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________________ 132 पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ २.२५.४२ अनड्.गपताका :- अनड्.गपताका राजा सत्यंधर की छोटी रानी तथा बकुल की जननी थी, उसने धर्म का स्वरूप समझकर श्राविका व्रतों को धारण किया था।३१२ २.२५.४३ अनङ्पुष्पा :- अनड्.पुष्पा चंद्रनखा की पुत्री थी, रावण द्वारा वह हनुमान को प्रदान की गई थी।३१३ २.२५.४४ पुष्पपालिता :- पुष्पपालिता एक मालिन की पुत्री थी, उसने श्राविका के व्रतों को धारण किया था, और स्वर्ग की शची देवी हुई थी। २.२५.४५ पुष्पवती :- पुष्पवती एक मालिन की पुत्री थी, पुष्पपालिता उसकी बहन थी, उसने भी श्राविका व्रतों को धारण किया था और स्वर्ग मे मेनका देवी हुई थी।३१५ २.२५.४६ पूतिका :- पूतिका मंदिर ग्राम निवासी त्रिपद धीवर और उसकी पत्नी मण्डूकी की पुत्री थी। माता द्वारा त्यागे जाने पर समाधिगुप्त नामक मुनिराज द्वारा दिये गये उपदेश को ग्रहण करके इसने सल्लेखनापूर्वक मरण किया और अच्युत स्वर्ग में अच्युतेंद्र की गगनवल्लभा नाम की महादेवी हुई। इसका दूसरा नाम पूतिगंधिका था ।१६ २.२५.४७ पृथ्वी :- पृथ्वी पुण्डरिकिणी नगरी के राजा सुरदेव की रानी थी। दान धर्म के प्रभाव से वह अच्युत स्वर्ग में सुप्रभा देवी हुई।३० २.२५.४८ पद्मलता :- पलाश द्वीप में स्थित पलाशनगर के राजा महाबल और रानी कांचनलता की पुत्री थी। श्रेष्ठी नागदत्त से इसका विवाह हुआ था। अनेक उपवास करती हुई मृत्यु के पश्चात् वह स्वर्ग गई। वहां से च्युत होकर वह चंदना बनी। ३१८ २.२५.४६ सिंहनंदिता :- सिंहनंदिता रत्नपुर नगर के राजा श्रीषेण की बड़ी रानी थी। इसके पुत्र का नाम इंद्रसेन था। इसने आहार दान की अनुमोदना करके उत्तरकुरूक्षेत्र में उत्तम भोगभूमि की आयु का बंध किया था।३१६ २.२५.५० सिंहिका :- सिंहिका अयोध्या के राजा नघुष की रानी थी, जो अस्त्र, शास्त्र दोनों में निपुण थी। नघुष की अनुपस्थिति में विरोधी राजाओं द्वारा ससैन्य आक्रमण के प्रत्युत्तर में उसने वीरतापूर्वक युद्ध किया। इससे कुपित होकर नघुष ने इसे महादेवी के पद से च्युत कर दिया था। एक बार राजा को दाहज्वर हुआ तब सिंहिका ने कर संपुट में जल लेकर राजा के शरीर पर छिड़का जिसके प्रभाव से राजा की वेदना शांत हुई और उन्हें रानी के शील की अपरिमित शक्ति का परिचय प्राप्त हुआ।३२० २.२५.५१ शीला :- शीला व्याघ्रपुर नगर के राजा सुकांत की पुत्री और सिंहेंदु की बहन थी। श्रीवर्द्धित ब्राह्मण ने इसका अपहरण किया था। पूर्वभव मे इसने भद्राचार्य के समीप अणुव्रत धारण किये थे। वहाँ से यह शीला नामक स्त्री के रूप में उत्पन्न हुई थी ३२१ २.२५.५२ श्री :- श्री त्रिश्रंग नगर के राजा प्रचण्डवाहन और रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में चतुर्थ पुत्री थी। ये सभी बहनें पहले युधिष्ठिर को दी गई थी किंतु युधिष्ठिर की मृत्यु संबंधी समाचार सुनने पर ये सब अणुव्रत धारिणी श्राविकाएँ बन गई थी। ३२२ २.२५.५३ श्री दत्ता :- श्रीदत्ता जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र निवासी देविल वैश्य और बंधु श्री की पुत्री थी। इसने मुनि सर्वयश से अहिंसा व्रत लेते हुए धर्मचक्र व्रत किया था। आर्यिका सुव्रता के वमन को देखकर घणा करने के फलस्वरूप कनक श्री की पर्याय में इसका पिता मारा गया और इसका अपहरण हो गया था ।३२३ २.२५.५४ पद्मावती : पद्मावती यदुराजा के पौत्र सुवीर के पुत्र राजा भोजकवृष्णि की रानी थी। पद्मावती रानी के तीन पुत्र उग्रसेन, महासेन, एवं देवसेन थे तथा दो पुत्रियाँ सत्यभामा एवं राजीमती थी।३२४ २.२५.५५ धारिणी :- द्वारिका नगरी के महाराजा बलदेव की रानी का नाम धारिणी था। उसके पुत्र थे सुमुख कुमार, दुर्मुख कुमार एवं कूपदारक कुमार ।३२५ २.२५.५६ विनय श्री :- कृष्ण की पटरानी गांधारी के पांचवे पूर्वभव का जीव । वर्तमान भव में कौशल देश की अयोध्या नगरी के राजा रूद्र की रानी थी। जिसने सिद्धार्थ वन में अपने पति के साथ श्रीधर मुनि को आहार दिया था। तथा इस दान के प्रभाव से उत्तरकुरू में तीन पल्य की आयुधारिणी आर्या हुई थी।२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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