ने औषधी के प्रयोग से दूर किया। इससे प्रसन्न होकर भद्र सार्थवाह ने अपनी पुत्री रत्नवती एवं दासपुत्री लहसुणिका का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया था।३२६
२.२५.६० वेगवती :- वेताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्वर्णाभ नगर के राजा चित्रांग एवं रानी अंगारवती की पुत्री का नाम वेगवती था। वेगवती का विवाह वसुदेव से हुआ था, उसने वसुदेव की सहायता की थी।३३०
२.२५.६१ ललित श्री :- ललित श्री गणिका पुत्री थी, तथा वसुदेव की पत्नी थी। वह पुरूषों से नफरत करती थी। वसुदेव ने उसके मन की भ्रान्ति दूर की अतः उसकी माता ने उसका विवाह वसुदेव के साथ किया था।३१
२.२५.६२ अम्बा, अम्बिका, अंबालिका :- ये तीनों काशी नरेश की सुपुत्रियाँ थी। महाराज शांतनु एवं सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की रानियाँ थी। महारानी अंबिका से धृतराष्ट्र, अंबाली से पाण्डु, तथा अम्बा से विदुर कुमार उत्पन्न हुए थे। ३३२ ।
२.२५.६३ कुमुदवती रूपवती :- भीष्मजी की आज्ञा से इन दोनों राजकुमारियों का विवाह विदुर जी के साथ हुआ था।३३३
२.२५.६४ रेवती :- रेवती राजा रैवतक की पुत्री थी तथा बलभद्रजी की पत्नी थी। श्रीकृष्ण के विवाह से पूर्व ही रेवती का विवाह बलभद्र के साथ संपन्न हुआ। वह अत्यंत रूपवती, गुणवती थी, उसकी छोटी तीन अन्य बहनों का विवाह भी बलभद्र जी के साथ संपन्न हुआ था ३३४
२.२५.६५ भानुमती :- भानुमती दुर्योधन की पतिव्रता पत्नी थी। एक बार दुर्योधन पाण्डवों को मारने के लिए द्वैतवन में गया, वह भी साथ थी। अर्जुन के शिष्य चित्रांगद के भवन पर दुर्योधन ने अधिकार जमा लिया। दुर्योधन पाण्डवों को मारने आया है, यह जानकर अति क्रुद्ध होकर चित्रांगद ने दुर्योधन के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया। भानुमती द्वारा पाण्डवों की शरण ग्रहण करने पर युधिष्ठिर की प्रेरणा से दुर्योधन के प्राणों की रक्षा हुई ।३३५
२.२५.६६ हिरण्यमती :- नलिनीसभ नगर के राजा हिरण्यरथ एवं रानी प्रीतिवर्द्धना की पुत्री का नाम हिरण्यमती था। वह मात्तंग विद्याधर वंश परंपरा के राजा विधसितसेन की पुत्रवधू तथा राजा प्रहसित की पत्नी थी। उसके पुत्र का नाम सिंहदाढ़ था ।३६
२.२५.६७ माद्री :- माद्री मद्र नरेश शल्य की बहन थी, तथा राजापाण्डु की पत्नी थी। पाण्डु ने दीक्षा लेने का निश्चय किया तो माद्री ने भी पति के पदचिन्हों का अनुगमन किया। अपने पुत्र नकुल एवं सहदेव का मोह त्यागकर उसने उन्हें कुंती को समर्पित किया तथा स्वयं साध्वी बनी ।३३७
२.२५.६८ सत्यवती :- रत्नपुर के राजा रत्नांगद एवं रानी रत्नवती की पुत्री का नाम सत्यवती था। राजा रत्नांगद का एक शत्रु विद्याधर इसे उठाकर यमुना तट पर एक अशोक वक्ष के नीचे डाल गया। एक नाविक ने घर लाकर उसका पालन किया। फलस्वरुप एक बार शांतनु ने नाविक से सत्यवती की मांग की, पिता शांतनु की इच्छा को पूर्ण करने के लिए बदले मे गंगापुत्र भीष्म ने आजीवन शीलव्रत की आराधना करने की कड़ी प्रतिज्ञा धारण की। नाविक ने अपनी शर्तेपूर्ण हुई जानकर शांतनु से सत्यवती का विवाह कर दिया। सत्यवती ने अपने पुत्र चित्रांगद तथा विचित्रवीर्य को सुसंस्कार दिये तथा गंगापुत्र गांगेयकुमार (भीष्म) को भी पुत्रवत् वात्सल्य दिया था।३३८
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