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पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
२.२५.२० रोहिणी :- कौशलपति रूधिर की पुत्री का नाम रोहिणी था। वह अनुपम सुंदरी, सर्वगुणसंपन्ना एवं विदुषी थी। उसके स्वयंवर में ढ़ोंगी वेष में आए वसुदेव को उसने प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा पहचान लिया, तथा उनके गले में वरमाला पहनाकर ढ़ोल की पोल खोल दी। उपस्थित नरेशों के समक्ष ही वसुदेव का परिचय सबको प्राप्त हुआ । दोनों का विवाह सानन्द संपन्न हुआ |८६ कालांतर में रोहिणी बलदेव के जन्म सूचक चार शुभ स्वप्न देखकर आनंदित हुई। पुत्र जन्म के पश्चात् पुत्र का नाम रख दिया बलराम ।२६० रोहिणी के धर्म संस्कारों के परिणाम स्वरूप पुत्र बलराम ने जीवन में श्रावक व्रतों की आराधना की, धर्ममय जीवन व्यतीत किया।
२.२५.२१ सोमश्री :- सोमश्री ब्राह्मण सुरदेव तथा क्षत्रिया की पुत्री थी, जो सुंदर होने के साथ ही शास्त्रों की ज्ञाता भी थी। उसकी प्रतिज्ञा थी कि जो युवक उससे वेद शास्त्रों में विजयी होगा, उससे वह विवाह करेगी। उसकी इस प्रतिज्ञा को वसुदेव ने पूर्ण किया।२१ अतः सोमश्री वासुदेव की पत्नी बनी। वेदशास्त्रों में निष्णात थी। ज्ञान के प्रति उसके हृदय में पूरा अहोभाव था।
२.२५.२२ बालचंद्रा :- विद्युदंष्ट्र वंश की पुत्री केतुमती ने रोहिणी विद्या को सिद्ध किया। वह पुण्डरीक वसुदेव की पत्नी बनी। उसी वंश में बालचन्द्रा का जन्म हुआ। जो विद्यावती, गुणवती एवं सुंदरी थी। तथा वह भी वसुदेव की पत्नी बनी २६२
२.२५.२३ बंधुमती :- बंधुमती कामदेव सेठ के पुत्र कामदत्त की पुत्री थी और वसुदेव की पत्नी थी।२६३
२.२५.२४ ऋषिदत्ता :- ऋषिदत्ता भरतक्षेत्र में श्रीचंदन नगर के राजा अमोघरता और रानी चारूमती की पुत्री थी, और शिलायुध की पत्नी थी। उसके पुत्र का नाम था एणीपुत्र। चारणमुनि के उपदेश को सुनकर ऋषिदत्ता ने श्राविका व्रतों को गहण किया था।६४
२.२५.२५ कामपताका :- कामपताका श्रीचंदन नगर की वेश्या अनंगसेना की पुत्री थी। वह अति सुंदर व आकर्षक थी। उसने कालान्तर में श्राविका के व्रतों की आराधना की।२९५
२.२५.२६ प्रियंगुसुंदरी :- प्रियंगुसुंदरी श्रावस्ती नगरी के एणीपुत्र राजा की पुत्री थी तथा वसुदेव की पत्नी थी।२९६
२.२५.२७ प्रभावती :- प्रभावती गंधसमृद्ध नगर के राजा गंधधार पिंगल की पुत्री थी। उसने सुवर्णाभनगर में रानी सोमश्री के विरह को दूर करने के लिए श्रावस्ती नगरी से वसुदेव को सोमश्री के समक्ष उपस्थित किया।२५७
२.२५.२८ बालचंद्रा :- बालचंद्रा उत्तरश्रेणी के गगनवल्लभ नगर के राजा चंद्राभ और महारानी मेनका की पुत्री थी। विद्या सिद्ध करते हुए वह नागपाश में बंध गई। वसुदेव द्वारा मुक्त होने पर उसने बदले में महादुलर्भ विद्या उन्हें प्रदान की। तथा वसुदेव के साथ ही उसका पाणिग्रहण हुआ।२६८
२.२५.२६ मदनवेगा :- मदनवेगा कनखलपुर के विद्याधर राजा की पुत्री थी। तथा वसुदेव की पत्नी थी, उसके पुत्र का नाम अनाधष्टि कुमार था। मदनवेगा ने वसुदेव पर आने वाले संकट को अपनी बुद्धिमत्ता और अवसरज्ञता से पहचान कर वसुदेव की रक्षा की।
२.२५.३० पद्मश्री :- वसुदेव की पत्नी थी, पुत्र का नाम जराकुमार था।३०० .
२.२५.३१ पुंद्रा :- पुंद्रा भद्दिलपुर नगर के महाराजा पुंद्रराजा की पुत्री थी। पिता की मृत्यु के पश्चात् पुरूषवेष में राज्य का संचालन करती थी। वसुदेव के साथ उसका विवाह हुआ और पुंद्र नामक उसका पुत्र पैदा हुआ था।३०१
२.२५.३२ पद्मावती और अश्वसेना :- सालगुह नगर के राजा भाग्यसेन की पुत्री का नाम पद्मावती था और मेघसेन की पुत्री का नाम अवश्वसेना था, वसुदेव के पराक्रम से प्रभावित होकर दोनों के पिता ने उनका विवाह वसुदेव के साथ किया था।०२
२.२५.३३ कपिला :- कपिला वेदसाम नगर के राजा कपिल की पुत्री थी। राजा की प्रतिज्ञा के अनुसार वसुदेव ने स्फुल्लिंगमुख अश्व को पछाड़ा। अंतः में राजा ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कपिला का विवाह वसुदेव से किया। उसके पुत्र का नाम कपिल रखा गया था।०३
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