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________________ 134 पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ २.२५.६६ सुदेष्णा :- सुदेष्णा चूलिका नरेश चूलिका की पुत्री मत्स्य नरेश् विराट् की रानी तथा कीचक की बहन थी। सुदेष्णा ने कीचक को सौरन्ध्री (द्रौपदी) के प्रति कामविकार भाव मन में न लाने के लिए सचेत किया। उसके पुत्र का नाम उत्तर तथा पुत्री का नाम उत्तरा था। वह कोमल स्वभावी तथा अवसरज्ञ (अवसर को पहचानने वाली) थी। उसने अपनी संतान को धार्मिक संस्कारों से सुसंस्कारित किया था। २.२५.७० सुभद्रा :- सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन तथा अर्जुन की पत्नी थी। उसके तेजस्वी पुत्र का नाम अभिमन्यु था। मां सुभद्रा ने पति अर्जुन से चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विधि को ध्यानपूर्वक श्रवण किया था। अतः अभिमन्यु ने भी चक्रव्यूह में प्रवेश कर युद्ध लड़ा था। सुभद्रा धीर वीर गम्भीर एवं सहनशील थी। अपने पुत्र की मृत्यु के समाचार को उसने धैर्य पूर्वक २.२५.७१ उत्तरा :- उत्तरा मृत्स्य देश के राजा विराट् की पुत्री, राजकुमार उत्तर की बहन तथा वीर अभिमन्यु की पत्नी थी। पिता की अनुपस्थिति में राजकुमारी उत्तरा ने अपने भाई उत्तरकुमार को क्षत्रिय के अनुरूप युद्धवीर बनने के लिए प्रेरित किया था। बहन्नला (अर्जुन) को उत्तर राजकुमार का सारथी बनने के लिए विवश किया था। अपने पति अभिमन्यु द्वारा नी बनी, तथा वैधव्य जीवन भी धैर्यता के साथ व्यतीत किया। अतः वह आदर्श पत्नी आदर्श पुत्री एवं आदर्श बहन थी।३४१ २.२५.७२ धारिणी :- राजा उग्रसेन की रानी का नाम धारिणी था, उसकी एक पुत्री राजीमती थी तथा पुत्र का नाम नभसेन था।३४२ २.२५.७३ ऊषा :- ऊषा प्रद्युम्नकुमार एवं रानी वैदर्भी की पुत्रवधू थी तथा अनिरूद्ध कुमार की पत्नी थी। उसने पति अनिरूद्ध को कई विद्याएं सिखाई, एवं बाण नरेश के विरूद्ध युद्ध करने में उन्हें सहयोग दिया था ।४३ २.२५.७४ कमलामेला :- श्री बलभद्रजी के पौत्र एवं निषधकुमार के पुत्र सागरचंद्र की पत्नी थी तथा धनसेन की पुत्री थी, वह अनुपम सुंदरी एवं गुणवती थी।४४ २.२५.७५ श्यामा और विजया :- ये दोनों विजयखेट नगर के महाराजा की पुत्रियाँ थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि संगीत, नत्य आदि विद्याओं में जो हम से बढ़कर होगा, हम उसी से विवाह करेगी। उनकी इस प्रतिज्ञा में वसुदेव खरे उतरे, अतः महाराजा ने दोनों कन्याओं का विवाह वसुदेव से किया तथा आधा राज्य भी समर्पित किया। कालांतर में विजया गर्भवर्ती हुई। उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अक्रूर रखा गया।३४५ श्यामा और विजया की विशेषता थी कि वे संगीत एवं नत्य कला में निपुण थी, साथ ही रूपवती, गुणवती भी थी। २.२५.७६ श्यामा :- श्यामा विद्याधर राजा अशनिवेग तथा रानी सुप्रभा की पुत्री एवं वसुदेव की पत्नी थी। अपने भाई अंगारक द्वारा क्रुद्ध होने पर उसने वीरतापूर्वक भाई के साथ युद्ध किया तथा लघु परसी विद्या के प्रयोग से वसुदेव सहित कुशलतापूर्वक पथ्वी पर सरोवर तट पर आ गई। इससे श्यामा की वीरता एवं विद्यावती होना सिद्ध होता है । ३४६ २.२५.७७ रूक्मिणी :- विदर्भ देश की कुंदन पुर नगरी के राजा भीष्मक एवं महारानी यशोमती की कन्या, रूक्म की बहन, एवं श्रीकृष्ण की पटरानी थी। वह रूपवती, गुणवती, धर्मपरायणा श्राविका थी। वह सरल एवं कोमल हृदय वाली थी। उसने सत्यभामा के द्वारा ईर्ष्याग्रस्त होने पर न तो बदले की भावना रखी और न ही किसी प्रकार का दुष्कृत्य करने का विचार किया। वह रूपवती होने पर भी अहं से कोसों दूर थी। वह गुरूजनों पर श्रद्धा रखने वाली थी। स्वयं नारद जी भी उसके रूप एवं गुणों से प्रभावित थे। उसके पुत्र का नाम प्रद्युम्न कुमार था। २.२५.७८ सुमित्रा :- सुमित्रा वाराणसी नगरी के राजा हतशत्रु की पुत्री तथा पंडित सुप्रभ की पत्नी थी। उसने अपने स्वयंवर की इच्छा न रखते हुए पिता से कहा कि "इह भव पर भव सुखकारक" उस प्रश्न का उत्तर देने वाले युवक से ही मैं विवाह करूँगी। उसके प्रश्नों का उत्तर पंडित सुप्रभ ने दिया कि तपस्वियों का तप इहभव परभव सुखकारक है। उत्तर से संतुष्ट होकर जिन धर्म उपासिका सुमित्रा ने सुप्रभ से विवाह किया। २.२५.७६ जाम्बवती :- जाम्बवती वैताढ्य गिरि के राजा विष्वकसेन की पुत्री तथा श्रीकृष्ण की रानी थी, वह रूप एवं गुणों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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